जब फरवरी 1527 में महाराणा सांगा आगरा की ओर बढ़ने लगा तो जहीरुद्दीन बाबर भी एक सेना लेकर महाराणा सांगा से युद्ध करने के लिए चल पड़ा। महाराणा की सेना ने बाबर की सेना के कई अग्रिम दलों पर हमला करके उन्हें भारी क्षति पहुंचाई थी।
इस कारण बाबर की सेना में सांगा की सेना का आतंक फैल गया और वह तोपगाड़ियों एवं लकड़ी की तिपाहियों के पीछे छिपकर रहने लगी। उन्हीं दिनों शरीफ मुहम्मद नामक एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि इस युद्ध में बाबर की पराजय होगी। इससे बाबर की सेना में और अधिक घबराहट फैल गई।
बाबर की सेना में शराब, अरक, बूजा तथा माजून आदि मादक द्रव्यों का बहुतायत से प्रयोग होता था। बादशाह से लेकर पैदल सिपाही तक सभी नशा करते थे और नशा करना बाबर की सेना की कमजोरी बन गया था। स्वयं बाबर ने अपनी आत्मकथा में अपनी तथा अपनी सेना की इस लत का कई बार उल्लेख किया है।
बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है- ‘जब मेरी सेना ने धौलपुर पर अधिकार किया तब मैं स्वयं धौलपुर गया। मैं धौलपुर में मीराने बाग अर्थात् कमल उद्यान देखने गया। इस बाग का स्थापत्य देखते ही बनता था। लाल पत्थर में तराशे गये कमल पुष्पा में फव्वारे लगे हुए थे। इस बाग में कमल की आकृति का एक सुंदर कुण्ड स्थित था। मैंने अपने सिपाहियों से कहा कि यदि वे महाराणा सांगा को परास्त कर देंगे तो मैं इस कुण्ड को शराब से भरवा दूंगा ताकि मेरे सैनिक छककर शराब पी सकें और मौज-मस्ती मना सकें।’
जब सांगा की सेना बाबर के सामने आकर खड़ी हो गई तो बाबर के विचार बदलने लगे। संभवतः बाबर के अवचेतन पर मृत्यु का भय छा जाने से ऐसा हुआ। बाबर ने लिखा है- ’25 फरवरी 1527 को जब मैं प्रातःकाल की सैर पर निकला तो मेरे हृदय में पाप से तौबा करने का विचार आया और मैंने शराब पीना छोड़ने का निश्चय किया। मैंने सोने-चांदी की सुराहियां तथा प्याले और दावत के बरतन मंगवाए और उन्हें तत्काल तोड़ दिया। इस प्रकार मदिरापान का त्याग करके मेरे हृदय को शांति प्राप्त हो गई।
मैंने सोने-चांदी के बरतनों को तुड़वाकर उन्हें निर्धनों एवं दरवेशों में बांट दिया। मेरे रात्रिकालीन पहरेदार असस ने इस कार्य में मेरा साथ दिया। वह दाढ़ी न मुंडवाने के निर्णय में भी मेरा साथ दे चुका था। उस रात्रि में तथा दूसरे दिन तक बेगों, अंगरक्षकों एवं लगभग 300 लोगों ने शराब से तौबा कर ली। जो मदिरा हमारे साथ थी, वह भूमि पर फैंक दी गई। जो मदिरा बाबा दोस्त गजनी से लाया था, उसके लिए आदेश हुआ कि उसमें नमक मिला कर सिरका बना दिया जाए। जिस स्थान पर शराब फैंकी गई थी, उस स्थान पर एक कुआं खुदवाने तथा उसके निकट एक खैरातखाना बनाने का आदेश दिया।’
बाबर की ओर से अपने समस्त गवर्नरों और बेगों के नाम यह फरमान जारी किया गया कि वे भी अपने अधीनस्थों को शराब पीने से तौबा करने के लिए प्रेरित करें। हालांकि बहुत से इतिहासकारों ने यह लिखा है कि बाबर ने अपने सैनिकों को प्रोत्साहित करने के लिए शराब के बर्तन तोड़े तथा शराब न पीने का प्रण किया किंतु बाबर ने अपने संस्मरणों में शराब छोड़ने का कारण बताते हुए लिखा है- ‘मैंने अपने मुँह में मौत को देख लिया था, इसलिए अब मैं पाप से तौबा करना चाहता था।’
बाबर ने अपने मुँह में मौत देखने की बात को स्पष्ट नहीं किया है। संभव है कि बाबर को महाराणा सांगा से होने वाले युद्ध में अपनी सेना की पराजय दिखाई देने लगी थी जिसमें बाबर की मृत्यु भी हो सकती थी। इसलिए वह मरने से पहले पापमुक्त होना चाहता था।
बाबर ने लिखा है- ‘मेरी सेना की निराशा बढ़ती जा रही थी। कोई भी बेग और खान वीरता एवं साहसपूर्ण सलाह नहीं देता था। वजीरों द्वारा, जिन्हें बात करनी चाहिए कोई पौरुष सम्बन्धी बात नहीं होती थी। और जो अमीर बड़े-बड़े प्रदेशों को हजम कर जाते हैं, कोई बात नहीं करते थे। न तो कोई साहसपूर्ण परामर्श देता था ओर न कोई किसी आक्रमण के विषय में कोई योजना बनाता था। मैंने अपने लोगों को हतोत्साहित और शिथिल देखकर एक उपाय करने का विचार किया। मैंने अपने समस्त बेगों एवं वीरों को बुलाकर एक भाषण दिया।’
बाबर लिखता है- ‘मैंने अपने बेगों एवं सैनिकों से कहा कि जो कोई भी जीवन की सभा में प्रवष्टि हुआ है, अंत में वह मृत्यु का प्याला पिएगा। जो जीवन की सराय में आया है, अंत में भूमि के दुःख भरे घर से चला जाएगा। कुख्यात होकर जीवित रहने से यश पाकर मृत्यु को प्राप्त होना अच्छा है।
महान् अल्लाह ने हमें इतना बड़ा सौभाग्य प्रदान किया है और इतने बड़े यश को हमारे निकट कर दिया है कि हम लोग या तो शहीद होंगे या गाजी। अतः सबको कुरान शरीफ की शपथ लेनी चाहिए कि कोई भी, शत्रु के सामने मुँह मोड़ने के विषय में नहीं सोचेगा और जब तक शरीर में प्राण हैं, उस समय तक रणक्षेत्र एवं युद्ध से पृथक नहीं होगा। मेरे कहने से समस्त बेगों, सेवकों तथा सैनिकों ने हाथ में कुरान लेकर शपथ ली।’
अभी युद्ध आरम्भ भी नहीं हुआ था कि बाबर को विभिन्न क्षेत्रों से चिंताजनक समाचार मिलने लगे कि जिन क्षेत्रों को बाबर ने अपने अधीन किया था, उन क्षेत्रों के लोग बाबर को सांगा की दाढ़ में फंसा हुआ जानकर विद्रोह करने लगे। रापरी, चंदवार, दो-आब के क्षेत्र, ग्वालियर, संभल में स्थान-स्थान पर हिन्दुस्तानियों ने बाबर के अधिकारियों को निकालना आरम्भ कर दिया।
बाबर ने लिखा है- ‘मैंने इन समाचारों की कोई चिंता नहीं की तथा अपने कार्य में लगा रहा।’
13 मार्च 1527 को बाबर की सेना ने तोपगाड़ियों और पैदल सैनिकों को सीकरी से आगे बढ़ाना आरम्भ किया। उन्होंने गाड़ियों को तो अपने सामने कर लिया तथा सेना के तीनों तरफ लकड़ी की पहियेदार तिपाइयां लगा लीं ताकि सांगा की सेना अचानक बाबर की सेना पर हमला नहीं कर सके।
बाबर ने सीकरी से प्रस्थान करने से पहले ही अपनी सेनाओं को कतारबद्ध कर लिया था ताकि कहीं अचानक ही शत्रू का आक्रमण हो जाए तो बाबर की सेना में अफरा-तफरी न मचे। उसने सेना के चार स्पष्ट विभाग किए जिन्हें वह आगे का भाग, दायां भाग, बायां भाग तथा मध्य भाग कहता था। बाबर अपने सेनापतियों सहित घोड़ों पर सवार होकर इस सेना के चारों ओर चक्कर लगाता रहता था ताकि सेना की पंक्तियाँ न बिखरें।
इस दौरान बाबर सैनिकों को समझाता रहता था कि उन्हें किस प्रकार युद्ध करना है और किस परिस्थिति में क्या करना है! यह सचमुच बाबर के लिए जीवन-मरण का प्रश्न था और बाबर ने इस प्रश्न को हल करने के लिए हर संभव तैयारी की।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता