आठ से बारह फुट के कंकालों की कब्रें!
पश्चिमी इटली के सार्डीनिया प्रांत के उत्तरी भाग में अर्जाचेना नामक स्थान के पास कोड्डू विसियू नामक स्थल है जहाँ से ‘नूरागे-युग’ की लगभग 800 ‘दैत्याकार-कब्रें मिली हैं। इन्हें मेगालिथिक कब्रें कहा जाता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि ये कब्रें ईसा से लगभग तीन हजार साल पहले इस क्षेत्र में रहने वाले विशाल दैत्यों की हैं। इन 800 कब्रों में से केवल 100 कब्रों में हड्डियाँ मिली हैं।
शेष कब्रों में या तो हड्डियाँ थी ही नहीं और यदि थीं तो उन्हें इटली की सरकार द्वारा हटा दिया गया है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यहाँ के निवासी परग्रह से आए पुरुषों और धरती पर रहने वाली औरतों से उत्पन्न हुए थे। बाइबिल में ‘वाचसी’ नामक मनुष्यों का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि यहाँ के निवासी नेफेलिन तथा वाचसी नामक जातियों की हाइब्रिड संतानें हैं जो धरती पर तबाही लेकर आए थे।
स्थानीय लोगों की यह भी मान्यता है कि इटली के सादरा नामक शहर से एक चर्च के नीचे मिली कब्रों से 9 से 12 फुट के कुछ कंकाल मिले थे जिन्हें चर्च या सरकार द्वारा छिपा दिया गया है। ‘कोड्डू-विसियू’ की दैत्याकार संरचनाओं के नीचे परग्रही लोगों के अवशेष या हड्डियाँ मिल सकती हैं या परग्रहियों तथा मानवों की संकर नस्ल के लोगों की हड्डियाँ मिल सकती हैं।
इस सभ्यता के लोगों ने नक्षत्र सम्बन्धी खगोलीय घटनाओं के अध्ययन के लिए कुछ मेगालिथिक रचनाएं बनाई थी जिन्हें ‘नूरागे’ कहा जाता है। इस इलाके से कुछ पिरामिड और टॉवर भी मिले हैं। एन्शिएण्ट एलियनस पर खोज करने वाले कुछ अनुसंधानकर्त्ताओं का मानना है कि ये पिरामिड और टॉवर अंतरिक्ष से आए यानों के लिए प्लेटफॉर्म एवं संकेतकों की तरह प्रयुक्त हुए थे।
इनकी संख्या 30 हजार के लगभग है। ऐसी रचनाएं पास के द्वीपों और ग्रीस में भी मिली हैं। कुछ नूरागे तारा-मण्डलों की आकृतियां पर बने हैं। रात के समय तारे आसमान में ऐसी आकृतियां बनाते हैं। एक प्रस्तर-स्तम्भ पर एक गोलाकार चित्र बना है जो किसी मनुष्य के धरती पर आने की घटना की ओर संकेत करता हुआ प्रतीत होता है। एक पत्थर पर किसी अंतरिक्ष यान का चित्र खोदा गया प्रतीत होता है। पुरातत्वविदों के अनुसार ये कब्रें कांस्य कालीन युग के मानवों की हैं। इस सभ्यता का प्रारम्भिक काल ई.पू.2800 था और इस सभ्यता के लोग ई.पू. 200 के आसपास समाप्त हुए। उन्होंने खगोल विज्ञान में चंद्रमा के उस चक्र को समझ लिया था जब चन्द्रमा आकाश में सबसे ऊँचाई पर होता है। इस स्थान से कुछ बर्तन, कटोरे तथा तश्तरियां मिली हैं जिन पर कंघे से पंक्तियां बनाई गई हैं। यहाँ से मिली सुराहियां मुड़ी हुई गर्दन वाली हैं। ये नूरागे युग के प्रारम्भिक काल की रचनाएँ हैं। इस सभ्यता को बोनानारो संस्कृति से सम्बन्धित माना जाता है। पुरातत्वविद् इस सभ्यता को ईसा से लगभग 1800 साल पहले की मानते हैं। इस स्थल से उठाई गई कुछ पुरातात्विक सामग्री इटली के विभिन्न संग्रहालयों में रखी गई है। इस प्रस्तर युगीन सभ्यता का रोमन सभ्यता से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है।
विश्व की महान् सभ्यताओं का सिलसिला
रोमन सभ्यता संसार की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है किंतु रोम के बसने से भी कई हजार साल पहले से संसार में कई सभ्यताएं चल रही थीं। इन सभ्यताओं के अस्तित्व में आने का सिलसिला आज से लगभग 10 हजार साल पहले ‘होमो सेपियन सेपियन’ नामक मनुष्य प्रजाति के अस्तित्व में आने के बाद आरम्भ हुआ। संसार की प्राचीनतम सभ्यताओं में भारतीय आर्यों की ऋग्वैदिक सभ्यता सबसे महान् थी जिन्होंने ईसा से लगभग 6000 साल पहले पुरा-पाषाण बस्तियों के रूप में अपनी सभ्यता का विकास करना आरम्भ किया।
इन आर्यों ने न केवल परिवार एवं कुटुम्ब जैसी संस्थाओं को व्यवस्थित किया अपितु खेती और पशुपालन का सिलसिला भी आरम्भ किया। आवासीय भवन बनाने की शुरुआत उन्होंने ही की। इसी प्रकार मिट्टी के बर्तन एवं ईंटें बनाने तथा कपड़ा बुनने की कला का आविष्कार करते हुए वे ईसा से लगभग 4000 साल पहले ऋग्वेद जैसे उच्चतम दार्शनिक ग्रंथ की रचना तक पहुँच गए थे।
भारतीय आर्यों के समानांतर महान् सभ्यताओं में मिस्र की 5500 ई.पू. की नील सभ्यता, मेसोपोटामिया की 4500 ई.पू. की सुमेरियाई सभ्यता, भारत की 3500 ई.पू. की सिंधु सभ्यता, चीन की 2000 ई.पू. की यलो रीवर सभ्यता तथा मैक्सिको की 1500 ई.पू. की माया सभ्यता रोम की स्थापना से हजारों साल पहले अस्तित्व में आ चुकी थीं।
रोम की स्थापना एवं उसके संस्थापक
रोम नगर की नींव ईसा-पूर्व नौवीं सदी में पड़ी। इसके सम्बन्ध में कई अद्भुत एवं रोचक कहानियां प्रचलित हैं। रोमवासियों की प्राचीन काल से चली आ रही धारणा के अनुसार आर्यों के कुछ समूह रोम में आए तथा उन्होंने टाइबर नदी (टिब्रिस रीवर) के निकट स्थित सात पहाड़ियों पर छोटी-छोटी बस्तियां बसाईं।
ये बस्तियां ही सैंकड़ों साल की अवधि में फल-फूलकर पहले गांव, फिर कस्बा और बाद में शहर बन गईं। रोम के मुखिया ने अपने आस-पास के कबीलों को परास्त करके उन पर अधिकार करना आरम्भ किया। इस कारण यह शहर निरंतर बढ़ता हुआ सिसली के निकट मेसीना तक पहुँच गया। इस प्रकार रोम एक नगर न रहकर एक प्रदेश अथवा प्रांत बन गया।
रोम को बसाने वाले आर्य कौन थे! इस प्रश्न पर विचार किया जाना चाहिए। भारतीय प्राचीन संस्कृत साहित्य में रोम को ‘रोमक’ कहा गया है। इसका अर्थ है कि भारतीय आर्य अत्यंत प्राचीन काल से रोम के बारे में जानते हैं। इस सम्बन्ध में इस प्रश्न पर प्रमुखता से ध्यान दिया जाना चाहिए कि यूरोप के अन्य लोगों से बिल्कुल उलट, इटली-वासियों की त्वचा का रंग ठीक वैसा ही क्यों है जैसा गौर-वर्ण भारत-वासियों का?
इटली-वासियों की आँखें और बाल भी भारतीयों की ही तरह काले होते हैं। यहाँ तक कि इन दोनों समूहों की भाषा भी संस्कृत ही थी। तो क्या इटली और भारत के आर्य किसी एक ही प्राचीन आर्य जन-समूह से सम्बन्ध रखते हैं?
आर्यों के प्राचीन इतिहास के अनुसार ई.पू. 9वीं सदी में ‘एशिया कोचक (अब तुर्की)’ में स्थित ‘लीदिया’ के राजा अत्ती का बेटा तिरहेन लीदिया की आधी जनसंख्या के साथ जहाजों में बैठकर इटली के पश्चिमी किनारे पर उतरा। अपने मुखिया के नाम पर ये आगंतुक अपने को ‘तिरहेनी’ कहते थे। संभवतः एशिया कोचक के आर्य, भारतीय आर्यों से ही किसी काल में अलग होकर पश्चिम की ओर बढ़ने लगे होंगे।
इन लोगों ने इटली की धरती पर पहुँच कर समुद्र के किनारे अनेक बस्तियाँ बसाईं। तिरहेनियों की भाषा और ‘संस्कृत’ में काफी साम्य था। तिरहेनी धीरे-धीरे बढ़ते हुए ‘इटली’ के ‘लातियम’ प्रांत में समुद्र से 16-17 मील दूर, टाइबर नदी के किनारे तीन छोटी-छोटी पहाड़ियों पर बसे हुए एक छोटे से गाँव रोमा या रोम में पहुँचे। तिरहेनियों के अधीन धीरे-धीरे रोम इटली का एक बड़ा नगर बनने लगा। आगे चलकर इस शहर ने इतिहास में वह नाम पाया जो आज तक यूरोप के किसी अन्य देश को नहीं मिल सका। तिरहेनियों ने रोम में ‘जूपिटर’ (वैदिक शब्द- द्यौस्पितर) का विशाल मंदिर बनाया।
मादा भेड़िया का दूध पीकर बड़े हुए थे रोम के संस्थापक
रोम की स्थापना के सम्बन्ध में यह भी मान्यता है कि रेमस और रोमुलस नामक दो जुड़वा भाइयों को उनके नाना एम्यूनियस ने एक डोंगी में बिठाकर टाइबर नदी में बहा दिया। डोंगी एक दलदल में जाकर रुक गई, उसी स्थान पर बाद में रोम आबाद हुआ। एक मादा भेड़िया ने इन दोनों बच्चों को अपना दूध पिलाकर पाला। एक दिन ये बच्चे फोस्च्युलस नामक एक स्त्री को मिले जो किसी गड़रिये की स्त्री थी। उसने इन बच्चों का पालन-पोषण किया।
बड़े होकर ये बच्चे फिलीस्तीन के युद्ध-प्रिय गड़रियों के एक गिरोह के सरदार बन गए। कुछ समय बाद इन दोनों लड़कों की भेंट अपने बाबा से हुई जिसने इन्हें पहचान लिया। बाबा ने अन्यायी एम्यूलियस को मार डाला तथा इन लड़कों को अल्बस की राजगद्दी पर बिठाया।
बाद में इन लड़कों ने उसी स्थान पर एक नगर की नींव रखी जहाँ आकर उनकी डोंगी रुकी थी और जहाँ मादा भेड़िया ने उनका पालन-पोषण किया था। नगर की स्थापना से पहले दोनों भाइयों में इस बात को लेकर झगड़ा हुआ कि नगर की नींव कौन रखेगा। इस झगड़े में रेमस मारा गया और रोमुलस ने नगर की नींव रखी। वही रोम का पहला सम्राट भी बना। रोम के संस्थापकों को मादा भेड़िया ने पाला था, इस घटना की स्मृति में मादा भेड़िया प्राचीन रोम की प्रतीक मानी जाती थी।
भगवान राम के नाम पर हुआ रोम का नामकरण
संस्कृत भाषा के भारतीय विद्वान मानते हैं कि रोम नामक नगर की स्थापना भगवान ‘राम’ के नाम पर हुई थी। भगवान राम का समय ईसा से पाँच हजार साल पहले का है जबकि रोम की स्थापना ईसा से केवल 800-900 साल पहले हुई। अतः ‘रोम’ नामकरण की पृष्ठभूमि में ‘राम’ सम्बन्धी मान्यता में कोई अतिश्योक्ति या काल सम्बन्धी विसंगति दिखाई नहीं देती।
रोम नगर की स्थापना के काल में भारतीय आर्य ‘द्यौस’ तथा ‘द्यौस्पितर’ नामक देवताओं की पूजा करते थे। इनमें से ‘द्यौस’ यूनान में ‘ज्यू’ के नाम से तथा ‘द्यौस्पितर’ रोम में ‘ज्युपीटर’ के नाम से पूजा जाता था। अतः द्यौस एवं द्यौस्पितर की भांति ‘राम’ भी रोमन आर्यों द्वारा पूजे जाते रहे हों तो इसमें अतिश्याक्ति नहीं है!
यूनान से आए थे इटली के अधिकांश निवासी
आठवीं शताब्दी ईस्वी पूर्व में यूनान में मैग्ना ग्रेसिया ;डंहदं ळतंमबपंद्ध नामक सभ्यता थी। माना जाता है कि उसी काल से यूनानी लोग इटली के दक्षिणी भागों में आकर बसने लगे थे।
तीन जनजातियों ने रोमन सभ्यता का निर्माण किया
इटली का इतिहास ईसा-पूर्व 9वीं शताब्दी से आरम्भ होता है। इस समय वर्तमान इटली के केन्द्रीय भाग में तीन इटालवी जनजातियों के अस्तित्व में होने के प्रमाण मिलते हैं। वे मुख्यतः तीन भाषाएँ बोलते थे- ओस्कान, अम्ब्रिआन तथा लैटिन। चौथी शताब्दी ईस्वी के मध्य में लैटिन भाषा अन्य भाषाओं पर हावी हो गई तथा पूरे इटली की भाषा बन गई।
जब लैटिन भाषा यूरोप के अन्य देशों में पहुँची तो इसने उन देशों की भाषाओं को जन्म दिया। आज भी इटली के लोगों को अपनी भाषा पर इतना अधिक गर्व है कि वे अंग्रेजी, फ्रैंच, जर्मन, रशियन जैसी भाषाओं को तुच्छ समझते हैं तथा ‘लैटिन’ से निकली हुई ‘इटालियन’ भाषा में ही लिखना-पढ़ना पसंद करते हैं। आम इटली-वासी अंग्रेजी भाषा का केवल वही शब्द समझ सकता है जो लैटिन भाषा से ज्यों का त्यों अंग्रेजी में लिया गया है।
जर्मन एवं फ्रैंच कबीलों का आगमन
ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में जर्मन एवं फ्रैंच कबीलों ने रोम में आकर निवास करना आरम्भ किया। बाद में ये इतने शक्तिशाली हो गए कि इन्होंने प्राचीन रोमन साम्राज्य को ध्वस्त करके एक नए रोमन साम्राज्य का निर्माण किया।
इटली देश का नामकरण
इटैलियन इतिहासकारों के अनुसार ई.पू. तीसरी सदी में पहली बार पूरे देश का नाम इटालिया पड़ा। इटालिया से ही इटली शब्द बना। यह नाम एक इटालियाई शब्द के यूनानी रूप ‘वाइटालिया’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘चरागाह’। यूनानी लोग इटली को इटालियम अर्थात् ‘चरागाह’ कहते थे। भारतीय विद्वानों के अनुसार इटली शब्द का निर्माण संस्कृत के ‘स्थली’ शब्द से हुआ है। यह शब्द भी चारागाह की ओर संकेत करता हुआ प्रतीत होता है।
रोमन सभ्यता का यूरोप पर प्रभाव
रोमन सभ्यता का आशय रोम नगर के बसने एवं उसके शासकों द्वारा नगर का विस्तार करने मात्र से नहीं है। रोमन सभ्यता का वास्तविक और व्यापक अर्थ रोमन संस्कृति के विकसित होने तथा सम्पूर्ण यूरोप को प्रभावित करने की शक्ति में निहित है। भौगोलिक रूप से रोम यूरोप के भीतर स्थित है किंतु सांस्कृतिक रूप से रोम पूरे यूरोप पर छाया हुआ है। निःसंदेह इस कार्य में यूनान उसके साथ रहा है।
रोम और यूनान ने समूचे यूरोप की संस्कृति, भाव-भूमि एवं चिंतन-दर्शन का निर्माण किया है। प्राचीन काल की सदियों में रोम एवं ग्रीस (यूनान) के दार्शनिकों ने यूरोपीय देशों में निवास करने वाले मानव समाज के चिंतन को गढ़ा। यूरोप में यह कहावत है कि ‘आज के यूरोपीय देश यूनान और रोम के बच्चे हैं।’
समूचा यूरोप एक देश है
इसलिए इटली अथवा किसी भी यूरोपीय देश के धर्म, समाज एवं संस्कृति को समझने के लिए रोम एवं ग्रीस के दार्शनिक-चिंतन को समझना आवश्यक है। इन दोनों देशों का समूचे यूरोप पर इतना व्यापक प्रभाव है कि भौगोलिक रूप से यूरोप भले ही एक विशाल महाद्वीप दिखाई देता हो तथा विगत लगभग तीन हजार साल में यूरोप महाद्वीप में सैंकड़ों राज्य एवं देश बने-बिगड़े हों किंतु सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टियों से समूचा यूरोप एक देश ही प्रतीत होता है। आज भी यूरोप के किसी एक भू-भाग में उत्पन्न विचारों एवं व्यवस्थाओं को यूरोप के अन्य देशों में बिना किसी कठिनाई के अपना लिया जाता है।
दुनिया की स्वामिनी रोम
प्राचीनकाल में रोम का प्रभाव यूरोपीय देशों पर इतना अधिक था कि यूरोप के देशों में सैंकड़ों साल तक रोम को दुनिया की स्वामिनी समझा जाता रहा। रोम की लैटिन भाषा ने यूरोप के विभिन्न देशों की भाषाओं को जन्म दिया, केवल अंग्रेजी इससे अलग एवं असम्बद्ध रहकर विकसित हुई।