जीनत-उन्निसा औरंगजेब की दूसरे नम्बर की बेटी थी। वह अपने बाबा शाहजहाँ की लाड़ली थी और अपने बाप औरंगजेब को पसंद नहीं करती थी। उसने दिल्ली की मिनी जामा-मस्जिद बनवाई!
हालांकि औरंगजेब नए भवनों का निर्माण करने के स्थान पुराने हिन्दू भवनों को तोड़ने पर पैसा, समय और श्रम व्यय करना चाहता था ताकि औरंगजेब के जीवनकाल में ही भारत से कुफ्र को समाप्त किया जा सके फिर भी औरंगजेब की संतानें तथा औरंगजेब के सूबेदार नए भवन बनाना चाहते थे ताकि उनकी मृत्यु के बाद भी उनका नाम इस संसार में जीवित रहे।
स्वयं औरंगजेब ने भी दिल्ली के लाल किले में एक मस्जिद बनवाई, जो उसकी सादगी का परिचय देती है। इसे मोती मस्जिद भी कहा जाता है। यह मस्जिद उच्च कोटि के संगमरमर से निर्मित की गई है। इस मस्जिद के बनाने के पीछे यह कारण बताया जाता है कि जब वह लाल किले से बाहर स्थित जामा मस्जिद में नमाज पढ़ने जाया करता था तो रास्ते में उसे यमुना-स्नान के लिए जाती हुई हिन्दू प्रजा दिखाई देती थी जो न केवल ढोेल-नगाड़े बजाती थी अपितु नाचती-गाती हुई किशनजी के भजन गाया करती थी।
औरंगजेब प्रतिदिन इस कुफ्र को नहीं देख सकता था और न वह पूरे देश से आने वाले हिन्दुओं को यमुना स्नान करने से रोक सकता था। इसलिए उसने लाल किले में ही एक मस्जिद बनवा ली।
किसनजी के भजन गाने वालों एवं नाचने-गाने वाले हिन्दुओं का डर औरंगजेब के मन में मरते समय तक बना रहा। अपने अंतिम दिनों में औरंगजेब ने लिखा कि उसे दुःख है कि वह उन काफिर हिन्दुओं का कुछ न कर सका जो नित्य ही ढोल-नगाड़े बजाते हुए और नाचते गाते हुए उसके किले के आगे से निकला करते थे!
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औरंगजेब कुछ समय के लिए लाहौर में भी रहा। इसलिए वहाँ भी उसने एक मस्जिद बनवाई जिसे बादशाही मस्जिद कहा जाता है। इस मस्जिद का मुख्य भवन एवं मीनारें लाल बलुआ पत्थर से बनाई गई हैं जबकि मुख्य भवन के गुम्बद तथा मीनारों के बुर्ज सफेद संगमरमर से बनाए गए हैं। उस समय यह विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद थी। वर्तमान में यह विश्व की सातवें नम्बर की तथा पाकिस्तान की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद है। यह मुगलों द्वारा लाल पत्थर से बनाई गई अंतिम मण्डलीय मस्जिद है। इसके बाद मुगलों ने ऐसी मस्जिद फिर कभी नहीं बनाई।
औरंजेब द्वारा लाहौर में निर्मित बादशाही मस्जिद, शाहजहाँ द्वारा दिल्ली में बनाई गई जामा मस्जिद की अनुकृति है किंतु लाहौर की मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद की तुलना में बहुत बड़ी है तथा ईदागाह के रूप में भी प्रयुक्त होती है। जब सिक्खों ने मुगलों को मारना शुरु किया तब महाराजा रणजीतसिंह की सेनाओं ने इस मस्जिद को बड़ी क्षति पहुंचाई।
जब औरंगजेब मृत्युशैय्या पर था तब औरंगजेब की दूसरे नम्बर की पुत्री जीनत-उन्निसा ने ई.1707 में दिल्ली के शाहजहाँनाबाद में खैराती दरवाजे के पास जीनत-अल-मस्जिद बनवाई। उस समय यमुना नदी इस मस्जिद के पास से होकर बहती थी इस कारण इसे घाट मस्जिद भी कहा जाता था। शाहजहाँ द्वारा बनाई गई दिल्ली की जामा मस्जिद के स्थापत्य से साम्य होने से इसे दिल्ली की मिनी जामा-मस्जिद भी कहा जाता है।
शहजादी जीनत-उन्निसा का मरहूम बाबा शाहजहाँ अपनी पौत्री जीनत-उन्निसा से बहुत प्रेम करता था। इस कारण जीनत-उन्निसा ने अपने बाबा द्वारा बनाई गई मस्जिद के नक्शे पर ही यह मस्जिद बनवाई। इस मस्जिद के पास जीनत-उन्निसा का मकबरा भी बनाया गया।
जब ई.1857 में बहादुरशाह जफर ने क्रांतिकारी सैनिकों का साथ दिया तब अंग्रेजों ने लाल किले पर अधिकार करके, उसके भीतर स्थित बहुत से भवनों को नष्ट किया था। उन्होंने जीनत-उन्निसा का मकबरा गिरा दिया तथा जीनत-उन्निसा द्वारा बनवाई गई मस्जिद में बेकरी स्थापित कर दी।
जीनत-उन्निसा का जन्म औरंगजेब की प्रिय बेगम दिलरास बानो के पेट से हुआ था जिसका मकबरा औरंगजेब के पुत्र आजमशाह ने औरंगाबाद में बनाया था और बीबी का मकबरा के नाम से जाना जाता है। जिस प्रकार जीनत-उन्निसा द्वारा निर्मित मस्जिद को मिनी जामा मस्जिद कहा जाता है, उसी प्रकार बीबी का मकबरा को मिनी ताजमहल कहा जाता है।
औरंगजेब के तीसरे शहजादे मुहम्मद शाह को बंगाल का सूबेदार बनाया गया था। उसने ढाका में लालबाग किले का निर्माण करवाया जो अब बांग्लादेश में है। इसके निर्माण में औरंगजेब की कोई भूमिका नहीं थी।
औरंगजेब के धाय-भाई मुजफ्फर हुसैन ने पंजाब में पिंजोर गार्डन का निर्माण करवाया जिसे नवाब फिदाई खान कोका भी कहते थे। जब फिदाई खान अपने हरम की औरतों को लेकर पिंजौर बाग में रहने के लिए आया तो उसने देखा कि बाग में काम करने वाले बहुत से लोगों के गले में गांठें उभरी हुई थीं जिन्हें गण्डमाला अर्थात् घेंघा कहा जाता था।
आसपास के गांवों की जो औरतें हरम की औरतों को फल, फूल एवं सब्जियां बेचने आती थीं, वे भी इस बीमारी से ग्रस्त थीं। इन औरतों ने फिदाई खान के हरम की औरतों को बताया कि यहाँ की हवा एवं पानी के कारण यहाँ के लोग बीमारी से ग्रस्त होकर कुरूप हो जाते हैं। अतः फिदाई खाँ कुछ ही दिनों में इस बाग को छोड़कर चला गया ताकि उसके हरम की औरतें सुंदर बनी रह सकें।
माना जाता है कि पिंजौर के स्थानीय राजा ने फिदाई खाँ तथा औरंगजेब को इस इलाके से दूर रखने के लिए यह योजना बनाई थी कि उन्हें गण्डमाला से ग्रस्त स्त्री-पुरुष दिखाकर औरंगजेब तथा फिदाई खाँ के मन में भय उत्पन्न किया जा सके। इस कारण यह बाग कुछ ही दिनों में उजड़ गया। आगे चलकर पटियाला के राजाओं ने इस उद्यान का उद्धार किया तथा इसमें गुलाबों की खेती आरम्भ करवाई जिनसे बहुत अच्छा इत्र तैयार किया जाता था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता