Thursday, November 21, 2024
spot_img

66. एतिगीन ने सुल्तान की बहिन से जबर्दस्ती विवाह कर लिया!

रजिया भारत की प्रथम तथा अन्तिम स्त्री सुल्तान थी। यद्यपि विदेशों में रजिया के पूर्व भी स्त्रियां तख्त पर बैठ चुकी थीं तथा बाद में कुछ स्त्रियां उन देशों में शासक बनीं परन्तु भारत में सुल्तान के तख्त पर बैठने का अवसर केवल रजिया को ही प्राप्त हुआ। रजिया की मृत्यु के लगभग साढ़े तीन सौ साल बाद चांद बीबी दक्षिण भारत में बीजापुर एवं अहमदनगर के मुस्लिम राज्यों में अल्पवय सुल्तानों की संरक्षक बनी तथा उसने इन राज्यों का शासन चलाया किंतु वह अकबर की राज्यलिप्सा की भेंट चढ़ गई।

रजिया का पतन उसकी दुर्बलताओं के कारण नहीं वरन् उस युग के कट्टर मुसलमानों की असहिष्णुता के कारण हुआ था। फिर भी कुछ इतिहासकारों ने रजिया पर यह आरोप लगाया है कि उसमें स्त्री-सुलभ दुर्बलताएं थीं। इन इतिहासकारों की दृष्टि में याकूत से उसका अनुराग उत्पन्न होना या अल्तूनिया से विवाह कर लेना उसकी दुर्बलताओं के प्रमाण हैं। जबकि किसी कुंआरी स्त्री का किसी पुरुष के प्रति अनुरक्त होना या किसी से विवाह कर लेना, किसी भी तरह उसकी दुर्बलता नहीं माना जा सकता। वास्तविकता तो यह थी कि रजिया की विफलता इस तथ्य को सिद्ध करती है कि उस युग की राजनीति में स्त्रियों के लिए कोई स्थान नहीं था, वे चाहे कितनी ही योग्य क्यों न हों!

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

भारत के मध्यकाल का इतिहास रजिया के बिना पूरा नहीं होता। जहाँ इतिहास बहुत से दीर्घकालिक सुल्तानों के बारे में बहुत कम जानता है, वहीं रजिया के केवल साढ़े तीन साल के अल्पकालीन शासन के उपरांत भी इतिहास में रजिया के बारे में बहुत अच्छी जानकारी मिलती है। जनमानस में भी रजिया के सम्बन्ध में बहुत सी बातें व्याप्त हैं। ई.1983 में रजिया पर हिन्दी भाषा में सिनेमा का निर्माण किया गया। ई.2015 में रजिया पर टीवी सीरियल का निर्माण हुआ।

तेरहवीं सदी आज बहुत पीछे छूट चुकी है। उसके बाद भारत में कुछ स्त्री-शासक हुई हैं जिन्होंने निरंकुश राजतंत्रीय व्यवस्था से लेकर लोकशासित प्रजातंत्रीय व्यवस्था में सफलता पूर्वक शासन किया है तथा इस बात को सिद्ध करके दिखाया है कि स्त्रियों में शासन करने की प्रतिभा नैसर्गिक रूप से वैसी ही है जैसी कि पुरुषों में हुआ करती है।

यहाँ तक कि भारत से बाहर पाकिस्तान, बांगलादेश तथा श्रीलंका आदि दक्षिण एशियाई देशों में भी स्त्रियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। इन उदाहरणों को देखकर पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि रजिया की विफलता से केवल इतना ही सिद्ध होता है कि तेरहवीं सदी की मध्यकालीन मानसिकता वाले उस युग की बर्बर राजनीति में स्त्रियों के लिए कोई स्थान नहीं था, वे चाहे कितनी ही योग्य क्यों न हों!

To purchase this book, please click on photo.

कुछ इतिहासकारों के अनुसार रजिया ने दिल्ली में मदरसे, पुस्तकालय तथा इस्लामी शोध केन्द्र की स्थापना की जिनमें हजरत मुहम्मद की शिक्षाओं तथा कुरान का अध्ययन किया जाता था किंतु इन संस्थाओं के बारे में अब कोई जानकारी नहीं मिलती।

रजिया के बाद इल्तुतमिश का तीसरा पुत्र मुइजुद्दीन बहरामशाह दिल्ली का सुल्तान हुआ। वह दुस्साहसी तथा क्रूर व्यक्ति था। उसे इस शर्त पर सुल्तान बनाया गया था कि शासन का पूरा अधिकार विद्रोहियों के नेता एतिगीन के हाथों में रहेगा। एतिगीन ने सुल्तान के कई विशेषाधिकार हड़प लिये। वह अपनी हवेली के फाटक पर नौबत बजवाता था और अपने यहाँ हाथी रखता था। एतिगीन ने सुल्तान बहरामशाह की एक बहिन से जबर्दस्ती विवाह कर लिया। इस प्रकार वह सुल्तान से भी अधिक महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली हो गया तथा निरंकुश व्यवहार करने लगा।

एतिगीन के इस आचरण के कारण कुछ ही दिनों में बहरामशाह तथा एतिगीन में ठन गई और बहरामशाह ने एतिगीन की उसके कार्यालय में ही हत्या करवा दी। बहरामशाह ने वजीर निजामुलमुल्क की भी हत्या करवाने का प्रयास किया जो एतिगीन के साथ मिलकर बदमाशी करता था किंतु दुष्ट वजीर बच गया। सुल्तान प्रकट रूप से उसके साथ मित्रता का प्रदर्शन करता रहा।

एतिगीन की हत्या के बाद मलिक बदरुद्दीन सुंकर को अमीर ए हाजिब नियुक्त किया गया। सुंकर भी अति महत्वाकांक्षी निकला। उसने वजीर तथा सुल्तान, दोनों की उपेक्षा करके शासन पर कब्जा जमाने का प्रयास किया। उसने सुल्तान बहरामशाह के विरुद्ध षड़यंत्र रचा। इस पर बहरामशाह ने सुंकर को बदायूं का सूबेदार नियुक्त करके बदायूं भेज दिया। चार माह बाद सुंकर सुल्तान की अनुमति लिये बिना दिल्ली लौट आया। इस पर सुल्तान बहरामशाह ने सुंकर तथा उसके सहयोगी ताजुद्दीन अली को मरवा दिया।

सुल्तान ने एतिगीन के साथ मिलकर षड़यंत्र करने वाले काजी जलालुद्दीन की भी हत्या करवा दी। इन अमीरों की हत्याओं से चारों ओर सुल्तान के विरुद्ध षड़यंत्र रचे जाने लगे। आन्तरिक कलह तथा षड्यन्त्र के साथ-साथ सुल्तान बहरामशाह को मंगोलों के आक्रमण का भी सामना करना पड़ा। ई.1241 में मंगोलों ने लाहौर पर अधिकार कर लिया। ई.1242 में बहरामशाह ने वजीर मुहाजबुद्दीन को एक सेना देकर लाहौर के लिये रवाना किया।

वजीर मुहाजबुद्दीन सेना को लाहौर ले जाने के स्थान पर उसे भड़काकर मार्ग में से ही पुनः दिल्ली ले आया। जब विद्रोहियों ने दिल्ली पर आक्रमण किया तो दिल्ली के नागरिकों ने सुल्तान को बचाने के लिये अपने प्राणों की बाजी लगा दी किंतु अंततः विद्रोहियों ने बहरामशाह को बंदी बना लिया तथा दिल्ली पर अधिकार कर लिया। बहरामशाह बन्दी बना लिया गया और कुछ दिन बाद उसकी हत्या कर दी गई।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source