पोप के शयनागार में फ्रांसीसी सम्राट का दूत
जब पोप यूरोप के ऊपर इनक्विजिशन का कहर बरपा कर रहे थे तब उधर उनकी वह ऊंची हैसियत कम होती जा रही थी जो उन्होंने रोम, जर्मनी, फ्रांस के राजाओं के सरताज बनकर जमा रक्खी थी।
धीरे-धीरे वे दिन लद गए जब वे किसी सम्राट को बिरादरी से बाहर का रास्ता दिखाकर या केवल धमकी देकर उसके घुटने टिकवा सकते थे। जब पवित्र रोमन साम्राजय की हालत खराब हो रही थी और पवित्र रोमन सम्राट रोम से दूर जर्मनी में रहा करता था तब फ्रांस का सम्राट पोप के कामों में हस्तक्षेप करने लगा।
ई.1303 में पोप की किसी बात से फ्रांस का शासक नाराज हो गया। उसने पोप के पास एक आदमी भेजा जिसने पोप के महल में बलपूर्वक घुसकर उसके शयन कक्ष में प्रवेश किया तथा पोप के मुँह पर उसका बड़ा अपमान किया। यद्यपि पोप के साथ बेइज्जती भरे बर्ताव को किसी भी देश ने नापसंद नहीं किया तथापि स्थिति बदल चुकी थी। कनौजा में पोप से मिलने के लिए सम्राट को घण्टों बर्फ में नंगे-पैर खड़े रहने की सजा अब इतिहास का पन्ना बनकर रह गई थी।
दो पोप – दो नगर
ई.1309 में ‘फ्रांसीसी’ नामक पोप हुआ। उसके काल में पोप रोम के भीतर इतना असुरक्षित हो गया कि वह रोम छोड़कर फ्रांस के आविन्यो नगर में चला गया और वहाँ जाकर रहने लगा। फ्रांस के सम्राट ने पोप को संरक्षण दिया। कैथोलिक चर्च के इतिहास में यह एक अद्भुत घटना थी। चर्च रोम में था और पोप फ्रांस में था। ई.1377 तक पोपों को फ्रांस के सम्राट के अंगूठे के अधीन रहना पड़ा।
ई.1378 में पोप का चुनाव करने वाले बड़े पादरियों के मण्डल में फूट पड़ गई। इसे ‘महान् मतभेद’ कहा जाता है। बड़े पादरियों के दो दल हो गए जिन्होंने अपना-अपना पोप चुन लिया। इनमें से एक पोप रोम चला गया और वहीं रहने लगा। रोमन सम्राट तथा यूरोप के बहुत से देशों ने उसी को पोप मान लिया। दूसरा पोप फ्रांस के अविन्या नगर में रहता रहा। फ्रांस के सम्राट तथा उसके समर्थक इस पोप का समर्थन करते रहे तथा केवल इसी पोप को मान्यता देते रहे। लगभग 40 वर्ष तक यही स्थिति रही।
प्रोफेसर वाइक्लिफ की हड्डियाँ आग में
रोम तथा फ्रांस के दोनों ही पोप स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि कहते और दूसरे पोप को कोसते थे। यूरोप की जनता इन दोनों पोपों को संदेह की दृष्टि से देखती थी। लोग अब सार्वजनिक रूप से पोप की आलोचना करने लगे थे। उन्हीं दिनों इंग्लैण्ड में वाइक्लिफ नामक एक पादरी हुआ।
उसने बाइबिल का पहली बार अंग्रेजी में अनुवाद किया। वह ऑक्सफोर्ड में प्रोफसर था तथा पोपों के आचरण का कटु-आलोचक था। अपने जीवन काल में तो वह पोपों की पहुँच से दूर रहा किंतु उसकी मृत्यु के 31 साल बाद ई.1415 में पोप ने आदेश दिया कि उसकी हड्डियों को उसकी कब्र से खोद निकाला जाए और उन्हें जला दिया जाए। ऐसा ही किया गया।
जॉन हस का अग्नि-दाह
वाक्लिफ की हड्डियाँ तो जल गईं किंतु पोप उसके विचारों को नष्ट नहीं कर सके। उसके विचार बोहेमिया (चेकोस्लोवाकिया) तक पहुँच गए। जॉन हस उसके विचारों से बहुत प्रभावित हुआ। उसने पोप की बड़ी आलोचना की। पोप ने उसे ईसाई धर्म से बाहर निकाल दिया किंतु पोप, ‘जॉन हस’ का इससे अधिक कुछ नहीं बिगाड़ सका। इसलिए ई.1415 में रोमन सम्राट को इस बात के लिए तैयार किया गया कि वह हस को कॉन्सटैन्स में बुलाए जहाँ ईसाई-संघ की परिषद् का आयोजन हो रहा था। सम्राट ने अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा का वचन देकर हस को परिषद् स्थल पर बुलाया।
जब हस परिषद् में उपस्थित हुआ तो उससे कहा गया कि वह अपनी गलती स्वीकार कर ले। हस ने ईसाई परिषद् के पदाधिकारियों के समक्ष एक शर्त रखी कि- ‘वे मुझे तर्क में परास्त करके अपने विचारों से सहमत कर लें, मैं अपनी गलती स्वीकार कर लूंगा।’ इस पर उसे वहीं पर जिंदा जला दिया गया। सम्राट की व्यक्तिगत सुरक्षा की गारण्टी हस की रक्षा नहीं कर सकी। चेकोस्लोवाकिया में आज भी जॉन हस को नायक माना जाता है, एक ऐसा नायक जिसने अपनी अंतरआत्मा की आवाज को बचाने के लिए शरीर को नष्ट हो जाने दिया।
बोहेमिया (चेकोस्लोवाकिया) में पोप के विरुद्ध क्रूसेड
जब जॉन हस को ईसाई संघ द्वारा जीवित ही जला दिए जाने के समाचार बोहेमिया (आज इसे चेकोस्लावाकिया कहते हैं) में पहुँचे तो वहाँ के लोग पोप के विरुद्ध सड़कों पर उतर आए। वे पोप के इस कृत्य की सार्वजनिक रूप से निंदा करने लगे। इस पर पोप ने इन विद्रोहियों के विरुद्ध क्रूसेड का आह्वान किया। समाज में सदा विद्यमान रहने वाले बदमाशों को इसी तरह के अवसरों की तलाश रहती है।
वे बोहेमिया के भद्र समाज के विरुद्ध क्रूसेड करने के लिए निकल पड़े। देखते ही देखते उनके समूह टिड्डीदल की भांति बोहेमिया की राजधानी के चारों तरफ दिखाई देने लगे। संकट की इस घड़ी में बोहेमिया के लोगों को बचाने वाला कोई नहीं था।
अतः बोहेमिया के लोगों ने अपने बच्चों, घरों एवं सम्पत्तियों को बचाने के लिए स्वयं ही मोर्चा लेने का निर्णय लिया और वे शहर के बीच एकत्रित होकर हमलावरों की तरफ बढ़ने लगे। वे लोग बोहेमिया में गाया जाने वाला वीररस का गीत ‘कड़खा’ गाते हुए हमलावरों के सामने पहुँच गए।
जैसे ही हमलावर बदमाशों ने नगरवासियों को इस तरह एकत्रित होकर आते हुए देखा तो उनके हौंसले जवाब दे गए। वे अपने हथियारों सहित वहीं से उलटे पैरों भाग लिए। बोहेमिया की जनता जीत गई, पोप के क्रूसेड का आह्वान उन्हें झुका नहीं सका।
बोहेमिया प्राग की यह घटना पूरे यूरोप के लिए एक मिसाल बन गई जो उन देशों में राष्ट्रवाद के उदय, आजादी की लड़ाई एवं गणतंत्र की स्थापना में प्रेरक तत्व सिद्ध हुई। प्राग की इस घटना को यूरोप में प्रोटेस्टेण्ट-आंदोलन के जनक के रूप में देखा जाता है। इस आंदोलन ने ईसाई-संघ को दो टुकड़ों में विभक्त कर दिया।
दोनों पोपों में समझौता
ई.1417 में रोम तथा फ्रांस के पोप में समझौता हो गया और दोनों दलों ने मिलकर एक नया पोप चुन लिया जो अपनी पूर्व राजधानी रोम में रहता था।
इटली की दुर्दशा
15वीं शताब्दी के अंत में इटली अल्पकाल के लिए विदेशी जर्मन शासन से मुक्त हुआ किंतु 16वीं शताब्दी के आरंभ में वह फिर यूरोपीय राजनीति के शिकंजे में जकड़ लिया गया। इस काल में स्पेनी सत्ता अपने चरमोत्कर्ष पर थी। फ्रांस के साथ उसके युद्ध चल रहे थे। रोमन साम्राज्य इतना कमजोर हो चुका था कि स्पेन, फ्रांस और ऑस्ट्रिया तीनों में रोम के प्रदेशों पर अधिकार करने के लिए प्रतिस्पर्धा चलने लगी। यह स्थिति नेपोलियन के आक्रमण के समय तक बनी रही।