छत्रपति शिवाजी महाराज का सम्पूर्ण अस्तित्व ही धूर्त औरंगजेब को चुनौती था। औरंगजेब के समक्ष शिवाजी की शक्ति कुछ भी नहीं थी किंतु औरंगजेब शिवाजी को छू भी नहीं पाता था।
शिवाजी की आगरा यात्रा के लिए मिर्जाराजा जयसिंह के माध्यम से शिवाजी को शाही खजाने से 1 लाख रुपए दिए गए थे। जब शिवाजी आगरा से भाग निकले तो औरंगजेब ने मिर्जाराजा को आदेश दिए कि या तो वह शिवाजी से इस राशि की वसूली करे या वह स्वयं यह राशि शाही खजाने में जमा करवाए। इस बात से नाराज होकर छत्रपति शिवाजी ने दक्षिण में अब तक चली आ रही शांति को भंग करने तथा औरंगजेब को चुनौती देने का निर्णय लिया।
हम पूर्व में चर्चा कर चुके हैं कि दक्षिण में नियुक्त फौजदार दिलेर खाँ ने औरंगजेब को पत्र लिखकर शिकायत की थी कि शहजादा मुअज्जम मराठों के साथ मिल गया है तथा उनकी सहायता से बादशाह बनना चाहता है। जब यह बात मुअज्जम को पता लगी तो उसने भी औरंगजेब को एक पत्र लिखकर दिलेर खाँ की शिकायत की।
मुअज्जम के साथ-साथ महाराजा जसवंतसिंह ने भी औरंगजेब को पत्र लिखकर दिलेर खाँ के विरुद्ध शिकायत की। इस पर दिलेर खाँ भयभीत हो गया और उसे डर लगा कि शहजादा मुअज्जम किसी भी दिन दिलेर खाँ की हत्या करवा सकता है। इसलिए दिलेर खाँ ने मुअज्जम से मिलना बंद कर दिया तथा गुजरात के सूबेदार बहादुर खाँ से औरंगजेब को एक पत्र लिखवाया कि दिलेर खाँ को दक्खिन से हटाकर गुजरात का फौजदार बना दिया जाए।
बादशाह ने बहादुर खाँ की यह सिफारिश स्वीकार कर ली। जब दिलेर खाँ गुजरात चला गया तो अक्टूबर 1670 में छत्रपति ने सूरत को दूसरी बार लूटने का निर्णय लिया ताकि दिलेर खाँ को दण्डित किया जा सके तथा औरंगजेब को युद्ध की खुली चुनौती दी जा सके।
जब यह बात दिलेर खाँ को ज्ञात हुई तो उसने गुजरात के अंग्रेज व्यापारियों से बादशाह को एक पत्र लिखवाया जिसमें शिवाजी तथा मुअज्जमशाह दोनों की शिकायत की गई थी।
इस पत्र में अंग्रेजों ने बादशाह को लिखा कि पहिले शिवाजी चोरों की तरह से आता था और लूटपाट करके जल्दी ही चला जाता था किंतु अब वह तीस हजार सैनिकों की एक बड़ी फौज लेकर देश पर देश जीतता हुआ आगे बढ़ता जाता है और शहजादे मुअज्जमशाह के इतने निकट होकर निकलता है जिससे ज्ञात होता है कि वह शहजादे की तनिक भी परवाह नहीं करता।
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1 अक्टूबर 1670 को सूरत के सरकारी कर्मचारियों को सूचना मिली कि शिवाजी 15 हजार घुड़सवारों की एक विशाल सेना लेकर सूरत से केवल 20 मील दूरी पर आ पहुंचा है। इस पर सरकारी कर्मचारी सूरत छोड़कर भागने लगे। अगले दिन 2 अक्टूबर को व्यापारियों ने भी सूरत छोड़ दिया। सूरत में केवल शाही सेना, ब्राह्मण परिवार, श्रमिक, निर्धन जनता और भिखारी ही बच गए।
3 अक्टूबर 1670 को शिवाजी ने सूरत पर आक्रमण किया। अब तक सूरत शहर के चारों ओर एक मजबूत परकोटा बनाया जा चुका था। इसलिए मुगल सेना इस प्राचीर पर खड़े होकर शिवाजी की सेना पर गोलियां दागने लगीं किंतु शिवाजी की सेना ने मुगलों पर इतनी तेजी से दबाव बनाया कि मुगल सेना सूरत का परकोटा खाली करके किले के अंदर जा छिपी।
शिवाजी के सैनिक सूरत में घुस गए और उन्होंने भारतीय व्यापारियों के साथ-साथ अंग्रेज डच, फ्रैंच, पुर्तगाली व्यापारियों की कोठियां एवं कारखाने घेर लिए। तुर्कों और ईरानी व्यापारियों ने कुछ समय पहले ही सूरत में एक नई सराय बनाई थी, जिसमें विदेशों से आए मुस्लिम व्यापारियों का जमावड़ा रहता था।
सूरत की तातार सराय में काशनगर के अपदस्थ बादशाह अब्दुल्ला खाँ ने डेरा डाल रखा था। वह कुछ दिन पहले ही हज करके लौटा था। इन सबको शिवाजी के सैनिकों ने अपने अधिकार में ले लिया।
फ्रांसीसियों ने शिवाजी को बड़े उपहार भेंट किए, इसलिए शिवाजी ने फ्रांसीसियों को भी छोड़ दिया। अंग्रेजों को इस समय तक मुगलों की दोस्ती का खुमार चढ़ चुका था इसलिए उन्होंने इस बार पहले जैसी दीनता नहीं दिखाई अपितु अपने कोठी पर नौसैनिक तैनात कर दिए जिन्होंने शिवाजी के सैनिकों से डटकर मुकाबला किया।
तातारों ने भी दिन भर मराठों का सामना किया। संध्याकाल में अवसर पाकर तातारी सैनिक अपने बादशाह अब्दुल्ला खाँ को लेकर किले के भीतर भाग गए। शिवाजी के सैनिकों ने तातारी सेना तथा उसके बादशाह का बहुमूल्य सामान लूट लिया।
उधर नई सराय में जो विदेशी तुर्क डेरा डाले हुए थे, उन्होंने मराठा सैनिकों को क्षति पहुंचाई। इस पर भी मराठों ने बड़ी आसानी से सूरत शहर के बड़े-बड़े घर लूट लिए और आधे सूरत शहर को जला कर राख कर दिया। 5 अक्टूबर 1670 को शिवाजी एवं उनकी सेना ने शहर खाली कर दिया। शिवाजी ने सूरत से आगे बढ़कर भड़ौंच तक धावे मारे तथा मुगलों की बहुत सी सम्पत्ति लूट ली।
जब मुगल सेना ने फिर से शहर में प्रवेश किया तो आकलन किया गया कि इस लूट में शिवाजी 66 लाख रुपए का माल ले गए थे। इस लूट के बाद धनी व्यापारियों ने हमेशा के लिए सूरत से मुंह मोड़ लिया। इसके बाद शिवाजी की सेना सूरत शहर में कभी नहीं आई किंतु जब तक शिवाजी जीवित रहे, तब तक कई बार यह अफवाह सूरत शहर में फैली कि शिवाजी अपनी सेना लेकर आ रहे हैं।
इस अफवाह के फैलते ही व्यापारी अपना माल-असबाब समुद्र में खड़े जहाजों में भरकर समुद्र में दूर-दूर तक भाग जाते थे। यूरोपीय व्यापारियों ने सुवाली में अपना ठिकाना बना लिया था। अब वे अपना कीमती सामान सुवाली में ही रखते थे। विदेशी सामान लेकर आने वाले जहाजों ने भी अब सूरत से मुंह मोड़ लिया। इससे औरंगजेब तथा जहानआरा दोनों को ही राजस्व की बड़ी हानि हुई किंतु वे शिवाजी के विरुद्ध कोई सख्त कार्यवाही नहीं कर सके।
यह शिवाजी द्वारा सूरत में की गई दूसरी बार की लूट थी। इसके माध्यम से छत्रपति ने शाहबेगम जहानआरा को संदेश दिया कि तू मुझे आगरा के लाल किले में मरवाना चाहती थी किंतु मैं फिर से सूरत को लूट रहा हूँ, मुगलिया सल्तनत जो कर सकती है कर ले!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता