मुहम्मद बिन तुगलक में विभिन्न प्रकार के विरोधी गुणों का मिश्रण था किंतु वह पागल नहीं था। उसकी योजनाएं समय से आगे थीं तथा आधुनिक युग में उसकी बहुत सी योजनाओं को अमल में लाया जाता है किंतु उसके स्वार्थी अमीर एवं लालची मुल्ला-मौलवी सुल्तान की किसी भी योजना को पूरा नहीं होने देते थे।
मुहम्मद बिन तुगलक भारत के देशी अमीरों की अयोग्यता के कारण अपनी सल्तनत में विदेशी अमीरों को उच्च पद देता था। इस कारण देशी अमीर सुल्तान के विरोधी हो गए। हालांकि विदेशी अमीर भी पूरी तरह धोखेबाज थे और अवसर मिलते ही बगावत कर देते थे। जब लालची मौलवियों को सुल्तान के सिपाही सरेआम कोड़ों से मारते थे तब वे सब एक स्वर में सुल्तान को इस्लाम-विरोधी कहने लगते थे।
जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है- ‘मुहम्मद बिन तुगलक अपने युवाकाल में नास्तिक लोगों के सम्पर्क में आया था इस कारण वह इस्लाम का विरोधी हो गया था …… नास्तिक एवं अहंकारी होने के कारण सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक अल्लाह एवं इस्लाम में बहुत कम विश्वास करता था …… मैं सुल्तान के पास सत्रह साल तथा तीन महीने रहा और हमेशा उससे कमीने तथा निम्नकुल की निंदा सुना करता था किंतु अपने शासन के अंतिम वर्षों में मुहम्मद ने उन्हीं कमीनों तथा नीचकुल के लोगों को अपनी सल्तनत में उच्च पदों पर आसीन किया। बरनी लिखता है कि सुल्तान के शरीर एवं मस्तिष्क के अनिश्चित साधन समझ के परे थे। उसमें अपार उदारता थी तो सैयदों को मारने की इच्छा भी।’
जियाउद्दीन बरनी ने अपनी पुस्तकों में मुहम्मद के जिस चरित्र को दिखाने का प्रयास किया है, वास्तविकता उससे कोसों परे है। मुहम्मद इस्लामी दर्शन, गणित, ज्योतिष तथा भौतिक विज्ञान का गंभीर ज्ञाता था। वह फारसी साहित्य तथा काव्य का भी अच्छा ज्ञान रखता था। उसे सुलेखकला, कलित कलाओं और विशेषकर संगीत से अत्यधिक प्रेम था। स्वयं बरनी ने कई स्थानों पर मुहम्मद के उच्च चरित्र की प्रशंसा की है। इब्नबतूता की पूरी पुस्तक मुहम्मद बिन तुगलक की प्रशंसा से भरी पड़ी है।
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मुहम्मद बिन तुगलक को न केवल सिकंदरनामा, अबू मुस्लिम नामा, तारीखे महदी आदि ग्रंथों का ज्ञान था अपितु उसे कुरान याद था। इतिहासकार हरिशंकर शर्मा ने लिखा है- ‘जिस समय मुहम्मद बिन तुगलक अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरि ले जा रहा था और खुरासान पर आक्रमण की योजना बना रहा था, उन दिनों मुहम्मद धार्मिकशोध भी कर रहा था। अंत में निराशा के साथ उसने यह भी व्यक्त किया था कि मानव ने मूर्तिपूजक होना पसंद किया होता। उसका हिन्दुओं के साथ अनुराग था, इसकी पुष्टि उसके संस्कृत भाषा के प्रति प्रेम तथा हिन्दू महात्माओं के संसर्ग से भी होती है।’
हरिशंकर शर्मा की यह बात सही प्रतीत नहीं होती क्योंकि जब हम मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल की घटनाओं को देखते हैं तो मुहम्मद बिन तुगलक हिन्दुओं के प्रति दुराग्रहपूर्ण रवैये के साथ शासन करता हुआ दिखाई देता है। उसने हिन्दुओं से पचास प्रतिशत तथा मुसलमानों से 10-15 प्रतिशत कर लिया। हिन्दुओं पर जजिया एवं तीर्थकर जारी रखे। उन्हें घोड़े पर बैठने, नवीन वस्त्र धारण करने, सम्पत्ति रखने के अधिकार नहीं दिए तथा सांकेतिक मुद्रा के प्रकरण में हिन्दुओं के समस्त धन का अपहरण करने का कार्य किया।
मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में दो-आब के हिन्दुओं पर इतने अधिक अत्याचार किए गए कि हजारों हिन्दू अपने घर छोड़कर जंगलों में भाग गए। ऐसे लोगों को पकड़कर मार डाला गया, उनके घरों में आग लगाई गई तथा उनकी स्त्रियों से बलात्कार किए गए।
हिन्दू लेखकों ने मुहम्मद बिन तुगलक को संभवतः इस आधार पर हिन्दुओं के प्रति अनुरक्त बता दिया है क्योंकि एक बार उसने यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया था कि काश मानव ने धर्म के रूप में मूर्तिपूजक होना पसंद किया होता।
संभवतः डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने मुहम्मद बिन तुगलक का मूल्यांकन केवल इस आधार पर किया है कि उसने मुल्ला-मौलवियों को पिटवाया था तथा मुल्ला-मौलवियों ने धार्मिक कट्टरता के चलते मुहम्मद के अच्छे कामों का भी विरोध किया था। वास्तविकता यह थी कि मुहम्मद मुस्लिम प्रजा के प्रति ही पूरी तरह उदार था और हिन्दू प्रजा का खून चूसने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। इसलिए जिस प्रकार यह नहीं कहा जा सकता कि मुहम्मद नास्तिक था, उसी प्रकार यह भी नहीं कहा जा सकता कि वह श्रेष्ठ शासक था।
जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि मुहम्मद बिन तुगलक को कुरान याद थी, इब्नबतूता ने लिखा है कि वह नित्य नमाज पढ़ता था। फरिश्ता कहता है कि मुहम्मद बिन तुगलक दया से शून्य था। इब्नबतूता लिखता है कि वह रक्तपात में सबसे आगे था। डॉ. मेहदी हुसैन ने लिखा है कि सुल्तान में विरोधी गुण विद्यमान थे। बरनी तथा इब्नबतूता दोनों ने लिखा है कि उसके महल के सामने सदैव कुछ लाशें पड़ी रहती थीं। लेनपूल ने लिखा है कि उसमें संतुलन का पूर्ण अभाव था।
यदि केवल इन्हीं तथ्यों पर विचार कर लिया जाए तो यह सिद्ध हो जाएगा कि मुहम्मद न तो इस्लाम का विरोधी था, न नास्तिक था, न उसे हिन्दू धर्म से प्रेम था, न वह अच्छा इंसान था। राज्य पाने के लिए अपने स्नेही पिता एवं निर्दोष अनुज को मारने वाला शासक न तो अच्छा इंसान हो सकता है और न अच्छा राजा।
उसे अच्छा व्यक्ति सिद्ध करने के लिए कुछ लेखक इतना नीचे गिर गए कि उन्होंने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के शामियाने के गिर जाने का वर्णन करते हुए लिखा है- ‘बलाए आसमानी वर जमीनान नाजिलशुद्ध’ अर्थात् आकाश से धरती पर बिजली गिर गई। किसी भी मुस्लिम लेखक ने यह लिखने का साहस नहीं किया कि फरवरी के महीने में आसामन से बिलजियां नहीं गिरा करतीं, गयासुद्दीन पर उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुगलक ही बिजली बनकर गिरा था।
सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत की बहुसंख्यक हिन्दू जनता के लिए उतना ही क्रूर था जितने कि दिल्ली सल्तनत के अन्य सुल्तान थे और उसका राज्य उतना ही बुरा था, जितना कि अन्य सुल्तानों के काल में बुरा रहा था।
अन्य सुल्तानों की तरह मुहम्मद बिन तुगलक भी हिन्दुओं के तन पर लंगोटी, सिर पर खपरैल तथा थाली में सूखी रोटी भी नहीं छोड़ना चाहता था। ऐसा सुल्तान पागल हो या न हो, आस्तिक हो या न हो, नास्तिक हो या न हो, क्या अंतर पड़ता है! हिन्दुओं की चोटी, पोथी और मूर्ति मुहम्मद के काल में उसी तरह खतरे में थीं, जिस तरह दिल्ली सल्नतत के अन्य सुल्तानों के समय में थीं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता