फीरोज तुगलक ने पिछले सुल्तान का परलोक सुधारने के लिए जनता से क्षमापत्र लिखवाकर उसकी कब्र में गढ़वाए तथा इस्लामिक शिक्षा देने के लिए मदरसों एवं मकतबों की स्थापना करने के साथ-साथ बेरोजगारी उन्मूलन का विभाग भी स्थापित किया।
फीरोज तुगलक युद्धप्रिय सुल्तान नहीं था। इस कारण उसमें सैनिकों जैसा साहस तथा उत्साह नहीं था। वह मुस्लिम स्त्रियों को करुण क्रंदन करते हुए नहीं देख सकता था इसलिए उसने विद्रोही प्रांतों को फिर से लेने का प्रयास नहीं किया। उसमें राज्यविस्तार की महत्त्वाकांक्षा भी नहीं थी। जहाँ कहीं भी मुस्लिम प्रजा का विनाश होता हो, सुल्तान अपनी विजय दृष्टि-गोचर होने पर भी या तो पीछे हट जाता था या शत्रु से सन्धि कर लेता था।
मुस्लिम लेखकों ने सुल्तान फीरोजशाह द्वारा ऐसा किए जाने के पीछे का कारण बताते हुए लिखा है कि वह धार्मिक वृत्ति का सुल्तान था। जबकि वास्तविकता यह थी कि वह एक ऐसी अटपटी धार्मिक प्रवृत्ति का सुल्तान था जो रणस्थल में भी मुसलमानों का रक्तपात नहीं देख पाता था जबकि जबकि दूसरी ओर शांति से रह रहे हिन्दुओं को नष्ट करने में उसने पूरा उत्साह दिखाया था।
इसका कारण बताते हुए मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखा है कि उलेमाओं के प्रभाव में होने के कारण फीरोज ऐसा करता था। उसने हिन्दू शासकों द्वारा शासित जाजनगर तथा नगरकोट को जीतने में पूरा उत्साह दिखाया।
मुहम्मद बिन तुगलक के समय में हुए विद्रोहों के कारण दिल्ली सल्तनत के बहुत से मुस्लिम शासित प्रांत स्वतंत्र हो गए थे। फीरोज पर उन्हें फिर से सल्तनत में शमिल करने की जिम्मेदारी थी किंतु उसने इसके लिए विशेष प्रयास नहीं किये। उसने हिन्दू शासित जाजनगर तथा नगरकोट पर आक्रमण करके उन्हें फिर से दिल्ली सल्तनत के अधीन किया।
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मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल के अन्तिम भाग में बंगाल ने दिल्ली से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया था। बंगाल के गवर्नर हाजी इलियास ने शमसुद्दीन इलियास शाह की उपाधि धारण करके स्वयं को बंगाल का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया था। फीरोज तुगलक ने बंगाल को फिर से दिल्ली सल्तनत के अधीन करने के लिए ई.1353 में एक विशाल सेना के साथ बंगाल के लिए कूच किया। जब इलियास को फीरोज तुगलक के आने की सूचना मिली तो उसने अपने को इकदला के किले में बन्द कर लिया।
फीरोज ने इलियास को किले से बाहर निकालने के लिए अपनी सेना को पीछे हटाना आरम्भ किया। जब फीरोज की सेना कई मील पीछे चली गई तो इलियास ने किले से बाहर निकलकर फीरोज की सेना का पीछा किया। अब सुल्तान की सेना लौट पड़ी। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। फीरोज की सेना को विजय प्राप्त हुई। जब वह किले पर अधिकार स्थापित करने गया तो उसने मुस्लिम स्त्रियों का करुण क्रंदन सुना। जिसे सुनकर फीरोज दुर्ग पर अधिकार स्थापित किये बिना ही वहाँ से लौट पड़ा।
जब शाही सेनापति तातार खाँ ने फीरोज तुगलक को परामर्श दिया कि वह बंगाल को अपने राज्य में मिला ले तो उसने यह कह कर टाल दिया कि बंगाल जैसे दलदली प्रान्त को दिल्ली सल्तनत में मिलाना बेकार है। इस प्रकार परिश्रम से प्राप्त हुई विजय को भी सुल्तान ने खो दिया और बंगाल स्वतन्त्र ही बना रहा।
बंगाल से लौटते समय सुल्तान ने जाजनगर अर्थात वर्तमान उड़ीसा पर आक्रमण किया। जाजनगर के राजा ने सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली और प्रतिवर्ष कुछ हाथी कर के रूप में भेजने का वचन दिया। इस युद्ध में सुल्तान ने अपनी धार्मिक कट्टरता तथा असहिष्णुता का परिचय दिया। उसने पुरी में भगवान जगन्नाथ के मन्दिर को नष्ट-भ्रष्ट करवा दिया और मूर्तियों को समुद्र में फिंकवा दिया। जाजनगर को जीतने के बाद मार्ग में बहुत से सामन्तों तथा भूमिपतियों पर विजय प्राप्त करता हुआ फीरोज तुगलक दिल्ली लौट आया।
मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल के अन्तिम भाग में नगरकोट का राज्य स्वतन्त्र हो गया था। फीरोजशाह तुगलक ने फिर से नगरकोट को दिल्ली सल्तनत के अधीन करने का निश्चय किया। नगरकोट पर आक्रमण करने का एक और भी कारण था। नगरकोट राज्य में स्थित ज्वालादेवी का मन्दिर इन दिनों अपनी धन-सम्पदा के लिए प्रसिद्ध था। इस मन्दिर में सहस्रों यात्री दर्शन के लिए आते थे और मूर्तिपूजा करते थे। यह बात फीरोज तुगलक के लिए असह्य थी। इसलिए उसने नगरकोट पर आक्रमण कर दिया।
नगरकोट के हिन्दू राजा ने छः महीने तक बड़ी वीरता से दुर्ग की रक्षा की किंतु अन्त में विवश होकर उसने फीरोज से संधि की प्रार्थना की। सुल्तान ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली तथा उससे विपुल धन लेकर अपनी सेना हटा ली।
ज्वालादेवी मन्दिर से फीरोज को संस्कृत भाषा में लिखी हुई 1,300 पुस्तकें मिलीं। फीरोज ने उनमें से कुछ पुस्तकों का फारसी भाषा में अनुवाद करवाया।
मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल के अन्तिम दिनों में सिंध में भयानक विद्रोह आरम्भ हो गया था। मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु सिंध के विद्रोह का दमन करते समय ज्वर से पीड़ित होकर थट्टा में हुई थी। इस कारण फीरोज तुगलक सिन्ध के लोगों को अपना शत्रु समझता था और उन्हें अपने हाथों से दण्डित करना चाहता था। इसलिए ई.1371 में उसने एक विशाल सेना के साथ सिन्ध के लिए प्रस्थान किया।
वह सिंध के मुस्लिम शासक एवं प्रजा को जी भर कर दण्डित करना चाहता था किंतु इस अभियान में फीरोज को विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई परन्तु अन्त में सिन्ध के शासक ने सुल्तान फीरोज तुगलक से क्षमा याचना की। सुल्तान ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसने सिंध के शासक को हटाकर उसके भाई को सिन्ध का शासक बना दिया। बंगाल की भांति सिन्ध में भी फीरोज मुसलमानों के प्रति अपनी उदारता के कारण विफल रहा।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि फीरोज की युद्धनीति दो अलग भागों में बंटी हुई थी। हिन्दुओं के लिए अलग नीति थी तथा मुसलमानों के लिए अलग नीति थी। वह हिन्दुओं को नष्ट करना अपना कर्त्तव्य समझता था किंतु मुस्लिम औरतों का करुण क्रंदन नहीं सुन सकता था। उसके सैनिक युद्ध में प्राप्त विजय का भी उपभोग नहीं कर पाते थे क्योंकि फीरोज मुसलमानों के प्रति अपनी उदारता के कारण उसे खो देता था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता