इण्डोनेशिया के मुसलमान पूरी दुनिया के मुसलमानों से अलग हैं। पूरी दुनिया में मुसलमानों ने अपनी पुरानी संस्कृति को नष्ट कर दिया है। पूरी दुनिया में मुसलमानों ने अपने पुरखों द्वारा अर्जित ज्ञान को अपना शत्रु समझ लिया है। पूरी दुनिया में मुसलमानों ने अपने पुरखों के स्थापत्य एवं शिल्प तथा पुस्तकों को आग में झौंक दिया है किंतु इण्डोनेशियाई द्वीपों के मुसलमान अपने पुरखों द्वारा अर्जित ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति एवं कला को अपनी अस्मिता की पहचान समझते हैं।
जावा सहित, इण्डोनेशिया द्वीप समूह के अन्य द्वीपों के मुसलमान, अरब तथा पश्चिम एशिया के मुसमलानों से काफी भिन्न हैं। चूंकि इन द्वीपों पर मातृ प्रधान सत्ता हुआ करती थी इसलिए मुसलमान बनने के बाद भी इण्डोनेशियाई द्वीपों के मुसलमान पुरुष के स्थान पर स्त्री की प्रधानता को ही स्वीकार किए हुए हैं।
यहाँ तलाक देने का अधिकार पुरुष को नहीं होकर, स्त्री को है। अरब तथा पश्चिम एशिया के मुसमलान मूर्ति पूजा नहीं करते जबकि जावा आदि द्वीपों के मुसलमानों ने पूरी तरह से मूर्तियों का परित्याग नहीं किया है। यही कारण है कि आज भी इन द्वीपों पर बड़ी संख्या में प्राचीन एवं नवीन मूर्तियां पाई जाती हैं।
इण्डोनेशिया के मुसलमान आज भी गीता पढ़ते हैं, रामलीला खेलते हैं तथा रामकथाओं का मंचन सार्वजनिक मंचों पर करते हैं। इण्डोनेशियाई द्वीपों के मुसलमानों में मांसाहार के विरुद्ध आंदोलन चल रहा है। इण्डोनेशियाई द्वीपों के मुसलमानों को हिन्दुत्व से नहीं अपितु इस्लाम की कट्टरता से दिक्कत है। बहुत से मुसलमान तो वापस हिन्दू धर्म में लौट भी रहे हैं।
इण्डोनेशिया के मुसलमान हाथों में रुद्राक्ष पहनते हैं, उन्हें अपनी दुकानों में हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों एवं चित्रों को रखने में कोई कठिनाई नहीं है। इण्डोनेशिया में आज भी रुपए पर हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र हैं।
इतना सब होने पर भी जब से इण्डोनेशिया में जाकिर नायक ने जमात का काम आरम्भ किया है, तब से इण्डोनेशिया के मुसलमान भी बदल रहे हैं। वे भी धीरे-धीरे इस्लाम की कट्टरता का अवलम्बन ग्रहण कर रहे हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता