फीरोजशाह तुगलक की धर्मांधता ने दिल्ली सल्तनत के शासनतंत्र में कई तरह की विसंगतियां उत्पन्न कर दीं। एक ओर वह मुस्लिम प्रजा को हर अपराध के लिए क्षमा कर रहा था तो दूसरी ओर अन्य धर्मों के लोगों के लिए फीरोजशाह तुगलक में दया और क्षमा का लवलेश भी नहीं था।
जब ई.712 में मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध के क्षेत्र में इस्लामिक शासन लागू किया था, तब उसने हिन्दुओं से जजिया लेने का नियम बनाया था। मुहम्मद बिन कासिम ने जजिया की तीन दरें स्थापित कीं। वह सम्पन्न वर्ग से 48 दिरहम, मध्यम वर्ग से 24 दिरहम एवं निर्धन वर्ग से 12 दिरहम जजिया लेता था। उसने ब्राह्मणों को जजिया से मुक्त रखा। एम. एल. राय चौधरी ने लिखा है कि मुहम्मद-बिन कासिम ने ब्राह्मणों को उनकी सेवाओं के प्रत्युत्तर में जजिया से मुक्त कर दिया था। हालांकि चौधरी ने यह नहीं बताया है कि वे सेवाएं कौनसी थीं जिनके बदले में ब्राह्मणों को जजिया से मुक्त रखा गया था!
ऐसा प्रतीत होता है कि मुहम्मद बिन कासिम को आशा थी कि ऐसा करने से ब्राह्मण समुदाय अरबी मुसलमानों के शासकों से सहानुभूति का प्रदर्शन करेगा तथा ब्राह्मण समुदाय का शेष समाज पर प्रभाव होने से भारत में इस्लाम का प्रसार करने में सहायता मिलेगी। यद्यपि जजिया में दी गई छूट से भारत के मुस्लिम शासकों को ब्राह्मण समुदाय की सहानुभूति तो नहीं मिली तथापि ब्राह्मणों को जजिया में दी गई छूट ई.1351 में मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु होने तक जारी रही। इसे ब्राह्मणों का विशेषाधिकार समझा गया।
उलेमा और मौलवी ब्राह्मणों पर भी जजिया लागू करना चाहते थे किंतु दिल्ली के सुल्तान इस व्यवस्था में इस कारण परिवर्तन करने को तैयार नहीं होते थे कि इससे सम्पूर्ण ब्राह्मण समुदाय तुर्की शासन के विरोध में उठ खड़ा होगा तथा अन्य हिन्दू भी उसका साथ देंगे। इसलिए तुर्की सुल्तान इस विषय पर चुप लगा जाते थे किंतु फीरोजशाह तुगलक मुल्ला-मौलवियों, उलेमाओं, मुफ्तियों और काजियों के दबाव में आ गया और उसने ब्राह्मणों से जजिया लेने के आदेश दिए।
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सुल्तान के इस आदेश से सम्पूर्ण दिल्ली सल्तनत में हड़कम्प मच गया। दिल्ली के सैंकड़ों ब्राह्मण एकत्रित होकर सुल्तान के समक्ष उपस्थित हुए तथा उन्होंने सुल्तान से आग्रह किया कि जो छूट ब्राह्मण समुदाय को सैंकड़ों सालों से मिलती रही है, सुल्तान उसे बंद न करे किंतु सुल्तान ने ब्राह्मणों का अनुरोध स्वीकार नहीं किया तथा उन्हें भगा दिया। इस पर ब्राह्मणों ने सुल्तान के निवास-स्थल ‘कूश्के शिकार’ पर अनशन आरम्भ कर दिया। उनका विचार सुल्तान के इस आदेश के विरुद्ध भूखे रहकर प्राण त्यागने का था। ब्राह्मणों ने सुल्तान के महल के समक्ष, आत्मदाह करने की भी धमकी दी।
जब दिल्ली के अन्य हिन्दुओं को ब्राह्मणों के इस संकल्प की जानकारी हुई तो उन्होंने ब्राह्मणों से अनुरोध किया कि वे अनशन एवं आत्मदाह नहीं करें, ब्राह्मणों का जजिया भी दिल्ली के अन्य हिन्दू चंदा करके चुका देंगे। फीरोजशाह तुगलक के समय में हिन्दू प्रजा से तीन दरों के अनुसार जजिया लिया जाता था। सम्पन्न वर्ग से 40 टंका, मध्यम वर्ग से 20 टंका तथा निर्धन वर्ग से 10 टंका। तीर्थकर इससे अलग था।
फीरोजशाह तुगलक के समकालीन लेखक अफ़ीफ़ ने लिखा है कि दिल्ली के समस्त ब्राह्मणों ने एकत्रित होकर सुल्तान से निवेदन किया कि ब्राह्मणों से न्यूनतम दर से जजिया लिया जाए। इस पर सुल्तान ने प्रत्येक ब्राह्मण से पंजाहगानी तथा 10 टंका लेने का आदेश दिया। कहा नहीं जा सकता कि पंजाहगानी से क्या आशय था किंतु अनुमान होता है कि दोनों हथेलियों को जोड़कर उनमें जो धान आता है, उसे पंजाहगानी कहते होंगे। इस प्रकार ब्राह्मणों पर जजिया लागू हो गया।
कुछ समय बाद एक और घटना घट गई जिसने ब्राह्मण समुदाय को स्तम्भित कर दिया। फीरोजशाह तुगलक के समकालीन लेखक अफ़ीफ़ ने इस घटना का उल्लेख अपने ग्रंथ में किया है। वह लिखता है कि सुल्तान को किसी ने बताया कि दिल्ली में एक ऐसा ब्राह्मण रहता है जो खुल्लम-खुल्ला मूर्ति-पूजा करता है। उसने लड़की की एक मुहर बनवाई है जिसके भीतर और बाहर हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र बनवाएं हैं। हिन्दू लोग एक निश्चित दिन उसके घर एकत्रित होकर मूर्तिपूजा करते हैं। उस ब्राह्मण ने एक मुस्लिम स्त्री को भी फिर से हिन्दू बना लिया है।
इस पर सुल्तान ने आलिमों, सूफियों एवं मुफ्तियों को बुलवाकर उनसे पूछा कि क्या किया जाना चाहिए? आलिमों, सूफियों एवं मुफ्तियों ने सुल्तान से कहा कि या तो वह ब्राह्मण, मुसलमान बन जाए, अन्यथा उसे जीवित जला दिया जाए।
सुल्तान ने उस ब्राह्मण को फीरोजाबाद बुलवाया। वह ब्राह्मण उस लड़की की प्रतिमा वाली मुहर के साथ सुल्तान के समक्ष उपस्थित हुआ जिसकी कि वह पूजा किया करता था। सुल्तान ने उससे कहा कि या तो वह मुसलमान बन जाए या फिर जलकर मरने के लिए तैयार हो जाए। इस पर वह ब्राह्मण जलकर मरने के लिए तैयार हो गया। सुल्तान के आदेश से संध्या की नमाज के समय उस ब्राह्मण को लड़की की प्रतिमा वाली मुहर के साथ जला दिया गया।
अफ़ीफ़ ने जिसे लड़की की मुहर कहा है, वस्तुतः वह किसी देवी की प्रतिमा वाली मुहर रही होगी तथा उस पर अन्य देवी-देवताओं की आकृतियां भी रही होंगी। कुछ इतिहासकार फीरोजशाह तुगलक के आदेश से किए गए इस हत्याकाण्ड की तुलना यूरोप में हुए जियोर्डानो ब्रूनो के हत्याकाण्ड से करते हैं। बू्रनो को ई.1600 में रोम के पोप ने इसलिए जीवित जलवा दिया था क्योंकि ब्रूनो इसाइयों के उस सिद्धांत को मानने को तैयार नहीं था कि- ‘पृथ्वी ब्रह्माण्ड के केन्द्र में है तथा सूर्य एवं अन्य ग्रह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हैं।’
ब्रूनो का कहना था कि- ‘तारे दूर-दूर स्थित सूर्य ही हैं जिनके अपने ग्रह हैं। ब्रह्माण्ड अनंत है तथा उसका कोई केन्द्र नहीं है ….. ब्रह्माण्ड अनेक हैं।’ ब्रूनो ने ईसाई मत की इस बात को भी गलत बताया कि- ‘पशुओं में आत्मा नहीं होती।’
रोम के कैथोलिक चर्च ने ब्रूनो से कहा कि वह अपने विचारों का पूर्ण परित्याग करके चर्च से क्षमा याचना करे। ब्रूनो ने ऐसा करने से मना कर दिया। इस पर 17 फरवरी 1600 के दिन बू्रनो को रोम के मुख्य बाजार में स्थित चौक ‘कैम्पो डे फियोरी’ में नंगा करके सूली पर उलटा लटकाया गया। उस समय उसकी जीभ बंधी हुई थी क्योंकि उसने धर्म के विरुद्ध शैतानियत भरे शब्द उच्चारित किए थे। उसी हालत में ब्रूनो को जीवित जला दिया गया।
जिस समय फीरोजाबाद में मूर्तिपूजक ब्राह्मण को जीवित जलाया गया, उस समय उसकी जीभ बंधी हुई नहीं थी। उस समय सुल्तान अपने साथी मुल्ला-मौलवियों के साथ बैठकर नमाज पढ़ रहा था और कुछ ही दूरी पर जीवित जलता हुआ ब्राह्मण जिबह किए जाते हुए पशु की भांति अदम्य पीड़ा से चिल्ला रहा था।
मजहब के नाम पर इंसानों ने पूरी दुनिया में अपने ही जैसे जाने कितने इंसानों को इसी प्रकार आग में झौंककर आने वाली पीढ़ियों को मजहब की अजेयता का पाठ पढ़ाया है। यह किसी एक महजब की बात नहीं है, हर मजहब ने ऐसा कुछ न कुछ अवश्य किया है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता