लाल किले में मुगल शहजादियों के विवाह की शहनाइयाँ फिर से बजने लगीं! ये शहनाइयाँ अकबर के समय से बंद पड़ी थीं।
औरंगजेब के मन में अपने बड़े भाई दारा शिकोह के विरुद्ध अपार घृणा थी इसलिए औरंगजेब ने दारा शिकोह की नृशंस हत्या करवाई थी किंतु ऐसा लगता है कि जब दारा शिकोह मर गया तो औरंगजेब के मन में दारा के सद्गुणों के प्रति किंचित् सम्मान का भाव जागा।
दारा के महल में गुलाम बंदी नामक एक नर्तकी हुआ करती थी। वह भी अपने स्वामी दारा की तरह सद्गुणों की खान थी। दारा को मारने के बाद औरंगजेब ने गुलाम बंदी से विवाह कर लिया। उसे उदयपुरी बेगम कहा जाता था, शहजादे कामबख्श का जन्म उसी के पेट से हुआ था।
औरंगजेब ने दारा सहित अपने तीनों भाइयों के बच्चों को संरक्षण देने का निश्चय किया तथा उन्हें लालन-पालन के लिए अपनी बहिनों को सौंप दिया। सबसे बड़ी बहिन जहानआरा ने दारा शिकोह एवं मुरादबक्श की पुत्रियों को संभाला तो सबसे छोटी बहिन गौहरआरा ने मरहूम भाई शाहशुजा की पुत्रियों को पाला। गौहरआरा ने दारा शिकोह की बड़ी पुत्री सलीमा बानू बेगम तथा दारा शिकोह के एकमात्र जीवित पुत्र सिपहर शिकोह का भी लालन-पालन किया।
मरहूम दारा शिकोह की पुत्री जहांजेब बानो को उसकी बुआ जहानआरा ने बड़े लाड़ से पाला। उसके व्यक्तित्व में जहानआरा की छाप दिखाई देती थी तथा वह पढ़ाई-लिखाई में बहुत रुचि लेती थी। जहांजेब बानो को मुगलिया इतिहास में जानी बेगम के नाम से जाना जाता है। जानी बेगम पर औरंगजेब का अगाध स्नेह था।
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औरंगजेब ने अनुभव किया कि हरम में रह रही कुंआरी शहजादियों के मनमुटाव के कारण लाल किले का वातावरण विषाक्त रहता था। राजनीतिक षड़यंत्र रचने में ये शहजादियां शहजादों से ज्यादा रुचि दिखाती थीं। इस कारण औरंगजेब ने अपने परबाबा अकबर द्वारा बनाए गए उस नियम को तोड़ने का निर्णय लिया जिसमें शहजादियों का विवाह न करने की व्यवस्था की गई थी।
ई.1669 में औरंगजेब ने अपने पुत्र शाह आजम का विवाह दारा शिकोह की पुत्री जहांजेब बानो अर्थात् जानी बेगम से कर दिया। औरंगजेब जानी बेगम तथा उसके बच्चों से विशेष स्नेह करता था।
ई.1672 में गौहर आरा ने दारा शिकोह की दूसरी पुत्री सलीमा बानू बेगम का विवाह औरंगजेब के चौथे शहजादे मुहम्मद अकबर से करवाया। इस विवाह में गौहरआरा ने सलीमा बानू की माँ की समस्त धार्मिक एवं शाही रस्में पूरी कीं। इस प्रकार लाल किले में मुगल शहजादियों के विवाह की शहनाइयां फिर से बजने लगीं।
ई.1673 में औरंगजेब ने अपनी पुत्री जुबदत-उन-निसा का विवाह दारा शिकोह के छोटे पुत्र सिपहर शिकोह से किया। औरंगजेब की छोटी बहिन गौहर आरा तथा ममेरी बहिन हीमदा बानू बेगम ने इस विवाह का पूरा प्रबंध किया। इस विवाह के लिए दिल्ली के लाल किले के बाहर स्थित दिल्ली गेट से लेकर गौहर आरा के महल तक सड़क के दोनों ओर लकड़ी का सजावटी ढांचा बनाया गया जिस पर रौशनी एवं आतिशबाजी की गई।
औरंगजेब ने अपने तीनों भाइयों और बहिन रौशनआरा को मरवाया था किंतु ऐसा नहीं था कि औरंगजेब अपने परिवार से प्रेम नहीं करता था। औरंगजेब के संरक्षण में उसकी शेष तीनों बहिनें लम्बे समय तक जीवित रहीं। रौशनआरा की मृत्यु के चार साल बाद ई.1675 में पुरहुनार बेगम की मृत्यु हुई। कहा जाता है कि इसका जन्म शाहजहाँ की बेगम मुमताजमहल के पेट से नहीं हुआ था अपितु यह औरंगजेब की सौतेली बहिन थी तथा इसका जन्म शाहजहाँ की सबसे पहली पत्नी कांधरी बेगम के पेट से हुआ था जिसका वास्तविक नाम परहेज बेगम था।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार परहेज बेगम तथा पुरहुनार बेगम अलग-अलग थीं। इनमें से परहेज बेगम का जन्म कांधारी बेगम के पेट से तथा पुरहुनार बेगम का जन्म मुमताजमहल के पेट से हुआ था।
औरंगजेब द्वारा शाह-बेगम के पद पर पुनर्प्रतिष्ठित जहानआरा ई.1681 तक औरंगजेब की सल्तनत को संभालती रही। उसने अपने जीवन काल में कई मस्जिदें बनवाईं तथा अरबी एवं फारसी के कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की।
जहानआरा ने अपने जीवनकाल में ही दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास अपना मकबरा बनवाया। ई.1681 में जब जहानआरा मर गई तो उसे इसी मकबरे में दफनाया गया। जहानआरा की इच्छा के अनुसार इस कब्र को हरी घास से ढका गया जो गरीबों को भी बिना किसी धन के नसीब होती है।
जहानआरा की मृत्यु के समय उसके पास लगभग तीन करोड़ रुपए की सम्पत्ति थी जो निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर रहने वाले फकीरों में बांट दी गई। अंत में केवल गौहरआरा बेगम बची जो औरंगजेब की मृत्यु से कुछ महीने पहले ई.1706 में मरी। जब तक वह जीवित रही, औरंगजेब उससे प्रेम करता रहा और हर किसी से कहता रहा कि अब मेरी माँ की चौदह संतानों में से केवल दो संतानें जीवित हैं, मैं और मेरी बहिन गौहर आरा!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता