सूरत बंदरगाह की लूट औरंगजेब के गाल पर जड़ा गया ऐसा तमाचा था जिसकी गूंज पूरे भारत में सुनाई दी थी और इस लूट के बाद शिवाजी सम्पूर्ण हिन्दू जाति के नायक बन गए थे।
शिवाजी को नष्ट करने के लिए औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खाँ तथा मारवाड़ नरेश जसवंतसिंह को दक्षिण के मोर्चे पर भेजा था। शाइस्ता खाँ द्वारा शिवाजी के विरुद्ध चलाए गए अभियान में शिवाजी को विपुल धन की हानि हुई थी। शिवाजी ने इस धन की भरपाई करने के लिए मुगलों के क्षेत्र लूटने की योजना बनाई। उन दिनों सूरत मुगल साम्राज्य का सर्वाधिक धनी नगर तथा भारत का प्रमुख बंदरगाह था। बादशाह औरंगजेब की बड़ी बहिन शाहबेगम जहानआरा सूरत की जागीरदार थी।
इस समय सूरत के बंदरगाह से दुनिया भर के देशों के व्यापारिक जहाज आते-जाते थे। लाल सागर एवं भूमध्य सागर होते हुए यूरोप के देशों तक भारतीय मसालों, रेशम, कपास, हाथीदांत, चंदन का व्यापार इसी बंदरगाह से होता था। उन दिनों हज के लिए मक्का जाने वाले मुसलमानों द्वारा भी इसी बंदरगाह का उपयोग किया जाता था। शाहबेगम जहानआरा को इस बंदरगाह से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का राजस्व प्राप्त होता था। इस धन का उपयोग मुगल सल्तनत की विशाल सेनाओं को वेतन चुकाने में होता था।
सूरत शहर में उस समय लगभग 20-25 व्यापारी ऐसे भी थे जिनके पास करोड़ों की सम्पत्ति जमा हो गई थी। शिवाजी ने सूरत बंदरगाह की लूट करने का निश्चय किया। चूंकि सूरत तक पहुंचने के लिए शिवाजी को बुरहानपुर होकर जाना पड़ता जहाँ मुगलों की बड़ी छावनी थी, इसलिए शिवाजी ने अपनी सेना के 4000 चुने हुए योद्धाओं को छोटे-छोटे दलों में विभक्त किया तथा उन्हें बुरहानपुर से दूर हटकर चलते हुए सूरत से 29 किलोमीटर दूर गनदेवी नामक स्थान पर पहुंचने के निर्देश दिए।
स्वयं शिवाजी भी 1 जनवरी 1664 को सूरत के लिए चल दिए। 6 जनवरी 1664 को ये टोलियां गनदेवी पहुंचकर आपस में मिल गईं। सूरत का मुगल गवर्नर इनायत खाँ बेईमान आदमी था। उसे सूरत शहर की रक्षा के लिए बादशाह से जितने सिपाही रखने का वेतन मिलता था, उसकी तुलना में वह बहुत कम सिपाही रखता था तथा सारा वेतन अपने पास रख लेता था। सूरत के चारों ओर कोई परकोटा भी नहीं था। इसलिए सूरत का लुट जाना अवश्यम्भावी था।
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शिवाजी ने इनायत खाँ को तथा सूरत के बड़े सेठों को पत्र लिखकर सूचित किया कि मेरा उद्देश्य किसी को हानि पहुंचाने का नहीं है किंतु बादशाह ने जबर्दस्ती मुझ पर युद्ध थोप दिया है तथा मेरा कोष भी जब्त कर लिया है। यहाँ तक कि मेरा घर लालमहल भी छीन लिया है और मुझे दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश कर दिया है। इसलिए हमने निर्णय लिया है कि इन सब बातों की क्षतिपूर्ति न केवल बादशाह के खजाने से अपितु बादशाह की छत्रछाया में व्यापार करने वाले व्यापारियों से भी करेंगे।
आप लोग शांतिपूर्वक मुक्ति-धन दे दें या अपने साथ होने वाली कठोर कार्यवाही के लिए तैयार रहें। छत्रपति चाहता था कि सूरत के 20-25 धनी व्यापारी आपस में चंदा करके छत्रपति को केवल 50 लाख रुपए दे दें ताकि वह अपनी सेना का वेतन चुका सके। यह राशि सूरत के बड़े व्यापारियों के लिए बहुत छोटी थी किंतु व्यापारी शिवाजी को कोई राशि नहीं देना चाहते थे।
इन पत्रों के मिलने के बाद मुगल सूबेदार इनायत खाँ ने शिवाजी को सलाह भरा पत्र भेजा कि वह शक्तिशाली मुगलों से शत्रुता मोल न ले, तुझे मुगलों की ताकत का अंदाज नहीं हैं। तू लौटकर महाराष्ट्र तक नहीं पहुंच पाएगा। इनायत खाँ को लगता था कि शिवाजी इस बंदरघुड़की से डर जाऐंगे किंतु जब शिवाजी के घोड़े शहर की सीमा पर दिखाई देने लगे तो इनायत खाँ भागकर किले में छिप गया। सूरत के व्यापारी, मुगल सेनाओं के भरोसे अपने घरों में बंद हो गए।
सूरत में अनेक अंग्रेज एवं डच व्यापारी भी कोठी एवं कारखाने बनाकर रहते थे। उन दिनों कोठी का अर्थ व्यापारिक कार्यालय से होता था तथा कारखाने से तात्पर्य आयात-निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के गोदाम से होता था। सूरत के व्यापारी शिवाजी की शक्ति से भली भांति परिचित थे। इसलिए उन्होंने अपनी कोठियों और कारखानों पर सुरक्षा के प्रबन्ध कर लिए।
अंग्रेजों ने एक ईसाई पादरी को शिवाजी के पास भेजकर अनुरोध किया कि वह हमारी निर्धन ईसाई बस्ती पर दया करे। हमारे पास शिवाजी को देने के लिए कुछ भी नहीं है। इस पर शिवाजी ने अंग्रेज पादरी को वचन दिया कि वह निर्धन लोगों पर आक्रमण नहीं करेगा। वैसे भी शिवाजी को अंग्रेजों से नहीं उलझना था क्योंकि उनके पास व्यापारिक सामान तो था किंतु सोना-चांदी नहीं था।
शिवाजी ने शहर के निकट अपना शिविर स्थापित कर लिया तथा शहर में सिपाही भेजकर सूरत के व्यापारियों को मुक्ति-कर लेकर आने के लिए सूचना दी। पहले दिन जब कोई व्यापारी शिवाजी से मिलने नहीं आया तो शिवाजी ने अपने सैनिकों को सूरत शहर के व्यापारियों के घर लूटने के निर्देश दे दिए। शिवाजी के सिपाही सूरत नगर में घुसकर व्यापारियों का धन छीनने लगे और शिवाजी के डेरे में लाकर ढेर लगाने लगे।
इसी बीच मुगल गवर्नर इनायत खाँ ने एक सिपाही के हाथों कपट-युक्त सुलहनामा भेजा। इस सिपाही ने शिवाजी को गुप्त-संदेश देने का बहाना किया तथा बात करते-करते शिवाजी के अत्यंत निकट पहुंच गया। उसने अचानक अपने कपड़ों में से कटार निकाली तथा शिवाजी के शरीर में घोंप दी। शिवाजी के अंगरक्षक सतर्क थे। फिर भी शिवाजी को मामूली चोट पहुंची। शिवाजी के अंगरक्षकों ने तत्काल ही उस सिपाही का हाथ काट दिया।
इस कृत्य के बाद मराठों ने सख्ती बढ़ा दी। मकानों, दुकानों, संदूकों और अलमारियों के किवाड़ तोड़कर धन निकाला जाने लगा। धनी व्यापारियों के मकान खोदकर सम्पदा निकाल ली गई। कई मुहल्ले अग्नि की भेंट कर दिए गए। शिवाजी के पास लगभग 2 करोड़ रुपयों की सम्पत्ति आ गई तथा सूरत, बुरी तरह से बे-सूरत हो गया। समस्त धनी व्यापारियों के घरों में हाहाकार मच गया। शिवाजी के कोप से मुगलों की प्रजा को कोई बचाने वाला नहीं था।
इनायत खाँ के सिपाही किले की दीवार से शिवाजी के सिपाहियों पर तोप के गोले बनसाने लगे। इससे सूरत नगर में कई स्थानों पर आग लग गई। इसी बीच शिवाजी को समाचार मिला कि मुगलों की बहुत बड़ी सेना सूरत की तरफ बढ़ रही है। अतः शिवाजी ने लूट में प्राप्त कपड़े, बर्तन एवं अन्य सामग्री सूरत की निर्धन जनता में बांट दी और सोना-चांदी तथा रुपए लेकर 10 जनवरी 1664 को अचानक सूरत छोड़ दिया। छत्रपति आंधी की तरह सूरत में आए और तूफान की तरह निकल गए किंतु उनके जाने के बाद भी लोगों में धीरज उत्पन्न नहीं हुआ और व्यापारियों का सूरत से पलायन जारी रहा।
सूरत बंदरगाह की लूट के कई दिनों बाद मुगलों की सेना सूरत पहुंची। जिस सूरत के चर्चे पूरी दुनिया में शान से होते थे अब वहाँ एक वीरान और बदसूरत नगर बचा था जिसके बहुत से हिस्सों में आग अब भी सुलग रही थी। जिस समय शिवाजी सूरत को लूटने पहुंचे थे, उस समय अरब के कुछ अश्व-व्यापारी अपने घोड़े बेचने सूरत में आए हुए थे।
उन्हें ज्ञात हुआ कि शिवाजी अपनी सेना सहित आया है तो वे अपने घोड़े लेकर शिवाजी के पास पहुंचे। शिवाजी ने उनसे घोड़े लेकर उन्हें बंदी बना लिया। जब शिवाजी लूट का धन लेकर सूरत से जाने लगे तो उन्होंने अश्व-व्यापारियों को घोड़ों के मूल्य का भुगतान करके उन्हें रिहा कर दिया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता