Thursday, November 21, 2024
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भारत के विभाजनकारी तत्व

भारत के विभाजनकारी तत्व – साम्प्रदायिकता का संवैधानिक विकास (3)

भारत के जाति आधारित सामाजिक विन्यास एवं भारत में बाहर से आए विभिन्न जातियों एवं मजहबों के लोगों की बड़ी संख्या में उपस्थिति के कारण भारत के विभाजनकारी तत्व सदियों से मौजूद थे। कोई भी विदेशी शासक इन विभाजनकारी तत्वों को बढ़ावा देकर भारत में अपना शासन दीर्घकाल तक बनाए रख सकता था। अंग्रेजों ने भी यही किया।

सिंध को मुस्लिम-बहुल प्रांत बनाने की मांग

अंग्रेजों ने पहचाना कि इस्लाम भारत के विभाजनकारी तत्व के रूप में सर्वाधिक शक्तिशाली भूमिका निभा सकता है। इसलिए उन्होंने मुस्लिम लीग को अलगाववादी कार्यवाहियों के लिए उकसाया। मुस्लिम लीग के ई.1930 के इलाहाबाद सम्मेलन के तुरंत बाद ई.1931 में लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया।

इस सम्मेलन में मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों ने भारतीय विधान सभाओं में मुस्लिम समुदाय के लिये जनसंख्या के अनुपात से सीटों के आरक्षण की मांग की। उन्होंने यह मांग भी की कि सिंध को नये मुस्लिम बहुल प्रांत का दर्जा दिया जाये।

ई.1931 में मुहम्मद अली जिन्ना ने कहा कि भारत की समस्या को सुलझाने के लिए चार पक्षों में बात-चीत आवश्यक थी- (1) अंग्रेज सरकार, (2) भारतीय राज्य (देशी रियासतें) (3) मुसलमान और (4) हिन्दू। ई.1938 में उसने अपने इस तर्क को पुनः दोहराया।

अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता की हवा निकाली

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ई.1932 में अखिल भारतीय स्तर पर हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रयास किए गए तथा एकता सम्मेलन का आयेाजन किया गया। इस सम्मेलन द्वारा नवम्बर 1932 में नियुक्त कमेटी हिन्दू-मुस्लिम समस्या के हल के एकदम करीब पहुंच गई थी। केन्द्रीय विधानसभा में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व के बारे में एक समझौता भी हो गया था और तय हो गया था कि 32 प्रतिशत सीटें मुसलमानों को दी जाएंगी।

लेकनि कमेटी का काम पूरा होने से पहले ही भारत सचिव सैमुएल होर ने हस्तक्षेप किया और घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार ने मुसलमानों को केंद्रीय विधानसभा में 33.33 प्रतिशत सीटें देने का फैसला किया है। उसने सिंध को भी अलग प्रदेश घोषित किया और उसको प्रचुर आर्थिक सहायता देने का वायदा किया। इस तरह एकता सम्मेलन की सारी मेहनत पर पानी फिर गया।

ई.1932 का साम्प्रदायिक पंचाट

जब गोलमेज सम्मेलनों से भी साम्प्रदायिक समस्या का समाधान नहीं हो पाया तो 16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश सरकार ने अपनी तरफ से साम्प्रदायिक पंचाट की घोषणा की। इस पंचाट निर्णय के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने केन्द्रीय विधान सभा में गैर-मुस्लिमों को 250 में से 105 सीटें (42 प्रतिशत) दी गईं जबकि भारत में हिन्दुओं की संख्या 75 प्रतिशत थी। मुसलमानों को 33 प्रतिशत सीटें दी गईं जबकि उनकी जनसंख्या 25 प्रतिशत थी।

साइमन कमीशन ने गैर-मुस्लिमों के लिए केन्द्रीय विधान सभा में 250 में से 150 (60 प्रतिशत) सीटें प्रस्तावित की थीं किंतु प्रधानमंत्री मैकडानल ने इन सीटों को घटाकर 42 प्रतिशत कर दिया। इससे हिन्दुओं, सिक्खों, जैनों एवं बौद्धों में सरकार एवं मुसलमानों के प्रति क्षोभ उत्पन्न होना स्वाभाविक था। इस पंचाट निर्णय के अन्तर्गत मुसलमानों की ही तरह यूरोपियनों, सिक्खों, भारतीय ईसाईयों, एंग्लो-इंण्डियनों, राजाओं और जागीरदारों को विभिन्न प्रान्तीय विधान सभाओं में अपने-अपने समुदायों के प्रतिनिधियों को पृथक् निर्वाचन प्रणाली द्वारा चुनने का अधिकार दिया गया।

दलितों को पृथक् प्रतिनिधित्व

भारत के विभाजनकारी तत्व के रूप में दूसरा बड़ा तत्व भारतीय समाज की जाति व्यवस्था थी। भारत के सामाजिक विन्यास में कर्म आधिरित जाति व्यवस्था का प्रावधान किया गया था किंतु समय के साथ इस व्यवस्था ने अत्यंत घृणित रूप ले लिया तथा यह भारत के विभाजनकारी तत्व के रूप में सामने आई। डा. अम्बेडकर ने दलित जातियों के लिए अलग अधिकारों की मांग की। अंग्रेजों ने इस मांग का भी लाभ उठाया।

डा. अम्बेडकर के प्रयत्नों से दलित वर्ग को अपने प्रतिनिधियों को पृथक निर्वाचन प्रणाली द्वारा चुनने की सुविधा दी गई। इस प्रकार इस पंचाट के माध्यम से अँग्रेजों ने बांटो एवं राज्य करो के सिद्धान्त पर देश में मुस्लिम साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने तथा भारतीय अल्पसंख्यकों को अनुचित महत्त्व प्रदान कर राष्ट्रीय एकता को छिन्न-छिन्न करने का काम किया।

इसी प्रकार दलितों को अलग प्रतिनिधित्व देकर हिन्दू-समाज का बंटवारा करने, राजाओं और जागीरदारों के लिए पृथक्-निवार्चन की व्यवस्था कर अप्रजातांत्रिक तत्त्वों को प्रोत्साहन देने तथा भारत में प्रगतिशील तत्त्वों की गतिविधियों को नियंत्रित एवं कमजोर करने का षड़यंत्र रचा।

इस प्रकार अंग्रेजों पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने धर्म एवं व्यवसाय के आधार पर प्रतिनिधित्व का विभाजन करके भारत को नई समस्याओं के खड्डे में फैंक दिया किंतु यह आरोप सही नहीं है, भारत के विभाजनकारी तत्व भारत में सदियों से मौजूद थे और भारत की आजादी के 75 साल बाद भी उसी तरह विध्वंसक गतिविधियां चलाए हुए हैं।

….. लगातार (4)

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1 COMMENT

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