अंततः महमूद गजनवी सोमनाथ आ पहुंचा। अब तक केवल मोधेरा के अतिरिक्त गुजरात में और कहीं भी महमूद को संघर्ष नहीं करना पड़ा था किंतु सोमनाथ में गुजरातियों ने प्रबल तैयारियां कर रखी थीं। 6 जनवरी 1026 को महमूद गजनवी और चौलुक्य शासक भीमदेव (प्रथम) की सेनाओं के बीच युद्ध आरभ हुआ। संध्या होते-होते राजा भीमदेव बुरी तरह घायल होकर युद्धक्षेत्र से हट गया।
7 जनवरी 1026 को प्रातः होते ही महमूद गजनवी की सेना ने मंदिर पर हमला किया। राजा भीमदेव के मैदान से हट जाने के बाद चौलुक्य सेना मंदिर के भीतर चली गई और मंदिर की प्राचीर पर चढ़कर मोर्चा लेने लगी।
अबू सैय्यद गरदेजी के हवाले से अशोककुमार सिंह ने लिखा है- ‘सोमनाथ के निवासी अब भी मंदिर की प्राचीरों पर बैठकर मुस्लिम सेना का उपहास कर रहे थे कि हमारा रक्षक सोमनाथ मुसलमानों को नष्ट कर देगा।’
द स्ट्रगल फॉर एम्पायर के लेखक डी सी गांगुली ने लिखा है- ‘यद्यपि हिन्दुओं का नेता भाग गया था तथापि उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आई थी।’
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महमूद के सिपाही सीढ़ियां लगाकर मंदिर की प्राचीर पर चढ़ने लगे। हिन्दू सैनिकों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया किंतु गजनी के सैनिक मंदिर में घुसने में सफल रहे। अबू सैय्यद गरदेजी ने लिखा है- ‘हजारों हिंदू, सोमेश्वर के शिवलिंग के सामने एकत्रित हो गये। कुछ रोने लगे और कुछ प्रार्थना-पूजा करने लगे। कुछ उच्च स्वर में मुस्लिम सेना से कहने लगे कि हमारा देवता तुम्हें यहाँ ले आया है। वह एक बार में ही तुम्हारा वध कर देगा।’
महमूद के सैनिकों ने मंदिर परिसर में घुसकर प्राचीर के दरवाजे भीतर से खोल दिए। इस कारण महमूद के सैनिक जेहादी नारे लगाते हुए मंदिर प्रागंण में घुस गए। भीमदेव भले ही युद्धक्षेत्र से हट गया था किंतु उसके सैनिक अब भी मंदिर के भीतर मोर्चा संभाल रहे थे। क्योंकि दिन भर चले युद्ध के बाद भी गजनी की सेना महालय के गर्भगृह में नहीं घुस सकी। रात होने पर युद्ध स्वतः बंद हो गया फिर भी मंदिर की प्राचीरों पर तथा गर्भगृह से बाहर गजनी से आई सेना का कब्जा बना रहा।
8 जनवरी 1026 की प्रातः मंदिर के भीतर का दृश्य अचानक ही बदल गया। आसपास के गांवों से हजारों लोग हाथों में हथियार लेकर मंदिर में घुस आए। वे अपने देवता के विग्रह की रक्षा के निमित्त अपने प्राणों का उत्सर्ग करना चाहते थे। इन लोगों को संभवतः समुद्र के रास्ते मंदिर में आने का मार्ग ज्ञात था। जब दिन का उजाला होते ही महमूद के सैनिकों ने मंदिर के मुख्य भवन पर धावा बोला तो मंदिर के भीतर स्थित लोगों को साक्षात् मृत्यु के दर्शन हो गए। अब उनके हाथ में केवल इतना रह गया था कि वे अंतिम सांस तक लड़ें तथा अधिक से अधिक शत्रुओं को मारते हुए महाकाल के धाम को प्रस्थान करें।
हजारों हिन्दू अपने आराध्य सोमनाथ के सामने शीश झुकाकर छोटे-छोटे समूहों में मुख्य मंदिर से बाहर निकलकर महमूद की सेना से युद्ध करने लगे। इन नागरिकों के आ जाने से राजा भीमदेव की सेना को बहुत सम्बल मिल गया। इस कारण 8 जनवरी को पूरे दिन विकराल युद्ध हुआ। महादेव के महालय में मौत का नंगा नाच हुआ। रक्त की नदी बह निकली और समुद्र की तरफ बढ़ने लगी। सैंकड़ों चीलें आकाश में मण्डराने लगीं और महालय की दीवारों पर गिद्ध निर्भय होकर बैठ गए। 50 हजार हिन्दुओं ने अपने आराध्य देव सोमनाथ के शिवलिंग की रक्षा के लिए अपने शरीर न्यौछावर कर दिए। इब्नुल अमीर ने हिन्दू मृतकों की यही संख्या बताई है। वह युद्ध में मारे गऐ मुस्लिम सैनिकों की संख्या का उल्लेख नहीं करता है।
इस युद्ध का जो भी वर्णन हमें मिलता है, वह तत्कालीन मुस्लिम लेखकों के वर्णन पर आधारित है। विभिन्न लेखकों द्वारा किए गए सोमनाथ युद्ध के वर्णन में काफी अंतर मिलता है।
सोलहवीं शताब्दी ईस्वी के ईरानी मूल के लेखक फरिश्ता ने लिखा है कि गजनी के सैनिकों को मंदिर में घुसते हुए देखकर मंदिर के लगभग 4 हजार पुजारी नावों में बैठकर समुद्र में भाग गए ताकि सिरन्दीप नामक टापू तक पहुंच सकें किंतु महमूद की सेना ने उनका पीछा करके उनकी नावों को डुबो दिया। ख्वान्द मीर नामक एक लेखक ने ‘कामिल उत् तवारीख’ में भी इसी प्रकार का वर्णन किया है। हबीब उस सियर तथा इलियट ने भी इस युद्ध का वर्णन किया है।
फरिश्ता ने इस युद्ध का विस्तृत वर्णन करते हुए लिखा है कि सोमनाथ के समक्ष तीन दिन तक युद्ध हुआ। मुस्लिम सेना को युद्ध के दूसरे दिन प्रथम दिन की अपेक्षा कम सफलता मिली। वह लिखता है कि तीसरे दिन आसपास के हिन्दुओं के सेनाएं मंदिर की रक्षा करने के लिए आ पहुंचीं। महमूद ने इस सेनाओं का सामना करने के लिए मंदिर का घेरा उठा दिया। उसने अपनी सेना के एक भाग को मंदिर की रक्षक सेना का सामना करने के लिए रवाना किया और स्वयं आसपास से आई सेनाओं से लड़ने के लिए तैयार हुआ। दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ तथा लम्बे समय तक विजय अनिश्चित रही।
फरिश्ता आगे लिखता है कि दो हिन्दू राजा ब्रह्मदेव तथा दाबिश लीम हिन्दू सेना में सम्मिलित होकर हिन्दुओं का मनोबल बढ़ाने लगे। उसी क्षण महमूद ने घोड़े से नीचे उतरकर अल्लाह से विजय हेतु प्रार्थना की और फिर घोड़े पर सवार होकर अबुल हसन सिरकासियन के साथ दुश्मन की तरफ बढ़ा और अपनी सेना को उत्साहित करने लगा। मुस्लिम सेना ने शत्रुपंक्ति को तोड़ दिया और पांच हजार हिन्दुओं को मार गिराया। सोमनाथ के चार हजार रक्षकों ने हिन्दू पक्ष को पराजित होते हुए देखा तो वे नावों में बैठकर सरनद्वीप की तरफ भाग गए।
फरिश्ता ने लिखा है कि राजा ब्रह्मदेव ने भी गजनी के तीन हजार सैनिकों को काट डाला था। ब्रिग्स ने भी इसका उल्लेख किया है। मुहम्मद नाजिम फरिश्ता के इस वर्णन को स्वीकार नहीं करते। फरिश्ता भले ही 16वीं सदी का लेखक था किंतु यह स्वाभाविक ही है कि उसने जो कुछ भी लिखा, ग्यारहवीं शताब्दी के मुस्लिम लेखकों के विवरणों को आधार बनाकर ही लिखा।
इन मुस्लिम लेखकों के वर्णन के आधार पर कुछ बातें निश्चित रूप से स्थापित होती हैं। पहली यह कि यह युद्ध कम से कम तीन दिन तक चला। पहले दिन के युद्ध में राजा भीमदेव की सेना की मुख्य भूमिका थी। दूसरे दिन के युद्ध में भीमदेव के सैनिकों के साथ नगर में रहने वाले हिन्दू नागरिकों ने भी बलिदान दिया। तीसरे दिन के युद्ध में आसपास के राजा भी अपनी सेनाएं लेकर आए थे।
इन मुस्लिम लेखकों के वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि इस युद्ध में हिन्दू पक्ष के कम से कम 50 हजार लोगों ने अपने प्राणों की आहुतियां दीं। मुस्लिम पक्ष की तरफ से भी कई हजार सैनिक मारे गए जिनमें से राजा ब्रह्मदेव की सेना ने गजनी के तीन हजार सैनिकों को मारा। इन निष्कर्र्षों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि दोनों पक्षों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। आजकल कुछ आधुनिक लेखक यह लिखने लगे हैं कि राजा भीमदेव (प्रथम) बिना लड़े ही भाग खड़ा हुआ और पचास हजार हिन्दू मंदिर में घुसकर भगवान से प्रार्थना करने लगे कि आप ही हमें बचाओ तथा महमूद के सैनिकों ने उन्हें बिना किसी प्रतिरोध के मार डाला। इन लेखकों का यह कहना बिल्कुल गलत है तथा तथ्यों पर आधारित नहीं है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता