मानवदेह की मृत्यु के तीन लक्षण हैं- फैंफड़ों का सांस लेना बंद कर देना, हृदय की धड़कन रुक जाना तथा मस्तिष्क का काम करना बंद कर देना। अभी तक वैज्ञानिक यह निश्चित नहीं कर पाये हैं कि मृत्यु के समय हृदय की धड़कन का बंद होना, फैंफड़ों का बंद होना तथा मस्तिष्क का काम करना बंद कर देना, इन तीन घटनाओं में से पहली घटना कौनसी होती है तथा इनका क्रम क्या होता है।
सामान्यतः चिकित्सकों का अनुभव है कि यदि इन तीनों घटनाओं में से कोई एक घटना घटित हो गयी है तो दूसरी तथा तीसरी घटना कुछ ही समय में स्वतः ही घट जायेगी। चिकित्सकों के अनुसार इन तीनों घटनाओं में से पहले कोई भी घट सकती है, उनके घटित होने का कोई क्रम निर्धारित नहीं है।
यह कहना सही नहीं होगा कि मृत्यु के पश्चात प्राणी की देह में कोई परिवर्तन होना संभव नहीं है। प्राणी की स्वाभाविक मृत्यु के बाद भी उसके शरीर में कुछ जैविक परिवर्तन देखे गये हैं। जैसे बालोें का बढ़ना, नाखूनों का बढ़ना, शरीर से अपान वायु का निःसरण होना तथा मुँह से झाग आना।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि शरीर के बाह्य एवं आंतरिक भागों में आये परिवर्तनों को मृत्यु का कारण नहीं माना जा सकता। विश्व में जितनी भी सभ्यतायें हुई हैं उनमें यह विश्वास रहा है कि मनुष्य केवल शरीर नहीं है, शरीर के भीतर कोई रहता है जो मनुष्य की देह के जन्म लेने, जीवित रहने अथवा मृत्यु को प्राप्त हो जाने के लिये जिम्मेदार है।
हिन्दू इसे आत्मा कहकर पुकारते हैं। इसाईयों ने सोल और मुसमानों ने इसे रूह कहकर पुकारा है। इसी प्रकार रोमन, सुमेरियन, माया, इन्का तथा सिंधु सभ्यताओं सहित जितनी भी सभ्यताएं अतीत में हो चुकी हैं, उन सबमें थोड़े बहुत अंतर से इस बात को स्वीकार किया गया है कि मृत्यु का मुख्य कारण आत्मा का देह त्याग देना है।
निश्चित है मृत्यु का समय
भारतीय सभ्यता सहित संसार की अधिकांश सभ्यताओं की यह मान्यता भी रही है कि प्रत्येक मनुष्य को गिनी हुई साँसें मिलती हैं। जब साँसों की संख्या पूरी हो जाती है तो मानव साँस लेना बंद कर देता है और उसकी मृत्यु हो जाती है।
भारतीय ज्योतिष विज्ञान तो यहाँ तक मान्यता रखता है कि जीवात्मा के धरती लोक पर देह धारण करने और देह त्याग करने का समय निश्चित है, और इस समय से जीवात्मा के धरती पर आने या जाने के बाद का जीवन प्रभावित होता है।
भारतीय अध्यात्म के अनुसार मृत्यु के बाद का जीवन एक जैसा नहीं है। उसके कई रूप होते हैं। मृत्यु के बाद मिलने वाले अगले जीवन की नींव इस जीवन के कर्मों, मृत्यु की परिस्थितियों, मृत्यु के समय मस्तिष्क में आये विचारों तथा और भी बहुत सारे कारकों पर भी निर्भर करती है।
-डॉ. मोहन लाल गुप्ता