6 नवम्बर 2022 को देश के 6 राज्यों में 7 रिक्त विधानसभा सीटों के उपचुनावों के परिणाम आए। 7 सीटों में से 4 भारतीय जनता पार्टी ने जीतीं। 3 सीटों पर क्षेत्रीय दलों ने जीत प्राप्त की और कांग्रेस शून्य पर आउट हो गई। क्षेत्रीय दलों के बिखरे हुए गुच्छे में से 1 बिहार के क्षेत्रीय दल ने, 1 महाराष्ट्र के क्षेत्रीय दल ने तथा 1 सीट तेलंगाना के क्षेत्रीय दल ने जीती।
राष्ट्रीय राजनीतिक दल कांग्रेस शून्य पर सिमटी, इसमें कोई खास बात नहीं है। खास बात तो यह है कि कांग्रेस क्षेत्रीय दल नहीं है, राष्ट्रीय स्तर का दल है जिसने कम से कम छः दशकों तक देश पर शासन किया है। इससे भी अधिक खास बात यह है कि उपचुनावों में शामिल 7 सीटों में से 2 पर पिछले चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी जीते थे। कांग्रेस ने ये दोनों सीटें गवां दीं।
उपचुनावों के ये नतीजे आश्चर्य में डालने वाले हैं। अमरीका, इंगलैण्ड और दुनिया के अधिकतर प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं वाले देशों में कम से कम दो राष्ट्रीय पार्टिंयां वहाँ के मतदाताओं की पहली पसंद हैं। क्या विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करने वाला भारत अब राष्ट्रीय स्तर की एक राजनीतिक पार्टी और तिनका-तिनका बिखरे हुए क्षेत्रीय दलों के भरोसे लोकतंत्र की गाड़ी हांकेगा?
कांग्रेस की हवा दिन पर दिन निकलती जा रही है और उसकी दशा पिचके हुए गुब्बारे जैसी रह गई है। इसका कारण न तो देश के मतदाता हैं, न देश की दूसरी राजनीतिक पार्टियाँ हैं, अपितु स्वयं कांग्रेस ही है। जब देश को आजादी मिली तो अंग्रेजों द्वारा बड़ी चालाकी से सत्ता की चाबी कांग्रेस को सौंपी गई। सत्ता की चाबी हाथों से खिसक न जाए, इसके लिए कांग्रेस ने दो तिलिस्म खड़े किए। पहला तिलिस्म यह झूठ था कि कांग्रेस ने देश को आजादी दिलवाई। दूसरा तिलिस्म कांग्रेस ने अपने नेताओं को महात्मा, महामना, चाचा, दीनबंधु, देशबंधु, भारत कोकिला आदि उपाधियां देकर खड़ा किया।
कुछ दशकों तक तो भारत का मतदाता इन तिलिस्मों के सम्मोहन में बंधा हुआ कांग्रेस को सत्ता में टिकाए रहा। जब ये तिलिस्म बिखरने लगे तो कांग्रेस ने देश के मतदाताओं के लिए नया चक्रव्यूह तैयार किया और मतदाताओं के तीन टुकड़े किए- सामान्य, दलित एवं अल्पसंख्यक। कांग्रेस ने कई दशकों तक दलितों और अल्पसंख्यकों की राजनीति की तथा सामान्य मतदाता को उपेक्षित किया। जब दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने सामान्य में से अन्य पिछड़ा वर्ग और पिछड़ों में से महापिछड़ा वर्ग ढूंढ लिए तो कांग्रेस का चक्रव्यहू बिखर गया और शाहबानो प्रकरण के बाद राजीव गांधी इतिहास के नेपथ्य में चले गए।
अब कांग्रेस ने देश के मतदाताओं को उलझाने के लिए एक नया उपाय ढूंढा। उसने स्वर्गीय राजीव गांधी की विदेशी मूल की पत्नी को देश के मतदाताओं के समक्ष कांग्रेस की अध्यक्षा के रूप में प्रस्तुत किया। भारत की भोली-भाली जनता ने कांग्रेस की इस अध्यक्षा को न केवल महात्मा और चाचा का वारिस समझा, अपितु उसमें इंदिरा गांधी के भी दर्शन किए जिसने बांगला देश को पाकिस्तान से अलग किया था और भारत को परमाणु शक्ति बनाया था। इतना ही नहीं कांग्रेस ने भारत की जनता से उस सहानुभूति का वोट भी बटोरा जो राजीव गांधी की आतंकी हमले में मृत्यु होने से उत्पन्न हुई थी। भारत की जनता पूरे दस साल तक इस सहानुभूति के सम्मोहन में बंधी रही।
यहाँ से कांग्रेस ने मतदाताओं के लिए एक नया जाल बुनना आरम्भ किया। उसने अपने प्रधानमंत्री को दुनिया का सबसे बड़ा अर्थशास्त्री घोषित किया। इस अर्थशास्त्री ने कहा कि भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। अर्थशास्त्री का यह वक्तव्य कांग्रेस के लिए सेल्फगोल करने जैसी बात थी। कांग्रेस शायद भूल गई थी कि भारत का मतदाता भोला-भाला है किंतु बेवकूफ नहीं है। भारतीय मतदाता अभी अर्थशास्त्री के वक्तव्य का अर्थ समझने का प्रयास कर ही रहा था कि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री की सरकार के गृहमंत्री ने देश में सैफ्रॉन टेरेरिज्म (भगवा आतंकवाद) फैल रहा है कहकर एक निर्दोष साध्वी, सेना के एक निर्दोष कर्नल तथा कुछ अन्य हिन्दूवादी लोगों को ऐसे अपराध में पकड़कर जेल में बंद कर दिया जो अपराध उन्होंने किए ही नहीं थे।
कांग्रेस के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तुत राष्ट्रीय संसाधानों पर अल्पसंख्यकों के पहले अधिकार के सिद्धांत तथा गृहमंत्री द्वारा प्रस्तुत सैफ्रॉन टेरेरिज्म के सिद्धांत को अभी जनता समझ ही रही थी कि कुछ धुरंधर कांग्रेसी देश की बहुसंख्यक जनता के खिलाफ जोर-जोर से चिल्लाने लगे। इनके वक्तव्य टेलिविजनों और अखबारों पर बिना किसी नागा के दिखाई देने लगे। इन दिग्गजों में कपिल सिब्बल, मणिशंकर अय्यर, पी. चिदम्बरम् तथा दिग्विजयसिंह के नाम लेना पर्याप्त होगा।
जब पूरी कांग्रेस देश के बहुसंख्यक मतदाता के विरुद्ध हो गई तो भारतीय मतदाताओं के समक्ष खड़ा किया गया सहानुभूति का सम्मोहन बिखर गया और 2014 में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। अब कांग्रेस ने चाचा के खानदान में पैदा हुए तथा महात्माजी के असली नाम में लगने वाले सरनेम वाले एक लड़के को अपने नेता के रूप में प्रस्तुत किया जो कांग्रेस की समस्त महान उपलब्धियों का अकेला वारिस था।
इस लड़के ने कोट के ऊपर जनेऊ पहनकर स्वयं को ब्राह्मण घोषित किया और देश के प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का प्रयोग करना आरम्भ किया। हालांकि अपशब्दों के प्रयोग की शुरुआत तो इस लड़के की माता ‘हत्यारा’ और ‘मौत का सौदागर’ कहकर पहले ही कर चुकी थी। लड़के ने तो उन अपशब्दों को और अधिक तेजी से दोहराया। माता और पुत्र सहित पूरी कांग्रेस इस बात को पचा ही नहीं सकी कि एक चाय बेचने वाला लड़का देश का प्रधानमंत्री बन सकता है! कांग्रेस की दृष्टि में भारत के प्रधानमंत्री का पद तो विशिष्ट सरनेम वाले और विशिष्ट खानदान वाले लड़के के लिए सुरक्षित है!
जैसे-जैसे विशिष्ट सरनेम वाला लड़का देश के प्रधानमंत्री को गालियां देता गया, वैसे-वैसे कांग्रेस का ग्राफ नीचे गिरता गया। एक दिन उस लड़के ने यह कहा कि देश के प्रधानमंत्री सुधर जाएं वरना जनता प्रधानमंत्री को सड़कों पर जूते मारेगी। यह बात सुनकर भारत की भोली-भाली जनता अत्यंत दुःखी हुई। यह भारतीयों की भाषा नहीं है। भारत की जनता इन बातों को सुनने की आदी नहीं है।
जब विशिष्ट सरनेम वाले लड़के से कुछ होते नहीं दिखा तो, वह स्वयं ही कांग्रेस के अध्यक्ष पद की घोषित और अघोषित कुर्सियों को छोड़ भागा। दक्षिण भारत के एक सुलझे हुए, परिपक्व किंतु 80 वर्ष के वृद्ध नेता को कांग्रेस की कमान दी गई। अभी इस वृद्ध नेता ने अध्यक्ष की कुर्सी संभाली ही थी कि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री की सरकार में गृहमंत्री रहे शिवराज पाटिल के वक्तव्य ने देश को झकझोर कर रख दिया। इस समय उनकी आयु 87 वर्ष है। इन 87 वर्षों में उन्होंने यह खोज की कि श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने पार्थ को जेहाद करने का उपदेश दिया है।
भारत के गृहमंत्री एवं भारत की लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके शिवराज पाटिल के इस वक्तव्य को सुनकर पूरा देश सन्न रह गया। यह वही अतिवृद्ध नेता है जिसने देश में सैफ्रॉन टेरेरिज्म पनपने की थ्यौरी दी थी तथा ताज होटल में हुए आतंकी हमले वाले दिन थोड़ी-थोड़ी देर में कोट बदले थे।।
अब ऐसी स्थिति में यदि कांग्रेस विधान सभा के उपचुनावों में 7 में से 1 भी सीट नहीं जीत सकी तो इसमें आश्चर्य क्या है। आश्चर्य तो इस बात में है कि कांग्रेस अभी भी कुछ नहीं समझ पाएगी। वह भारत के मतदाताओं को दलित, अल्पसंख्यक, सामान्य, अन्य पिछड़ा आदि के रूप में देखती रहेगी। वह देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार घोषित करती रहेगी और कोट पर जनेऊ पहनकर घूमती रहेगी। इसीलिए मैंने लिखा है कि हे कांग्रेस तुमसे न हो पाएगा।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता
Explore the best online schools in Idaho, without leaving your house.
Get your degree from the best online schools in Idaho, and open up new opportunities.
Customize your education with online schools in Idaho, to accommodate your schedule.
Engage in discussions and group projects with online schools in Idaho, to deepen your understanding.
Discover the benefits of online education in Idaho, and thrive in your courses.
Online Schools in Idaho http://onlineschoolid6.com .