(अलाउद्दीन खिलजी के उत्तराधिकारी, उमर खिलजी, मुबारक खिलजी, नासिरूद्दीन खुसरो शाह)
अलाउद्दीन खिलजी के उत्तराधिकारी
1316 ई. में अलाउद्दीन की मृत्यु हो गई। इस समय उसकी बेगम मलिका-ए-जहाँ तथा पुत्र खिज्र खाँ कारागृह में बन्द थे। सेना पर मलिक काफूर का नियंन्त्रण था। इसलिये वही उत्तराधिकार का निर्णय कर सकता था। उसने अमीरों को एकत्रित किया और उन्हें सुल्तान की एक वसीयत दिखलायी जिसमें सुल्तान ने अपने सबसे छोटे पुत्र उमर को अपना उत्तराधिकारी और मलिक काफूर को उसका संरक्षक नियुक्त किया गया था। उस समय उमर केवल पांच साल का था। स्वार्थी अमीरों ने इस वसीयत को स्वीकार कर लिया। उमर सुल्तान घोषित कर दिया गया और मलिक काफूर उसका संरक्षक बन गया। इस प्रकार राज्य की सारी शक्ति मलिक काफूर के हाथों में चली गई और वह सल्तनत का वास्तविक शासक बन गया।
राज्य की बागडोर हाथ में आते ही काफूर ने खिलजी वंश के समर्थकों पर अत्याचार करने आरम्भ किये। खिलजी वंश के समस्त समर्थकों को उसने पदच्युत कर दिया। खिज्र खाँ तथा सुल्तान के दूसरे पुत्र शादी खाँ की आँखें निकलवा ली गईं। सुल्तान के तीसरे पुत्र मुबारक की भी आँखें निकलवाने का प्रयास किया गया परन्तु इस कार्य में सफलता न मिली। मलिक काफूर ने अलाउद्दीन की बेगम मलिका-ए-जहाँ से विवाह कर लिया तथा उसकी सारीे सम्पत्ति छीन कर उसे कारागार में डाल दिया। मुबारक खाँ भी जेल में बन्द कर दिया गया। इस प्रकार मलिक काफूर ने सल्तनत पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाया परन्तु उसके ये समस्त प्रयत्न उस समय निष्फल सिद्ध हुए जब ग्वालियर के किले में बन्द मुबारक खाँ कर्मचारियों को घूस देकर दुर्ग से निकल भागा और दिल्ली आ पहुँचा। उसने कुछ अमीरों को अपनी ओर मिलाकर मलिक काफूर के विरुद्ध संगठन खड़ा किया तथा केवल 35 दिन के क्रूर शासन के उपरान्त मलिक काफूर की हत्या कर दी गई।
अब मुबारक खाँ, सुल्तान शिहाबुद्दीन उमर का संरक्षक बन गया परन्तु छः दिन बाद ही मुबारक ने पांच वर्षीय सुल्तान उमर की आँखें निकलवा लीं और कुतुबुद्दीन मुबारक शाह के नाम से तख्त पर बैठ गया।
मुबारक खिलजी
मुबारक खाँ अनुभव-शून्य नवयुवक था। तख्त पर बैठने के समय उसकी आयु 17-18 वर्ष थी। दिल्ली के तख्त पर बैठने के उपरान्त उसने अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिये सेना को सन्तुष्ट करने का प्रयत्न किया। उसने सैनिकों को छः महीने का वेतन पेशगी दे दिया तथा अपने पिता के समय के बनाये हुए समस्त कठोर नियमों को हटा दिया। इससे लोगों ने राहत की सांस ली तथा चारों ओर अच्छा वातावरण बना किंतु मुबारक खिलजी पुराने नियमों एवं व्यवस्थाओं के स्थान पर नये नियम अथवा नई व्यवस्थाएँ नहीं बना सका इससे लोगों में उच्छृखंलता आ गई और उनका नैतिक स्तर बहुत गिर गया। साम्राज्य के विभिन्न भागों में उपद्रव तथा विद्रोह होने लगे।
गुजरात का विद्रोह
मुबारक खाँ को सबसे पहले गुजरात में हुए विद्रोह का सामना करना पड़ा। अल्प खाँ की हत्या के बाद गुजरात में विद्रोह की अग्नि भड़क उठी थी। गुजरात ने दिल्ली से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया था। मुबारक खिलजी ने एक विशाल सेना भेज कर इस विद्रोह को शान्त किया और गुजरात में फिर से दिल्ली सल्तनत की सत्ता स्थापित की।
देवगिरि का विद्रोह
इन दिनों देवगिरि में यादव राजा हरपाल देव शासन कर रहा था। दिल्ली की गड़बड़ी से लाभ उठा कर उसने विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया। इस पर मुबारक खाँ ने एक सेना भेजकर देवगिरि पर अभियान किया। इस युद्ध में हरपाल देव परास्त हो गया। उसकी जिन्दा खाल खिंचवा ली गई और देवगिरि में एक मुसलमान शासक नियुक्त कर दिया गया।
असदुद्दीन का विद्रोह
जब सुल्तान मुबारक खाँ देवगिरि से दिल्ली लौट रहा था तब उसे असदुद्दीन के षड़यंत्र का सामना करना पड़ा जो अलाउद्दीन का भतीजा था। असदुद्दीन ने मुबारक खाँ की हत्या करके तख्त हासिल करने का षड्यन्त्र रचा। मुबारक खाँ को इस षड्यन्त्र का पता लग गया। उसने असदुद्दीन तथा उसके साथियों की सम्बन्धियों सहित हत्या करवा दी।
खिज्र खाँ की हत्या
अब मुबारक खाँ ने खिज्र खाँ की ओर ध्यान दिया। खिज्र खाँ जिसे पहले ही अन्धा कर दिया गया था, इन दिनों अपनी स्त्री देवल देवी के साथ ग्वालियर के किले में बंद था। मुबारक खाँ ने खिज्र खाँ को आदेश भिजवाया कि वह देवल देवी को दिल्ली भेज दे। खिज्र खाँ ने इस आज्ञा का पालन नहीं किया। इसलिये उसकी भी हत्या करवा दी गई।
मुबारक खाँ का अंत
मुबारक खाँ के पतन का कारण उसकी क्रूरता तथा विलासिता की प्रवृत्ति तो थी ही, साथ ही गुजरात का रहने वाला खुसरो नाम का एक अमीर भी उसक पतन के लिये जिम्मेदार था। खुसरो गुजरात का रहने वाला था उसने किसी समय इस्लाम स्वीकार कर लिया था। वह मुबारक खाँ का विश्वस्त था। उसने मुबारक खाँ को नष्ट करने और सल्तनत पर कब्जा करने के लिये मुबारक खाँ को दुर्गुणों में फंसाना आरम्भ किया। मुबारक खाँ की क्रूरता और विलासिता बढ़ती ही चली गई। वह शराब के नशे में डूबा रहता और विलासिता में चूर होकर औरत के कपड़े पहनकर दरबार में आने लगा। उसने भांडों तथा वेश्याओं को दरबार में पुराने तथा अनुभवरी अमीरों का अभद्र संकेतों तथा अशिष्ट भाषा द्वारा अभिवादन करने की आज्ञा दे दी। बरनी लिखता है कि कभी-कभी सुल्तान नंगा होकर अपने दरबारियों के बीच दौड़ा करता था। उसने खलीफा की उपाधि भी धारण कर ली।
खुसरो ने सुल्तान की आज्ञा से 40 हजार अश्वारोहियों की एक सेना तैयार कर ली जिसके बल पर वह सुल्तान को मारने की योजना बनाने लगा। अन्त में एक दिन खुसरो अपने साथियों के साथ रात्रि के समय सुल्तान के महल में घुस गया। जब सुल्तान ने खुसरो से पूछा कि यह शोरगुल क्यों है? तो खुसरो ने उत्तर दिया कि कुछ घोड़े छूट गये हैं ओर ये लोग उन्हें पकड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं। खुसरो यह कह ही रहा था कि खुसरो के आदमी सुल्तान मुबारक खाँ के कक्ष में घुस गये। सुल्तान आतंकित होकर उछल पड़ा और रनिवास की ओर भागा किंतु खुसरो ने उसके बाल पकड़ लिये। जहीरा नामक आदमी ने भालों से छेदकर सुल्तान को मार डाला। मुबारक का सिर धड़ से अलग करके नीचे चौक में फैंक दिया गया। दूसरे दिन खुसरो ने सुल्तान की मृत्यु का घोषणा कर दी और स्वयं नासिरूद्दीन खुसरो शाह के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठ गया। इस प्रकार खिलजी वंश का अन्त हो गया।
नासिरूद्दीन खुसरोशाह
नासिरूद्दीन खुसरोशाह गुजरात का रहने वाला चालाक तथा दुष्टमति व्यक्ति था। उसने किसी समय इस्लाम स्वीकार कर लिया था। वह मुबारक खाँ के सम्पर्क में था। जब मुबारक खाँ दिल्ली का सुल्तान बन गया तब उसके भाग्य का भी उत्कर्ष हो गया। मुबारक खाँ ने खुसरो को तेलंगाना के राय का विद्रोह दबाने के लिए भेजा। खुसरो को इस कार्य में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। वह दक्षिण में अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित करना चाहता था परन्तु मुबारक खाँ ने उसे दिल्ली बुलवा लिया। अब खुसरो ने दिल्ली में अपनी महत्वाकांक्षाओं को विस्तार देना आरम्भ किया। उसने मुबारक खाँ को विलासिता की ओर धकेला तथा उसकी हत्या करके 15 अप्रेल 1320 को स्वयं दिल्ली के तख्त पर बैठ गया।
खुसरो की अलोकप्रियता
खुसरो ने अपने साथियों को राज्य में ऊँचे पद देकर अपनी स्थिति को मजबूत बनाने का प्रयास किया। उसने पुराने अमीरों को उनके पदों पर रहने देकर और उन्हें नई पदवियां देकर प्रसन्न करने का प्रयास किया। उसे शेख निजामुद्दीन औलिया का नैतिक समर्थन प्राप्त हो गया परन्तु तुर्की अमीर उसे पसंद नहीं करते थे। इसके कई कारण थे-
(1.) खुसरो मूलतः हिन्दू धर्म से था तथा बाद में मुसलमान बना था। इसलिये तुर्की अमीरों को वह सुल्तान के रूप में स्वीकार नहीं था।
(2.) खुसरो हिन्दुओं में भी निम्न समझे जाने वाले वर्ग से था। इसलिये स्वयं को उच्च रक्त वंश का समझने वाले तुर्क अमीर उसे सुल्तान स्वीकार करने में अपनी तौहीन समझते थे।
(3.) खुसरो अपनी क्रूरता एवं कृतघ्नता के कारण पर्याप्त अलोप्रिय हो चुका था क्योंकि उसने सुल्तान को पतन के गर्त में धकेल कर सुल्तान की तथा उसके पूरे परिवार की नृशंसतापूर्वक हत्या करवाई थी।
(4.) खुसरो हिन्दुओं के साथ विशेष सहानुभूति दिखाता था और अपने सम्बन्धियों को ऊँचे पद देता था।
(5.) खुसरो ने कई अमीरों को अपमानित किया था। इससे वे भी उसके प्रबल विरोधी थे।
(6.) अमीरों ने खुसरो पर आरोप लगाया कि वह आधा हिन्दू है तथा शाही महलों में मूर्तिपूजा को प्रोत्साहन देता है। वस्तुतः खुसरो के बहुत से सम्बन्धी अब भी हिन्दू थे और वे महलों में रहकर मूर्ति पूजा करते थे।
खुसरो का अंत
खुसरो की अलोकप्रियता तथा उसके क्रूर कामों से उसके विरोधियों की संख्या बढ़ती ही गई। दिपालपुर के हाकिम गाजी मलिक ने खुसरो के विरुद्ध मोर्चा खोला। उसने अन्य हाकिमों को भड़काकर उन्हें संगठित किया। अन्त में दिल्ली के निकट गाजी मलिक तथा खुसरो की सेनाओं में भीषण लड़ाई हुई जिसमें गाजी मलिक की जीत हुई और 5 सितम्बर 1320 को वह खुसरो को मारकर दिल्ली का सुल्तान बन गया। इस प्रकार एक नये राजवंश का प्रादुर्भाव हुआ।
खिलजी वंश के पतन के कारण
अलाउद्दीन खिलजी के शासन में खिलजी वंश का शासन चरमोत्कर्ष को पहुँच गया था परन्तु उसके जीवन के अन्तिम भाग में ही खिलजी वंश की नींव हिलने लगी थी। उसकी मृत्यु होते ही खलजी वंश का पतन हो गया। खलजी वंश के पतन के कई कारण थे-
(1.) मलिक काफूर पर अत्यधिक भरोसा: खिलजी वंश के पतन का बहुत बड़ा उत्तरदायित्व अलाउद्दीन खिलजी पर था। उसने अपने पुत्रों पर विश्वास करने के स्थान पर मलिक काफूर पर भरोसा किया। उसने मलिक काफूर को इतना शक्तिशाली बना दिया कि सल्तनत की सम्पूर्ण सेना पर मलिक काफूर का नियंत्रण हो गया। मलिक काफूर ने सुल्तान तथा उसके वंशजों को नष्ट करने के लिये सुल्तान को उसके पुत्रों के विरुद्ध भड़काकर शहजादों को बंदी बना लिया।
(2.) कमजोर उत्तराधिकारी की नियुक्ति: अलाउद्दीन खिलजी ने अपने जीवन काल में अपने बड़े पुत्रों को जेल में डलवाकर अपने छः वर्षीय पुत्र शिहाबुद्दीन उमर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। यह उसके जीवन की सबसे बड़ी गलती थी। उन दिनों में जब हर अमीर भेड़िये की तरह सुल्तान के तख्त का शिकार करने की फिराक में रहता था अलाउद्दीन ने जवान और अनुभवी पुत्रों के जीवित रहते हुए अपने छः वर्ष के पुत्र को अपना उत्तराधिकारी बनाया। इससे मलिक काफूर को सुल्तान का संरक्षक बनकर दिल्ली सल्तनत पर अधिकार करने का अवसर मिल गया।
(3.) खिज्र खाँ को अंधा करके कैद में डाल दिया जाना: अलाउद्दीन खिलजी का बड़ा पुत्र खिज्र खाँ अंधा करके उसकी स्त्री सहित ग्वालियर के दुर्ग में बंद कर दिया गया था। अलाउद्दीन के दूसरे पुत्र मुबारक खाँ को भी ग्वालियर दुर्ग में बंद कर दिया गया था। इस कारण वे मलिक काफूर के विरुद्ध कुछ नहीं कर सके।
(4.) उत्तराधिकारियों की अयोग्यता: सुल्तान के कई पुत्र थे। उसकी मृत्यु के समय खिज्र खाँ, मुबारक खाँ तथा शादी खाँ युवा थे। उमर शिहाबुद्दीन केवल छः साल का बालक था। सुल्तान ने अपने पुत्रों की शिक्षा का प्रबंध नहीं किया तथा उन्हें योग्य बनाने का भी कोई प्रयास नहीं किया। इसलिये उनमें मलिक काफूर जैसे दुर्दांत अमीर से स्वयं को बचाने तथा तख्त पर अधिकार करने की योग्यता भी नहीं थी।
(5.) सैनिक शासन की स्वाभाविक दुर्बलता: अलाउद्दीन ने सेना के बल पर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी जिसे चलाने के लिये उसे विशाल स्थायी सेना की आवश्यकता रहती थी। अतः सेना के हित के लिए उसने अन्य समस्त हितों को त्याग दिया था। सैनिक शासन कभी स्थायी नहीं हो पाता क्योंकि शक्ति की कुछ सीमाएं होती है। अलाउद्दीन की शक्ति सीमा का उल्लंघन कर गई थी, अतः वही उसके पतन का कारण सिद्ध हुई।
(6.) योग्य परामर्शदाताओं का अभाव: खिलजी वंश के पतन का एक यह भी कारण था कि अलाउद्दीन के जीवन के अन्तिम भाग में सुल्तान का कोई अच्छा पारामर्शदाता न रहा। अलाउद्दीन ने अपने वीर तथा बुद्धिमान् परामर्शदाताओं की सहायता से विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी परन्तु उसके शासन काल के अन्तिम भाग में ये समस्त परामर्शदाता काल कवलित हो गये थे और सुल्तान असहाय तथा किंकर्त्तव्यमूढ़ हो गया था।
(7.) नीच लोगों को प्रात्साहन: खिलजी वंश के सुल्तानों ने नीच व्यक्तियों को अपना प्रिय बनाया। अलाउद्दीन ने मलिक काफूर को और मुबारक ने खुसरो को अपना प्रिय तथा विश्वासपात्र बनाया। इन्हीं दोनों के कारण खिलजी वंश का पतन हुआ। काफूर ने अलाउद्दीन को बहकाकर राजवंश में कलह का बीज बो दिया जिससे खिलजी वंश की जड़ें हिल गईं। खुसरो ने मुबारक को दुर्व्यसनों मे फंसा कर उसका सत्यानाश कर दिया।
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