ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा फ्रैंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी, भारत में व्यापारिक गतिविधियों के संचालन के साथ-साथ स्थानीय राज्यों की आंतरिक राजनीति में किसी न किसी पक्ष की सहायता करके अपने प्रभाव को बढ़ाने में प्रयासरत थीं। इस समय मद्रास और पाण्डिेचेरी, कर्नाटक राज्य में थे। अँग्रेज और फ्रांसीसी दोनों ही, कर्नाटक में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते थे। 1742 ई. में फ्रांसिसी अधिकारी डूप्ले, पाण्डिचेरी का गवर्नर बनकर आया। उसने भारत में आते ही अँग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। इस कारण अँग्रेजों और फ्रांसिसियों के बीच की व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में बदल गई। जिस समय डूप्ले भात आया, उस समय भारत के पूर्वी तट पर पांडिचेरी फ्रांसीसियों के अधिकार में था तथा मद्रास अँग्रेजों के। ये बस्तियां किलेबंद नगर थे और कर्नाटक के नवाब के राज्य में थे जिसकी राजधानी अर्काट थी। उन दिनों यूरोप में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के बीच भयानक प्रतिद्वंद्विता चल रही थी जिसका प्रभाव अमरीका तथा एशिया में स्थित दोनों देशों की कम्पनियों पर पड़ता था।
वाल्टेयर ने लिखा है- ‘हमारे देश में तोप का पहला गोला छूटने के साथ ही अमरीका और एशिया की तोपों में भी आग लग जाती थी।’
कर्नाटक का प्रथम युद्ध (1746-48 ई.)
भारत में फ्रैंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी के उपनिवेश की स्थापना के उद्देश्य से डूप्ले के नेतृत्व में 1746 ई. में पहली बार एक भारतीय फ्रैंच सेना बनाई गई। इस फ्रैंच सेना ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से तीन युद्ध किये जिन्हें कर्नाटक के युद्ध कहते हैं। प्रथम कर्नाटक युद्ध के तीन प्रमुख कारण थे-
(1.) यूरोप में ऑस्ट्रिया नामक एक देश है। अँग्रेज और फ्रांसिसी दोनों ही अपने-अपने प्रभाव के व्यक्ति को ऑस्ट्रिया का शासक बनाना चाहते थे।
(2.) अँग्रेजों और फ्रांसीसियों में अमरीका में औपनिवेशिक विस्तार के लिये संघर्ष चल रहा था।
(3.) दोनों ही कम्पनियाँ भारत में व्यापारिक स्वामित्व प्राप्त करना चाहती थीं।
इन तीन कारणों के रहते यह संभव नहीं था कि भारत में अँग्रेजी कम्पनी तथा फ्रैंच कम्पनी के बीच युद्ध न हो। इसलिये अँग्रेजों और फ्रांसिसियों ने अपने-अपने देशों की सरकारों से अनुमति लेकर एक दूसरे के विरुद्ध भारत में भी युद्ध छेड़ दिया। अँग्रेज सेनापति बारनैट ने कुछ फ्रांसिसी जहाजों को पकड़ लिया। इस पर डूप्ले ने मॉरिशस में फ्रांसिसी गवर्नर ला-बूर्डोने से सहायता मांगी। ला-बूर्डाने तीन हजार सैनिक लेकर भारत आया। उसने अँग्रेजी सेना को हराकर 21 सितम्बर 1746 को मद्रास पर अधिकार कर लिया। क्लाइव भी पकड़ा गया। ला-बूर्डाने को मद्रास पर अधिकार बनाये रखने में कोई रुचि नहीं थी इसलिये वह अँग्रेजों से बड़ी धन राशि लेकर मॉरीशस लौट गया जबकि डूप्ले चाहता था कि मद्रास पर अँग्रेजों का ही अधिकार रहे। इसलिये डूप्ले ने मद्रास पर पुनः आक्रमण किया तथा मद्रास पर पुनः अधिकार कर लिया। उधर अँग्रेजों ने पाण्डिचेरी पर आक्रमण करके उस पर अधिकार करने का असफल प्रयास किया।
उन्हीं दिनों कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन ने अपनी बस्तियों की सुरक्षा के लिये अँग्रेजों से सहायता मांगी तथा फ्रांस के विरुद्ध सेना भेजी जिसमें लगभग 10 हजार सैनिक थे। फ्रांस की ओर से कैप्टेन पेराडाइज ने नवाब की सेना का सामना किया। पेराडाइज के पास केवल 230 फ्रांसिसी सैनिक और यूरोपीय ढंग से प्रशिक्षित 700 भारतीय सैनिक थे। यह लड़ाई सेंट टोमे की लड़ाई कहलाती है जो अडयार नदी के किनारे स्थित है। इस युद्ध में नवाब की सेना परास्त हो गई। फ्रांसीसियों द्वारा किसी मुगल प्रांतपति के विरुद्ध भारत में लड़ी गई यह पहली लड़ाई थी। इस लड़ाई ने मुगलों तथा उनके सूबेदारों के अजेय होने का मिथक तोड़ दिया।
1748 ई. में यूरोप में फ्रांस तथा इंग्लैण्ड के बीच संधि हो जाने पर भारत में भी दोनों कम्पनियों के बीच युद्ध समाप्त हो गया। दोनों ने एक दूसरे के प्रदेश और बंदी लौटा दिये। मद्रास फिर से अँग्रेजों को मिल गया। इस युद्ध के बाद फ्रांसिसी कम्पनी दक्षिण में दूसरी बड़ी शक्ति के रूप में उभर कर सामने आई।
कनार्टक का दूसरा युद्ध (1749-54 ई.)
इस युद्ध के दो मुख्य कारण थे-
(1.) हैदराबाद तथा कर्नाटक की गद्दी के उत्तराधिकार का प्रश्न और
(2.) अँग्रेजों तथा फ्रांसिसियों की बढ़ती हुई राजनीतिक अभिलाषाएँ।
21 मई 1748 को हैदराबाद के निजाम आसफजाह की मृत्यु हो गई और उसका पुत्र नासिरजंग उसका उत्तराधिकारी बना परंतु नासिरजंग के भतीजे मुजफ्फरजंग ने विद्रोह कर दिया। इसी तरह कर्नाटक में चांदा साहब ने नवाब अनवरूद्दीन के विरुद्ध षड्यन्त्र रचा। चांदा साहब कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन का बहनोई था।
डूप्ले ने हैदराबाद में मुजफ्फरजंग से और कर्नाटक में चांदा साहब से गुप्त संधि कर ली। अँग्रेज भी नासिरजंग और मुहम्मद अली के साथ मिलकर षड़यंत्र करते आ रहे थे। फ्रांसीसियों ने चांदा साहब को कर्नाटक का नवाब बना दिया परन्तु अँग्रेज मुहम्मद अली को नवाब बनाना चाहते थे। इसलिये उन्होंने क्लाइव को एक छोटी सेना देकर अर्काट भेजा जहाँ दोनों पक्षों के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में फ्रांसीसी सेना परास्त हो गई। डूप्ले को फ्रांस बुला लिया गया और गोडेहू को फ्रैंच इण्डिया कम्पनी का गवर्नर जनरल बनाकर भेजा गया। मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब बन गया। इस प्रकार कर्नाटक में अँग्रेजों का दबदबा स्थापित हो गया किन्तु हैदराबाद के निजाम ने फ्रांसीसियों को राजस्व वसूली के अधिकार दे दिये। इस धन से फ्रांसीसी अपनी सेना को बनाये रख सके और हैदराबाद में उनका दबदबा बना रहा। कर्नाटक के द्वितीय युद्ध में मिली असफलता के लिये फ्रांस की सरकार ने मॉरीशस के गवर्नर ला-बूर्डोने को जिम्मेदार ठहराया तथा उसे जेल में डाल दिया।
कर्नाटक का तीसरा युद्ध (1756-63 ई.)
1756 ई. में यूरोप में पुनः युद्ध छिड़ जाने से भारत में भी अँग्रेजों और फ्रांसीसियों में युद्ध आरम्भ हो गया। फ्रांस सरकार ने 1758 ई. में काउंट लाली को भारत भेजा। इस बीच अँग्रेजों ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराकर बंगाल पर अधिकार कर लिया। काउंट लाली ने 1758 ई. में फोर्ट सेंट डेविड को जीत लिया और तंजौर पर आक्रमण कर दिया। इसमें लाली को सफलता नहीं मिली। लाली ने मद्रास को जीतने का प्रयास किया किंतु उसमें भी सफलता नहीं मिली। उसने हैदराबाद से बुस्सी को बुलाया। ब्रिटिश अधिकारी पोकॉक के नेतृत्व में फ्रांस की सेना को कई स्थानों पर हराया गया। कर्नाटक में भी फ्रांसीसियों की हार हो गई। अँग्रेजों ने हैदराबाद के निजाम से मछलीपट्टम् और उत्तरी सरकार के जिले छीन लिये। जनवरी 1760 में ब्रिटिश सेनापति आयरकूट ने वैण्डिवाश नामक स्थान पर फ्रांसीसी सेना को परास्त करके बुस्सी को बंदी बना लिया। जनवरी 1760 में फ्रैंच सेनाएं पाण्डिचेरी लौट गईं। अँग्रेजों ने पाण्डिचेरी पर भी घेरा डाला तथा आठ माह बाद उस पर अधिकार कर लिया। फ्रांसीसियों के माही क्षेत्र पर भी अँग्रेजों का प्रभुत्व हो गया। इस प्रकार लगभग समस्त भारतीय फ्रैंच उपनिवेश फ्रांसीसियों के हाथ से निकल कर अँग्रेजों के पास चले गये। 1763 ई. में यूरोप में अँग्रेजों एवं फ्रांसीसियों के बीच सप्तवर्षीय युद्ध समाप्त होने पर यद्यपि फ्रांसीसियों को उनके उपनिवेश तो वापस मिल गये किन्तु उनकी राजनीतिक गतिविधियाँ समाप्त हो गईं। इसी बीच बंगाल में प्लासी और बक्सर के युद्धों के बाद अँग्रेजों ने बंगाल पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। उधर कर्नाटक में फ्रांसीसियों की पराजय से फ्रांसीसियों की शक्ति समाप्त हो गई तथा अँग्रेजों के लिये भारत में सत्ता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
निष्कर्ष
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि अँग्रेजों के भारत आगमन के समय लगभग पूरे देश में राजनीतिक अस्थिरता व्याप्त थी। चारों ओर लूटमार का वातावरण था। औरंगजेब की नीतियों के कारण केन्द्रीय सत्ता कमजोर चुकी थी तथा उसकी मृत्यु के बाद देश में विभिन्न अर्द्धस्वतंत्र एवं स्वायत्तशासी राज्यों का उदय हो चुका था। मुगलों के पतन से उत्पन्न हुई राजनीतिक शून्यता को भरने के लिये मराठे सामने आये। इसी दौरान हुए अफगानी आक्रमणों ने तथा मराठों की आपसी फूट ने मराठा शक्ति को कमजोर कर दिया। यूरोपीय देशों से आई हुई कम्पनियां इस राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाने तथा एक दूसरे को उन्मूलित करने के लिये जबर्दस्त प्रतिद्वंद्विता कर रही थीं। अंत में अँग्रेज न केवल डचों और फ्रांसीसियों को भारत से उन्मूलित करने में सफल रहे अपितु उन्होंने मराठों तथा हैदराबाद, मैसूर एवं बंगाल आदि राज्यों के स्थानीय शासकों को परास्त करके भारत में राजीनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित होने में सफलता प्राप्त कर ली।
यूरोपीय देशों से आई हुई कम्पनियां भारत की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाने तथा एक दूसरे को उन्मूलित करने के लिये जबर्दस्त प्रतिद्वंद्विता कर रही थीं। अंत में अँग्रेज न केवल डचों और फ्रांसीसियों को भारत से उन्मूलित करने में सफल रहे अपितु उन्होंने मराठों तथा हैदराबाद, मैसूर एवं बंगाल आदि राज्यों के स्थानीय शासकों को परास्त करके भारत में राजीनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित होने में सफलता प्राप्त कर ली।