फीरोजशाह तुगलक ने हिन्दुओं एवं मुसलमान शासकों के लिए अलग-अलग युद्धनीतियों का निर्वहन किया। वह मुस्लिम विद्रोहियों को क्षमा कर देता था और विधर्मी शासक को दण्ड दिए बिना नहीं छोड़ता था। फीरोजशाह की यह नीति शासन के प्रत्येक अंग में देखी जा सकती थी। फिर भी वह हिन्दू राजाओं पर आक्रमण करने का साहस नहीं कर सका।
फीरोज तुगलक ने जाजनगर और नगरकोट को छोड़कर किसी भी हिन्दू शासक पर आक्रमण नहीं किया। राजपूताना के राजाओं से युद्ध करना उसके वश की बात नहीं थी। इसलिए दिल्ली सल्तनत के जो क्षेत्र मुहम्मद बिन तुगलक के समय दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र हो गए थे, वह फीरोज तुगलक के समय में भी दिल्ली सल्तनत में फिर से नहीं मिलाए जा सके।
फीरोज तुलगक ने केवल दो मुस्लिम शासकों के विरुद्ध युद्ध किए जिनमें से पहला था बंगाल तथा दूसरा था सिंध। बंगाल में जब उसने मुस्लिम औरतों का क्रंदन सुना तो वह बंगाल से भाग आया तथा सिंध के मुस्लिम शासक ने जब सुल्तान से क्षमा याचना की तो सुल्तान फीरोज तुगलक ने उसे क्षमा कर दिया।
फीरोज तुगलक ने युद्ध की बजाय सल्तनत की कर-व्यवस्था में अधिक रुचि ली। फीरोज को सुल्तान बनने से पहले सल्तनत की राजस्व व्यवस्था का कुछ अनुमान था। इसके आधार पर उसने ख्वाजा हिसामुद्दीन नामक एक अनुभवी व्यक्ति को सल्तनत का राजस्व निरीक्षक नियुक्त किया। ख्वाजा हिसामुद्दीन ने सल्तनत के राजस्व अभिलेख का अध्ययन किया तथा छः साल तक विभिन्न प्रांतों में घूम-घूमकर सल्तनत के वास्तविक राजस्व का आकलन किया और सुल्तान को सूचित किया कि सल्तनत को खालसा भूमि से प्रतिवर्ष छः करोड़ पचासी लाख टंका आय होनी चाहिए।
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ख्वाजा की सलाह के अनुसार सुल्तान ने सल्तनत की सम्पूर्ण खालसा भूमि के लिए प्रतिवर्ष छः करोड़ पचासी लाख टंका भू-राजस्व एकत्रित करने का लक्ष्य निर्धारित कर दिया। यह एक आश्चर्य की ही बात थी कि जब तक फीरोज तुगलक सुल्तान के पद पर बैठा रहा, दिल्ली सल्तनत को खालसा भूमि से इतनी ही आय होती रही। खालसा भूमि का अर्थ होता है, वह भूमि जो शुद्ध रूप से केन्द्र सरकार के अधीन हो। सल्तनत की आय का प्रमुख साधन भूमिकर था किंतु भूमिकर के अतिरिक्त भी आय के साधन थे। चूंकि सुल्तान को सैनिक अभियानों पर धन व्यय नहीं करना था इसलिए उसे राजकोष भरने की उतनी चिन्ता नहीं थी जितनी शासन को दृढ़ता देने की।
फीरोज तुगलक ने कुरान के नियमानुसार जनता पर केवल चार कर- खिराज, जकात, जजिया तथा खाम जारी रखे, शेष समस्त कर हटा दिए।
खिराज उस कर को कहते थे जो भूमिपतियों, जागीरदारों अथवा प्रांतपतियों से राजस्व-संग्रहण का अधिकार देने के बदले लिया जाता था। फीरोज तुगलक मुस्लिम-किसानों से 15 प्रतिशत भू-राजस्व के रूप में लेता था जबकि हिन्दू प्रजा को अब भी 50 प्रतिशत भू-राजस्व कर देना पड़ता था।
जकात केवल मुसलमानों से लिया जाता था। प्रत्येक मुसलमान के लिए अनविार्य था कि वह अपनी आय में से चालीसवां हिस्सा अर्थात् ढाई प्रतिशत सुल्तान को दे। सुल्तान इस धन का उपयोग इस्लाम की सेवा में करता था।
जजिया हिन्दुओं से लिया जाता था। आठवीं शताब्दी में हुए अरब आक्रमण के समय से ही ब्राह्मण जजिया से मुक्त थे किंतु फीरोजशाह तुगलक ने उलेमाओं के कहने पर ब्राह्मणों पर भी जजिया लगा दिया। शाक्त सम्प्रदाय के हिन्दुओं का उसने विशेष रूप से दमन किया।
खाम अथवा खम्स लूट में प्राप्त माल को कहते थे। कुरान के अनुसार सुल्तान को लूट में से केवल 20 प्रतिशत कर लेना चाहिए। शेष भाग सेना को मिलना चाहिए किंतु अल्लाउद्दीन खिलजी तथा मुहम्मद बिन तुगलक हिन्दू राज्यों से प्राप्त लूट के माल में से 80 प्रतिशत स्वयं लेते थे तथा 20 प्रतिशत अपनी सेना में बंटवाते थे। फीरोज तुगलक ने लूट के माल का कुरान के नियमों के अनुसार बंटवारा करवाना तय किया।
फीरोज तुगलक ने पांच नहरों का निर्माण करवाया। इनमें सबसे लम्बी नहर 150 मील लम्बी थी जो यमुनाजी के जल को हिसार तक ले जाती थी। दूसरी नहर 96 मील लम्बी थी जो सतलज एवं घग्घर को आपस में जोड़ती थी। तीसरी मांडवी तथा सिरमौर की पहाड़ियों से आरम्भ होकर हांसी तक पहुंचती थी। चौथी घग्घर से फीरोजाबाद तक तथा पांचवी नहर यमुनाजी से फीरोजाबाद तक पहुंचती थी। फीरोज तुगलक ने किसानों के लिए 160 कुएं भी खुदवाए।
जो किसान सिंचाई के लिए सरकारी नहरों का पानी उपयोग करते थे, उन्हें अपनी उपज का 10 प्रतिशत अतिरिक्त कर देना पड़ता था। फीरोज तुगलक ने दिल्ली के आसपास फलों के 1,200 बाग लगवाए जिनसे सल्तनत को एक लाख अस्सी हजार टंका आय होने लगी।
कुछ मुस्लिम लेखकों ने लिखा है कि फीरोजशाह तुगलक के शासन काल में दिल्ली सल्तनत में एक भी ऊजड़ (ऊसर) गांव नहीं था और एक भी ऐसा खेत नहीं था जो बिना जुते रहता हो। इस कारण उसके शासन में इतनी फसल होती थी कि सल्तनत में अकाल पड़ने बंद हो गए।
शम्से शिराज अफीक ने लिखा है- ‘जनता के घर अन्न, सम्पत्ति, घोड़ों तथा फर्नीचर से भरे पड़े थे। प्रत्येक व्यक्ति के पास प्रचुर मात्रा में सोना तथा चांदी थी, कोई ऐसी स्त्री नहीं थी जिसके पास आभूषण न हों और न कोई ऐसा घर था जिसमें अच्छे पलंग और दीवान न हों। धन खूब था और सभी लोग आराम से रहते थे। इस युग में राज्य को दिवालियापन का सामना नहीं करना पड़ता था। दो-आब से अस्सी लाख टंका आय होती थी और दिल्ली का राजस्व छः करोड़ पचासी लाख टंका था।’
कोई भी व्यक्ति जिसने मध्यकालीन इतिहास का किंचित् भी अध्ययन किया हो, वह जानता है कि हिन्दुओं को पेट भर भोजन मिलना कठिन था। हिन्दुओं के लिए धन-सम्पत्ति रखना वर्जित था। सोने-चांदी के जेवर की तो कौन कहे, हिन्दुओं के घरों में मिट्टी के बर्तन भी ढंग के नहीं थे। इसलिए यह कहना कठिन नहीं है कि या तो शम्से शिराज अफीक ने पूरी तरह से झूठ लिखा है या फिर उसका यह कथन केवल मुस्लिम प्रजा के लिए है।
तत्कालीन मुस्लिम लेखकों ने लिखा है कि फीरोज तुगलक ने 300 नगरों की स्थापना की। वस्तुतः यह संख्या उन गांवों की हो सकती है जो अल्लाउद्दीन खिलजी तथा मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में शाही सैनिकों के अत्याचारों के कारण उजड़ गए थे और फीरोजशाह तुगलक द्वारा नहरों का निर्माण करने के कारण फिर से बसने लगे थे। फिर भी फीरोजशाह के काल में आगरा के निकट फिरोजाबाद, दिल्ली के निकट कोटला फीरोजशाह, बदायूं के निकट फीरोजपुर आदि नगर अवश्य ही बसाए गए थे।
फीरोजशाह तुगलक ने 4 मस्जिदों, 30 महलों, 200 काफिला सरायों, 5 तालाबों, पांच दवाखानों, 100 कब्रों, 10 गुसलखानों, 10 दरगाहों और 100 पुलों का निर्माण करवाया। वह मेरठ तथा खिज्राबाद से दो अशोक-स्तंभों को उठाकर दिल्ली लाया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता