मुहम्मद गौरी ने तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को संधि का छलावा दिया तथा अपनी मुख्य सेना को पीछे की ओर छिपाकर तड़का होने से पहले ही पृथ्वीराज चौहान के शिविर पह हमला बोल दिया तथा बहुत से हिन्दू सैनिकों को काट डाला। बड़ी कठिनाई से पृथ्वीराज चौहान की सेना का कुछ हिस्सा युद्ध के लिए सन्नद्ध हो पाया जिसमें दिल्ली के तोमर शासक गोविंदराज की हाथी सेना तथा स्वयं सम्राट पृथ्वीराज चौहान के अधीन केन्द्रीय सेना प्रमुख थे।
हसन निजामी, इसामी तथा नयनचंद्र सूरी ने लिखा है कि गोविंदराय तोमर की हाथी सेना ने तुर्क सेना पर दबाव बढ़ा दिया तो मुहम्मद गौरी के सेनापति खरमेल ने हाथियों की सेना के पीेछे जोर-जोर से नगाड़े पिटवाए। इस कारण हाथी भ्रमित हो गए तथा इधर-उधर भागने लगे। सम्राट पृथ्वीराज चौहान का हाथी भी अनियंत्रित हो गया। इस कारण गौरी के सैनिकों ने पृथ्वीराज के हाथी को घेर लिया और उस पर ताबड़तोड़ वार करने लगे। जब पृथ्वीराज का हाथी घायल हो गया तब पृथ्वीराज हाथी से उतरकर घोड़े पर सवार हुआ।
मिनहाज उस् सिराज लिखता है कि काफिरों ने बड़ी बहादुरी से सुल्तान की सेना का सामना किया जो चारों ओर से आक्रमण कर रही थी। शाम होने तक युद्ध चलता रहा तथा शाम होते ही मुहम्मद ने अपनी आरक्षित सेना को थके हुए राजपूतों पर आक्रमण करने के आदेश दिए। इस अंतिम प्रहार को राजपूत योद्धा नहीं झेल सके। पृथ्वीराज का सेनापति खाण्डेराव जिसने तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गौरी की सेना को परास्त किया था, मारा गया और पृथ्वीराज का उत्साह भंग हो गया। यह खाण्डेराव दिल्ली का शासक गोविंदराज था जिसे मिनहाज उस् सिराज ने खाण्डेराव लिखा है।
मिनहाज उस् सिराज के अनुसार जब युद्ध काफिरों के हाथों से निकलता हुआ दिखाई दिया तो पृथ्वीराज अपने हाथी को छोड़कर घोड़े पर सवार हुआ और युद्धक्षेत्र से निकल गया किंतु सरस्वती के पास पकड़ा गया और मुहम्मद पूर्ण रूप से विजयी हुआ। इलियट तथा डाउसन ने प्राचीन ग्रंथों के आधार पर इस युद्ध का वर्णन करते हुए लिखा है कि जब सम्राट पृथ्वीराज अपने हाथी से उतरकर घोड़े पर सवार हुआ तो हिन्दुओं ने बाजे बजवाए जिन्हें सुनकर घोड़ा नाचने लगा। पृथ्वीराज को समझते हुए देर नहीं लगी कि क्या होने वाला है। वह घोड़े से उतरकर पैदल ही युद्ध करने लगा। इसी समय किसी तुर्क ने सम्राट के गले में एक सिंगनी डाल दी। इस प्रकार पृथ्वीराज पकड़ा गया।
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मिनहाज उस् सिराज लिखता है कि इस युक्ति से अल्लाह ने मुहम्मद की सेना को विजयी बनाया तथा काफिरों की सेना भाग खड़ी हुई। पृथ्वीराज को तुरंत ही मार दिया गया। जबकि हसन निजामी लिखता है कि राजा पृथ्वीराज को पकड़कर अजमेर लाया गया। कुछ लेखकों के अनुसार सम्राट पृथ्वीराज सिरसा के आसपास मुहम्मद गौरी के सैनिकों के हाथ लग गया और मारा गया। राजा गोविंदराय और अनेक सामंत, वीर योद्धाओं की भांति लड़ते हुए काम आए।
अधिकातर लेखकों के अनुसार तराइन की पहली लड़ाई का विजेता गोविन्दराज तोमर तथा चितौड़ का राजा समरसिंह भी तराइन की दूसरी लड़ाई में काम आए। तुर्कों ने भागती हुई हिन्दू सेना का पीछा किया तथा उन्हें बिखेर दिया।
विभिन्न लेखकों ने इस युद्ध की तिथि भी अलग-अलग लिखी है। पृथ्वीराज रासो ने विक्रम संवत् 1158 के श्रावण मास की अमावस्या को शनिवार के दिन यह युद्ध होना बताया है किंतु यह तिथि ऐतिहासिक कसौटी पर खरी नहीं उतरती। क्योंकि विक्रम संवत 1158 का अर्थ होता है ई.1101 जबकि यह युद्ध तो ई.1192 में हुआ था।
हसन निजामी ने लिखा है कि यह लड़ाई हिजरी 588 के रमजान महीने के आरम्भ होने से पहले ही जीती जा चुकी थी। इस प्रकार निजामी कोई निश्चित तिथि नहीं बताता है। हिजरी 588 में रमजान का महीना 10 सितम्बर 1192 को आरम्भ हुआ था। अतः तराइन की दूसरी लड़ाई 10 सितम्बर 1192 से पहले किसी महीने में हुई थी।
राजस्थान के अजमेर, नागौर गोठमांगलोद आदि स्थानों पर उन राजपूत वीरों के नामों के शिलालेख मिलते हैं जिनके इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने पर उनकी रानियां एवं ठकरानियां सती हुई थीं। ये शिलालेख अप्रेल एवं मई 1192 की तिथियों के हैं। इनसे सिद्ध होता है कि तराइन का दूसरा युद्ध अप्रेल 1192 से पहले ही हो चुका था।
‘दिल्ली के तोमर’ नामक ग्रंथ के लेखक हरिहर निवास द्विवेदी ने विभिन्न तथ्यों के आधार पर युद्ध की तिथि 1 मार्च 1192 मानी है, उस दिन रविवार था तथा होली का त्यौहार था। युद्ध के आरम्भ होने एवं समाप्त होने की यही तिथि सही जान पड़ती है। 17 मार्च 1192 को दिल्ली भी तुर्कों के अधिकार में चली गई।
बारहवीं शताब्दी ईस्वी में उत्तर भारत के सर्वाधिक शक्तिशाली सम्राट पृथ्वीराज चौहान पर गजनी के छोटे से राज्य के शासक के छोटे भाई मुहम्मद गौरी की विजय के अनेक कारण बताए जाते हैं जिनमें से एक कारण गुप्तचर प्रबंधन को भी बताया जाता है।
मिनहाज उस् सिराज ने ‘तबकाते नासिरी’, अब्दुल फजल ने ‘अकबरनामा’ तथा मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने ‘मुंतखाब अत् तवारीख’ में लिखा है कि मुहम्मद गौरी ने जनता में पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध असंतोष उत्पन्न करने के लिए गौर के निकट चिश्त नामक स्थान पर रहने वाले मुईनुद्दीन संजरी को अजमेर भेज दिया था। वह तराइन की पहली लड़ाई के बाद अपने अनुयाइयों के साथ अजमेर आया था तथा अजमेर के राजमहल में सम्राट के विरुद्ध चल रहे असंतोष एवं षड़यंत्रों के समाचार मुहम्मद गौरी को भेजता रहता था। इसलिए बहुत से लोग मुईनुद्दीन संजरी को मुहम्मद गौरी का जासूस मानते हैं।
‘फुतुहूस्सलातीन’ के अंग्रेजी अनुवाद में भी अजमेर के राजमहल में घटित इन घटनाओं का उल्लेख किया गया है। रानी संयोगिता तथा रानी पद्मावती के बीच सौतिया डाह के कारण चलने वाले षड़यंत्र, प्रधानमंत्री कैमास का एक दासी के साथ प्रेम प्रसंग एवं पृथ्वीराज के सेनापति प्रतापसिंह एवं प्रधानमंत्री कैमास के बीच के द्वेष के कारण कैमास के वध आदि बहुत सी बातें मुईनुद्दीन संजरी द्वारा ही गौरी को पहुंचाई गई थीं।
इसामी के अनुसार जिस समय पृथ्वीराज मुल्तान से तराइन के लिए रवाना हुआ, उस समय उसे ज्ञात हो चुका था कि कैमास की हत्या हो चुकी है तथा पृथ्वीराज के सेनापतियों एवं मंत्रियों में मन-मुटाव अपने चरम पर है। इसलिए गौरी ने अजमेर के कुछ सेनापतियों एवं मंत्रियों को अपनी ओर मिला लिया और पृथ्वीराज तराइन का दूसरा युद्ध हार गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता