कोहिनूर हीरा संसार का सबसे बड़ा, सबसे दुर्लभ एवं रहस्यमय हीरा है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से पहले ही भारतीय राजाओं के खजाने में रहा करता था।
ई.1739 में ईरान के शाह नादिरशाह ने दिल्ली के लाल किले में स्थित मुगल शहजादे के खजाने को पूरी तरह से लूट कर ऊंटों, घोड़ों, गधों एवं खच्चरों पर लदवा लिया ताकि उसे ईरान ले जाया जा सके किंतु बादशाह मुहम्मदशाह ने कोहिनूर हीरा अपनी पगड़ी में छिपा लिया था।
कहा जाता है कि मुहम्मदशाह की चहेती वेश्या नूरबाई ने नादिरशाह से निकट सम्बन्ध बना लिए थे। उसने नादिरशाह से कहा- ‘तूने दिल्ली से अब तक जो लूटा है, वह उस दौलत के सामने कुछ भी नहीं है जो दौलत मुहम्मदशाह की पगड़ी में छिपी हुई है।’
यह सुनते ही नादिरशाह के कान खड़े हो गए। उसने मुहम्मदशाह से कोहिनूर हीरे को छीनने का षड़यंत्र रचना शुरु कर दिया। आगे बढ़ने से पहले पाठकों को कोहिनूर हीरे के इतिहास की संक्षिप्त जानकारी देना उचित होगा।
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कोहिनूर हीरा संसार के दुर्लभ हीरों में से एक है। यह मानव जाति के पास कब से है, इसका वास्तविक इतिहास ज्ञात नहीं है क्योंकि इसका नाम और स्वामित्व बदलता रहा है।
कुछ लोगों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण पर जिस स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप लगा था और जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने जामवंत की पु़त्री से प्राप्त करके पुनः यादवों को सौंपा था, वह मणि ही आगे चलकर कोहिनूर हीरा कहलाई। कहा नहीं जा सकता कि इस मान्यता में कितनी सच्चाई है!
कुछ स्रोतों के अनुसार यह हीरा ईसा के जन्म से लगभग 3200 साल पहले एक नदी की तली में प्राप्त हुआ था। अन्य स्रोतों के अनुसार यह हीरा दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश नामक प्रांत में स्थित गोलकुण्डा की कोल्लार खान से प्राप्त हुआ था। ईस्वी 1730 तक गोलकुण्डा विश्व का एकमात्र ज्ञात हीरा उत्पादक क्षेत्र था। उसके बाद ब्राजील में हीरों की खोज हुई थी।
ईस्वी 1323 तक यह हीरा हिन्दू राजाओं के पास था। ई. 1323 में दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने अपने पु़त्र उलूघ खान को वारांगल के काकतीय राजा प्रतापरुद्र पर आक्रमण करने के लिए भेजा था। इस युद्ध में रुद्रप्रताप हार गया। उलूघ खाँ ने वारंगल के राजमहल से अपार धन लूटा जिसे घोड़ों एवं ऊंटों पर लादकर दिल्ली ले जाया गया। इस खजाने में कोहिनूर हीरा भी सम्मिलित था। बाद के किसी काल में यह हीरा ग्वालियर के तोमरों के पास पहुंच गया। ई.1526 में जब बाबर के पुत्र हुमायूँ ने आगरा के लाल किले पर अधिकार किया तब ग्वालियर का तोमर राजा विक्रमाजीत तथा उसका परिवार आगरा के लाल किले में बंद थे।
दिल्ली सल्तनत के अंतिम शासक सिकंदर लोदी ने ग्वालियर के इस तोमर राजा को परास्त करके पूरे परिवार सहित आगरा के लाल किले में बंद कर दिया था। हुमायूँ ने राजा विक्रमाजीत से एक समझौता किया जिसके तहत विक्रमाजीत एवं उसके परिवार को मुक्त कर दिया गया। राजा विक्रमाजीत का परिवार अपना खजाना लेकर आगरा से चित्तौड़ के लिए रवाना हुआ।
मार्ग में हूमायूं के सैनिकों ने उस परिवार के सामान की तलाशी ली जिसमें कोहिनूर हीरा भी था। मुगल सेनापति ने यह हीरा हुमायूँ को भेंट कर दिया। हुमायूँ ने यह हीरा बाबर को भेंट किया। बाबर ने यह हीरा पुनः हुमायूँ को दे दिया।
बाबर ने अपनी पुस्तक बाबरनामा में इस हीरे का उल्लेख करते हुए लिखा है- ‘ई.1294 में कोहिनूर हीरा मालवा के किसी अनाम राजा के पास था जिसे बाद में अल्लाउद्दीन खिलजी ने छीन लिया था।’
चूंकि उस काल में मालवा प्रांत के नरवर राज्य में प्रबल कच्छवाहों का शासन था इसलिए संभव है कि बाबर ने जिसे अनाम राजा लिखा है, वह नरवर का कोई कच्छवाहा राजा रहा होगा। बाद में यह ग्वालियर के तोमरों के पास चला गया होगा। बाबर ने इस हीरे का मूल्य संसार के समस्त मनुष्यों के दो दिन के भोजन के मूल्य के बराबर आंका था।
इतिहास में यह मान्यता रही है कि कोहिनूर हीरा जिस किसी के पास रहा, उसे दुर्भाग्य ने घेर लिया। जब यह तोमर राजा विक्रमादित्य अथवा विक्रमाजीत के पास था तब विक्रमादित्य का पूरा परिवार जेल में बंद हो गया। ई.1526 में जब यह हीरा हूमायूं के पास आ गया तो हुमायूँ गंभीर रूप से बीमार पड़ गया और बाबर ने ऊपर वाले से प्रार्थना की कि हुमायूँ की जगह बाबर को मौत आ जाए।
कहते हैं कि इस प्रार्थना के बाद ई.1530 में बाबर तो बीमार होकर मर गया ओर हुमायूँ ठीक हो गया किंतु हुमायूँ का दुर्भाग्य अब भी उसके साथ था इसलिए कुछ ही समय पश्चात् ई.1540 में उसका राज्य नष्ट हो गया और वह भारत छोड़कर ईरान भाग गया।
अब यह हीरा शेरशाह सूरी के पास चला गया। वह भी अधिक समय तक जीवित नहीं रह सका और ईस्वी 1545 में अपनी ही सेना के तोप के गोले के फट जाने से मर गया। अब यह हीरा शेरशाह सूरी के पुत्र जलाल खाँ के पास आ गया।
इसके बाद ई.1555 तक की 10 साल की अवधि में इब्राहिम शाह सूरी, इस्लामशाह सूरी, फीरोजशाह सूरी, मुहम्मद आदिल, सिकंदर शाह तथा आदिलशाह सूरी नामक छः बादशाह हुए जो थोड़े-थोड़े समय में मार दिए गए। जब ई.1555 में हुमायूँ फिर से भारत के लाल किलों एवं कोहिनूर हीरे का स्वामी हुआ तो वह कुछ माह शासन करके ई.1556 में सीढ़ियों से फिसल कर मर गया।
हुमायूँ के बाद अकबर और जहांगीर ने यह रत्न कभी अपने पास नहीं रखा। उन्होंने दीर्घकाल तक शासन किया। जब शाहजहाँ ने तख्ते ताउस बनवाया और उसमें कोहिनूर को लगवाया तब वह अपने पुत्र औरंगज़ेब द्वारा बंदी बना लिया गया और उसका शेष जीवन बंदी की तरह व्यतीत हुआ। औरंगजेब ने इस हीरे को अपने पास नहीं रखा और यह आगरा के लाल किले में बंद खजाने का हिस्सा बना रहा। उसने भी दीर्घकाल तक शासन किया।
ई.1707 में औरंगजेब मर गया, तब से लेकर ई.1739 में नादिरशाह का लाल किले पर आक्रमण होने तक 32 साल की संक्षिप्त अवधि में बहादुरशाह, जहांदारशाह, फर्रूखशीयर, रफीउद्दरजात, रफीउद्दौला तथा मुहम्मदशाह रंगीला नामक छः बादशाह हो चुके थे। इनमें से मुहम्मदशाह के अतिरिक्त कोई भी शासक पांच साल शासन नहीं कर सका था।
उसी कोहिनूर को मुहम्मदशाह रंगीला ने अपनी पगड़ी में छिपा लिया था किंतु वेश्या नूरबाई ने नादिरशाह को कोहिनूर का पता बता दिया। नादिरशाह ने मुहम्मदशाह से हीरा छीनने के लिए एक षड़यंत्र रचा। उसने दिल्ली से रवाना होने से पहले लाल किले में एक दरबार किया तथा उसमें मुहम्मदशाह को अपना भाई तथा भारत का फिर से बादशाह घोषित किया।
इस अवसर पर नादिरशाह ने मुहम्मदशाह से कहा कि हमारे ईरान में यह परम्परा है कि खुशी के अवसर पर भाई आपस में अपनी पगड़ी बदलते हैं। इतना कहकर नादिरशाह ने मुहम्मदशाह की पगड़ी उतारकर अपने सिर पर रख ली और अपनी पगड़ी उतारकर मुहम्मदशाह को पहना दी। इस प्रकार कोहिनूर भी नादिरशाह के पास पहुंच गया और मुहम्मदशाह कुछ नहीं कर सका।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता