Thursday, November 21, 2024
spot_img

पाकिस्तान के लिए आंदोलन

पाकिस्तान के लिए आंदोलन – मुहम्मद अली जिन्ना का भारत की राजनीति में पुनः आगमन

जैसे ही ई.1933 में रहमत अली ने ‘पाकिस्तान’ नामक राष्ट्र की अवधारणा प्रस्तुत की, वह अवधारणा रातों-रात लंदन में रहने वाले मुस्लिम युवाओं के बीच प्रसिद्धि पा गयी। दुनिया भर के अखबार इसका हल्ला मचाने लगे तो मुस्लिम लीग की हवाई कल्पनाओं को मानो नये पंख मिल गये। अब पाकिस्तान के लिए आंदोलन चलाने का मार्ग साफ हो गया था।

अब मुस्लिम लीग को एक ऐसे लीडर की तलाश थी जिसने भारत से बाहर निकलकर दुनिया को देखा हो, जो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को जानता हो और जो अंग्रेजों से उन्हीं की भाषा में पूरे फर्राटे के साथ बात कर सके। जो पाकिस्तान के लिए आंदोलन चला सके, जो नेहरू, पटेल एवं गांधी जैसा बड़ा वकील हो तथा जो नेहरू, गांधी और पटेल से भारत का एक बड़ा हिस्सा छीन सके।

कैसे बना था पाकिस्तान - bharatkaitihas.com
To Purchase This Book Please Click On Image.

मुस्लिम लीगी नेताओं की दृष्टि फिर से अपने पुराने अध्यक्ष मुहम्मद अली जिन्ना पर टिक गयी और वे उसे ई.1934 में लंदन से बैरिस्टरी का काम छुड़वाकर फिर से भारत ले आये। यह पहली बार हो रहा था कि भविष्य में बनने वाले एक देश के लिये एक नेता लंदन से आयात किया जा रहा था। उसी साल जिन्ना केन्द्रीय धारा सभा के लिये चुना गया और उसी साल वह अखिल भारतीय मुस्लिम लीग का पुनः अध्यक्ष भी हुआ।

इस बार जिन्ना के तेवर बदले हुए थे। वह हिन्दू-मुस्लिम एकता और राष्ट्रवाद का अलाप लगाना छोड़कर मुस्लिम हितों की बात कर रहा था। वह कांग्रेस के नेताओं के विरोध में बोलने के लिए अवसरों की ताक में रहता था और गांधी एवं नेहरू की खुलकर आलोचना करता था। अब वह कांग्रेस में नहीं था, केवल मुस्लिम लीग में था। इस बार वह भारतीय नहीं था, केवल मुस्लिम नेता था। इस बार उसे भारत की आजादी और उन्नति की चिंता नहीं थी, केवल मुसलमानों के भावी देश के निर्माण की चिंता करनी थी।

अब पाकिस्तान जिन्ना के लिए ‘असम्भव सपना’ नहीं था अपितु केवल ‘यही एक सपना शेष’ रह गया था जिसे जिन्ना अपने जीवन काल में पूरा होते हुए देखना चाहता था।

एक ओर जिन्ना और मुस्लिम लीग साम्प्रदायिक राजनीति के खतरनाक चरण में पहुंच चुके थे किंतु दूसरी ओर कांग्रेसी नेता बदली हुई परिस्थितियों को समझ नहीं पा रहे थे। वे हिन्दू और मुसलमान दोनों को अपनी विरासत समझ रहे थे तथा मुस्लिम लीग एवं उसके नेता मुहम्मद अली जिन्ना, दोनों को सिरे से नकार रहे थे। जिन्ना को फिर से राजनीति में लौट आते हुए देखकर पाकिस्तान का स्वप्न देखने वाला रहमत अली बुरी तरह से चिढ़ गया। वह जिन्ना को पसंद नहीं करता था।

रहमत अली इस्लाम की परम्परागत वेशभूषा, भाषा और खानपान को ही मुसलमान होने की गारण्टी मानता था जबकि जिन्ना अंग्रेजी कपड़े पहनता था, अंग्रेजी भाषा में सोचता और बोलता था, अंग्रेजी शैली में बैठकर खाना खाता था। इसलिए रहमत अली की दृष्टि में जिन्ना असली मुसलमान नहीं था।

रहमत अली ने पहले भी जिन्ना के विरुद्ध आग उगली थी किंतु जब जिन्ना भारत छोड़कर इंग्लैण्ड में बैरिस्टरी करने लगा तो रहमत अली ने उसके विरुद्ध बोलना बंद कर दिया था किंतु अब जबकि जिन्ना न केवल भारतीय राजनीति में लौट आया था, अपतिु मुस्लिम लीग का अध्यक्ष भी बन गया था, इसलिए रहमत अली ने जिन्ना के विरुद्ध हमले तेज कर दिए।

8 जुलाई 1935 को रहमत अली ने एक इश्तहार प्रकाशित करवाया जिसमें उसने जिन्ना को निशाना बनाते हुए कहा- ‘मैं दिल से उम्मीद करता हूँ के आप मेहरबानी करके पाकिस्तान की अटल मांग पर हमें पूरा समर्थन देंगे। न्याय और समता पर आधारित हिंदोस्तान से भिन्न पृथक राष्ट्रीय अस्तित्व के रूप में पाकिस्तान की मांग करना एक पवित्र अधिकार है।

……. पाकिस्तान हिन्दुओं की जमीन नहीं है और न ही उसकी जनता हिंदोस्तान की नागरिक है।

….. हमारे राष्ट्रीय जीवन का बुनियादी आधार और सार उससे एकदम अलग है जिस पर हिन्दूवाद आधारित है और परवान चढ़ रहा है।

….. सरकार द्वारा नामजद मुसलमान प्रतिनिधियों द्वारा गोलमेज सम्मेलन में भारत को महासंघ बनाने की योजना पर सहमति देकर किए गए हमारे राष्ट्रीय भविष्य के बेहद शर्मनाक समर्पण की हम पाकिस्तानी बार-बार भर्त्सना कर चुके हैं। ये लोग न तो पाकिस्तान के प्रतिनिधि थे और न ही पाकिस्तानी जनता की नुमाइंदगी कर रहे थे।

…… इतिहास की चेतावनी की पूरी तरह उपेक्षा करते हुए समर्पण की कला के इन प्रतिष्ठित महारथियों ने हमारी राष्ट्रीयता को बेच दिया है और भावी पीढ़ियों की बलि चढ़ा दी है। पाकिस्तान के साथ की गई सबसे ज्यादा अपमानजनक गद्दारी के लिए इन लोगों को इतिहास के सामने जवाबदेही करनी होगी।

संभवतः रहमत अली ने जिन्ना को अपना राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी मान लिया था और उसी ईर्ष्या के कारण वह जिन्ना पर हमले कर रहा था। इसलिए जिन्ना भी तेजी से मुसलमानों के लिए अलग देश की राजनीति को आगे बढ़ा रहा था। भारत में एक केन्द्रीय अथवा संघीय व्यवस्था की स्थापना को जिन्ना ने ‘हिन्दू राज्य का स्वप्न’ कहना आरम्भ किया।

जिन्ना का कहना था- ‘आज हम केवल एक चौथाई भारत मांग रहे हैं और तीन चौथाई उनके लिए छोड़ देने को तैयार हैं। यदि उन्होंने अधिक जिद की तो शायद उन्हें यह भी न मिले।’

एक अन्य अवसर पर जिन्ना ने कहा- ‘हिन्दुओं ने पिछले एक हजार वर्षों से भारत पर राज्य नहीं किया है। हम उन्हें तीन चौथाई भारत राज्य करने के लिए दे रहे हैं। हमारे एक चौथाई भारत पर लालच की दृष्टि न रखो।’

भारत के मुसलमान कभी हिन्दू राज्य स्वीकार नहीं करेंगे जिसका परिणाम यह होगा कि देश में अव्यवस्था और अराजकता फैल जाएगी।

ई.1936 में शौकत अली की मूर्ति का अनावरण करते हुए जिन्ना ने कहा- ‘वर्तमान राजनीतिक समस्या यह थी कि इंग्लैण्ड सारे भारत पर राज्य करने का इच्छुक था और गांधीजी इस्लामी भारत का शासक बनना चाहते थे और हम दोनों में से किसी एक को या समान रूप से दोनों को मुसलमानों पर नियंत्रण स्थापित करने नहीं देंगे।’

इस प्रकार पाकिस्तान के लिए आंदोलन दिन पर दिन जोर पकड़ने लगा।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source