फीरोज तुगलक ने हिन्दुओं एवं मुसलमानों के लिए अलग-अलग युद्ध नीति अपनाई। इस कारण उसने नगरकोट तथा जाजनगर के हिन्दू राज्यों को जीतकर दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित किया किंतु बंगाल एवं सिंध सहित किसी भी मुस्लिम राज्य को पुनः दिल्ली सल्तनत में नहीं मिलाया।
फीरोजशाह कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसकी धार्मिक नीति का परिचय उसकी पुस्तक ‘फतुहाते फिरोजशाही’ से मिलता है। इस्लाम तथा कुरान में पूरा विश्वास होने के कारण उसने इस्लाम आधारित शासन का संचालन किया। फीरोजशाह तुगलक ने उलेमाओं के समर्थन से राज्य प्राप्त किया था इसलिए उसने उलेमाओं को संतुष्ट रखने की नीति अपनाई तथा उलेमाओं की कठपुतली बन गया। वह उलेमाओं से परामर्श लिए बिना कोई कार्य नहीं करता था। वह दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने स्वयं को खलीफा का नायब घोषित किया।
फीरोजशाह तुगलक ने युद्ध में मिला लूट का सामान सेना तथा राज्य में उसी अनुपात में बांटने की व्यवस्था लागू की जैसे कुरान द्वारा निश्चित किया गया है, अर्थात् पांचवां भाग राज्य को और शेष भाग सेना को। फीरोजशाह तुगलक ने धार्मिक असहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया। उसके शासन काल में हिन्दुओं के साथ बड़ा दुर्व्यवहार होता था। एक ब्राह्मण को सुल्तान के महल के सामने जिन्दा जलवा दिया गया। उस ब्राह्मण पर यह आरोप लगाया गया कि वह मुसलमानों को इस्लाम त्यागने के लिए उकसाता है।
फीरोजशाह तुगलक हिन्दू प्रजा को मुसलमान बनने के लिए प्रोत्साहित करता था और जो हिन्दू मुसलमान हो जाते थे उन्हें जजिया से मुक्त कर देता था। फतुहाते फिरोजशाही में वह लिखता है- ‘मैंने अपनी काफिर प्रजा को पैगम्बर का धर्म स्वीकार करने के लिए उत्साहित किया और यह घोषित किया कि जो मुसलमान हो जावेगा उसे जजिया से मुक्त कर दिया जावेगा।’
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फीरोज तुगलक ने मध्यकालीन मुस्लिम सुल्तानों की तरह हिन्दू मंदिरों एवं मूर्तियों को तोड़ने एवं लूटने की नीति जारी रखी। उसने जाजनगर में जगन्नाथपुरी तथा नगरकोट में ज्वालादेवी मंदिर पर आक्रमण के समय हिन्दुओं के साथ बड़ा दुर्व्यवहार किया। उसने पुरी के जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां तुड़वाकर समुद्र में फिंकवा दीं। उसने नगरकोट पर आक्रमण करके ज्वालादेवी मंदिर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया तथा वहाँ से भारी सम्पदा लूट ली।
फीरोज तुगलक के शासन में जो मंदिर तोड़ दिए जाते थे उनके पुनर्निर्माण पर रोक लगा दी गई थी। उसने हिन्दू मेलों पर प्रतिबंध लगा दिया। जियाउद्दीन बरनी के अनुसार फीरोजशाह ने 40 मस्जिदों का निर्माण करवाया।
फीरोजशाह ने मुसलमानों की पुत्रियों के विवाह में सहायता देने के लिए ‘दीवाने खैरात’ नामक विभाग खोला। कोई भी मुसलमान इस कार्यालय में अर्जी देकर पुत्री के विवाह के लिए आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकता था। प्रथम श्रेणी के लोगों को 50 टंक, द्वितीय श्रेणी के लोगों को 30 टंक और तृतीय श्रेणी के लोगों को 20 टंक दिया जाता था। मुस्लिम विधवाओं तथा अनाथों को भी इस विभाग से आर्थिक सहायता मिलती थी।
फीरोजशाह तुगलक ने इस्लाम की शिक्षा के प्रसार के लिए कई मदरसे तथा मकतब खुलवाये। वह इस्लामिक शिक्षा पर विशेष ध्यान देता था। प्रत्येक विद्यालय में मस्जिद की व्यवस्था की गई थी। इन संस्थाओं को राज्य से सहायता मिलती थी। विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति तथा अध्यापकों को पेंशन दी जाती थी। मकतबों को राज्य की ओर से भूमि मिलती थी।
हिन्दुओं एवं शिया मुसलमानों के साथ फीरोज का व्यवहार अच्छा नहीं था। वह सूफियों को भी घृणा की दृष्टि से देखता था। शिया मुसलमानों के सम्बन्ध में वह लिखता है- ‘मैंने उन समस्त को पकड़ा और उन पर गुमराही का दोष लगाया। जो बहुत उत्साही थे, उन्हें मैंने प्राणदण्ड दिया। मैंने उनकी पुस्तकों को आम जनता के बीच जला दिया। अल्लाह की मेहरबानी से शिया सम्प्रदाय का प्रभाव दब गया।’
जियाउद्दीन बरनी तथा शम्से सिराज अफीफ ने फीरोजशाह तुगलक की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। उन्होंने लिखा है- ‘फीरोजशाह के उपरांत इतना उदार, दयालु, न्यायप्रिय, शिष्ट तथा अल्लाह से डरने वाला और कोई सुल्तान नहीं हुआ।’ बरनी तथा अफीफ द्वारा की गई यह प्रशंसा स्वाभाविक है। वे दोनों ही उलेमा थे। सुल्तान उलेमाओं का आदर करता था और उनके परामर्श से कार्य करता था।
डब्ल्यू. एच. मोरलैण्ड ने फीरोजशाह के सम्बन्ध में लिखा है- ‘उसका शासन काल संक्षिप्त स्वर्ण युग था जिसका धुंधला स्वरूप अब भी उत्तरी भारत के गांवों में परिलक्षित होता है।’
हैवेल ने लिखा है- ‘वह एक बुद्धिमान तथा उदार शासक था। क्रूरता, निर्दयता तथा भ्रष्टाचार की लम्बी श्ंृखला जो तुर्की वंश के अन्धकारपूर्ण इतिहास का निर्माण करती है, उसमें फीरोज का शासन काल एक स्वागतीय विश्ृंखलता है।’
सर हेग के विचार में- ‘फीरोजशाह के राज्य काल की समाप्ति के साथ एक अत्यंत उज्जवल युग का अवसान होता है।’
हेनरी इलियट तथा एल्फिन्स्टन ने लिखा है- ‘फीरोजशाह चौदहवीं शताब्दी का अकबर था।’
डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है- ‘फीरोजशाह तुगलक में उस विशाल हृदय तथा व्यापक दृष्टिकोण वाले बादशाह अकबर की प्रतिभा का शतांश भी नहीं था जिसने सार्वजनिक हितों का उच्च मंच से समस्त सम्प्रदायों तथा धर्मों के प्रति शान्ति, सद्भावना तथा सहिष्णुता का सन्देश दिया।’
श्रीराम शर्मा ने लिखा है- ‘फीरोज न तो अशोक था न अकबर जिन्होंने धार्मिक सहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया था, वरन् वह औरंगजेब की भांति कट्टरपंथी था।’
विन्सेंट स्मिथ ने भी हेनरी इलियट के मत का विरोध किया है और इसे मूर्खतापूर्ण बतलाया है। स्मिथ ने लिखा है- ‘फिरोज के लिए अपने युग में इतना ऊँचा उठना सम्भव नहीं था जितना अकबर उठा सका था।’
इतिहासकारों के विभिन्न मतों से फीरोज के सम्बन्ध में कोई निश्चित धारणा बनाना कठिन है। वास्तविकता का अन्वेषण फीरोज के कृत्यों का मूल्यांकन, आलोचनात्मक तथा तर्कपूर्ण विवेचन द्वारा किया जा सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि फीरोज ने एक कट्टर सुन्नी मुसलमान की भांति शासन किया। उसकी धार्मिक नीतियों के कारण उसके राज्य में हिन्दुओं का जीवन बहुत कष्टमय हो गया था। शियाओं एवं सूफियों के लिए भी सल्तनत की ओर से कोई संरक्षण उपलब्ध नहीं था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता