एक पुरानी रोमन कहावत है कि सीजर की पत्नी को संदेहों से परे होना चाहिए। (Caesar’s wife must be above suspicion) इस कहावत का भारतीय परम्परागत शब्दावली में अनुवाद इस प्रकार किया जाता है कि सीजर की पत्नी को पवित्र होना ही नहीं चाहिए, पवित्र दिखना भी चाहिए!
1 जुलाई 2022 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक जज द्वारा जो अनावश्यक टिप्पणियां की गईं, उनसे सीजर की पत्नी अनावश्यक रूप से संदेह के घेरे में आ गई। यहाँ सीजर की पत्नी से आशय उन टिप्पणियों से है जो एक जज द्वारा अनावश्यक रूप से की गईं। उन टिप्पणियों का उद्देश्य भले ही पवित्र रहा होगा किंतु उनका स्वरूप टिप्पणियों के उद्देश्य की पवित्रता के अनुरूप नहीं था। यही कारण है कि पूरा देश इन अनावश्यक टिप्पणियों को सुनकर स्तब्ध रह गया!
भारत में न्यायालय की सर्वोच्चता एवं उसके सम्मान को सर्वोपरि माना गया है। यह सर्वोच्चता और सम्मान न केवल संविधान द्वारा स्थापित किया गया है अपितु भारत की जनता द्वारा भी सहज प्रसन्नता से स्वीकार किया गया है। जब मामला सर्वोच्च न्यायालय की सर्वोच्चता और सम्मान का हो तो प्रत्येक नागरिक कुछ भी प्रतिक्रिया देने से पहले संभल जाता है। फिर भी सर्वोच्चता और सम्मान के नाम पर यह देश गूंगा-बहरा तो नहीं बन सकता!
मामला केवल इतना था कि एक प्रार्थी द्वारा यह याचिका प्रस्तुत की गई थी कि उसके विरुद्ध देश के विभिन्न भागों में जो पुलिस थानों में प्राथमिकियां लिखी गई हैं, उन सब मुकदमों को एक साथ जोड़कर दिल्ली स्थानांतरित कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट के जज को इस याचिका पर निर्णय देना था।
कानूनी धाराओं के आलोक में सुप्रीम कोर्ट के ऑनरेबल जज महोदय चाहे जो फैसला देते, उस पर किसी की प्रतिक्रिया नहीं आती क्योंकि वह कोर्ट का निर्णय होता। भारत में या तो कोर्ट के फैसले का स्वागत किया जाता है या फिर अगले प्लेटफॉर्म पर अपील की जाती है।
अभी भी जज ने चार लाइनों का एक फैसला दिया ही है कि आप हाईकोर्ट जाइए! इतना पर्याप्त था। ऐसा पहले भी सैंकड़ों बार हुआ है कि लोग त्वरित न्याय की आशा में अपने केस लेकर सीधे ही सुप्रीम कोर्ट में आ जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट उनसे पूछ लेता है कि वे सीधे ही यहाँ क्यों आए हैं? प्रार्थी के जवाब से संतुष्ट होने पर सुप्रीम कोर्ट उन्हें सुन लेता है या संतुष्ट नहीं होने पर, उन्हें निचली अदालत में जाने का निर्देश देता है किंतु किसी जज द्वारा ऐसी टिप्पणी पहली बार की गई है कि आप घमण्डी हैं, इसलिए निचली अदालत में या हाईकोर्ट जाने की बजाय सीधे सुप्रीम कोर्ट में चले आए हैं।
ऑनरेबल जज ने इस टिप्पणी के साथ और भी जो टिप्पणियाँ कीं उनसे तो ऐसा लगता है कि जज ने बिना केस की सुनवाई किए, यह निर्णय दे दिया कि वादी के कारण ही देश में आग लगी हुई है। जज की इस टिप्पणी के बाद जनता द्वारा यह प्रतिक्रिया देना कि आग तो पूरी दुनिया में लगी हुई है और यह आग आज से थोड़े ही लगी हुई है, यह तो सैंकड़ों साल से लगी हुई है, स्वाभाविक है।
जज महोदय ने याचिका की सुनवाई के दौरान जो और भी जो अनावश्यक टिप्पणियां दीं, उनसे पूरे देश के जनमानस में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। 1 जुलाई 2022 को सोशियल मीडिया प्लेटफार्मों पर जनता द्वारा क्या कुछ नहीं कहा गया है! ये प्रतिक्रियाएं जनसाधारण की मानसिक व्यथा को प्रकट करती हैं। इन्हें पढ़कर ऐसा लगता है कि जनता का मानना है कि जज ने इन टिप्पणियों के माध्यम से जनता के सम्मान को ठेस पहुंचाई।
जिस प्रकार कोर्ट के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए, उसी प्रकार जनता के सम्मान को भी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए।
सीजर को यह जानना चाहिए कि सीजर भले ही कितना ही ताकतवर क्यों न हो और सीजर की पत्नी भले ही कितनी ही पवित्र क्यों न हो, उन्हें संदेह से ऊपर बने रहना होगा क्योंकि सीजर को शासन तो जनता पर ही करना है! जनता की आंखों में सीजर का सम्मान बना रहे, इसके लिए सीजर तथा उसकी पत्नी को स्वयं ही सतर्क रहना चाहिए।
- डॉ. मोहनलाल गुप्ता