फ्रैंक राजा शार्लमैन द्वारा पोप का अपमान
ई.772 में पोप एड्रियन (प्रथम) के निमंत्रण पर रोम से लोम्बार्डियों की सत्ता समाप्त करने वाला फ्रैंक शासक शार्लमैन एक शक्तिशाली राजा था। इसलिए उसे रोम में अपना दबदबा स्थापित करने में कोई कठिनाई नहीं हुई। पोप ने सोचा था कि लोम्बार्डियों से मुक्ति मिल जाने के बाद पोप ही रोम का असली एवं एकमात्र शासक होगा किंतु शार्लमैन ने पोप की यह इच्छा पूरी नहीं की तथा उसने कुछ ही समय बाद पोप पर अपना दबदबा स्थापित कर लिया।
शार्लमैन को यह शक्ति उसके साम्राज्य के वैराट्य से मिलती थी। उसके साम्राज्य में केवल फ्रांन्स और रोम ही नहीं थे, अपितु नीदरलैण्ड, स्वीजरलैण्ड, आधी जर्मनी और आधा इटली भी उसके साम्राज्य का अंग थे। पोप को दबाने के बाद शार्लमैन स्वेच्छाचारी हो गया जिससे रोम में स्थितियाँ पहले से भी अधिक खराब हो गईं।
पोप के साथ अभद्रता
एक आयातित सम्राट ने पहले से ही बर्बाद रोम की रही-सही शांति भी छीन ली। रोम में सम्राट के मुंह-लगे स्त्री-पुरुषों का एक झुण्ड तैयार हो गया जो पोप से अभद्रता करता था और एक पोप को हटाकर किसी दूसरे पादरी या बिशप को पोप बना देता था। उस काल में ईसाई पादरी भी सामंत व्यवस्था के अंग हो गए थे। वे धर्म-पुरोहित और सामन्ती-सरदार दोनों थे। अतः इस युग में सामंतवाद चर्च और पोप दोनों पर हावी हो गया।
साम्राज्य की आधी धरती और सम्पत्ति बिशपों, एबेटों, कार्डिनलों एवं सामान्य पादरियों के हाथों में चली गई थी। इस युग का पोप स्वयं एक बड़ा सामंती-सरदार था। इसलिए शार्लमैन ने उसे आसानी से दबा लिया।
पीपीन (द्वितीय) को राज्याधिकार
शार्लमैन ने ई.781 में अपने तीसरे पुत्र पीपीन को रोम का शासक नियुक्त किया। पोप पहले से ही शार्लमैन से छुटकारा पाने की सोच रहा था। पोप ने ई.781 में रोम में आयोजित एक भव्य समारोह में पीपीन (द्वितीय) को ताज पहनाया। इसके बाद शार्लमैन ने इटली में अपनी शक्ति का तेजी से विस्तार किया।
उसने इटली के अन्य क्षेत्रों से भी लोम्बार्डियों का सफाया कर दिया। ई.782 तक शार्लमैन पश्चिमी यूरोप के राजाओं में सबसे ताकतवर ईसाई शासक हो गया था। इस काल में रोम, फ्रांस साम्राज्य का एक छोटा सा प्रांत मात्र बन गया था।
पोप लियो (तृतीय) का रोम से पलायन
26 दिसम्बर 795 को लियो (तृतीय) ‘पापल स्टेट ऑफ वेटिकन’ का राजा और रोम के कैथोलिक चर्च का पोप हुआ। वह रोम में फ्रांस के राजा शार्लमैन के हस्तक्षेप को पसंद नहीं करता था। शार्लमैन भी इस बात को समझ गया। उसने पोप को रास्ते पर लाने का एक उपाय सोचा।
25 अप्रेल 799 को पोप लियो (तृतीय) ने लैटेरन से लूसियाना स्थित सान लॉरेंजो चर्च तथा विया फ्लेमिनिया तक परम्परागत जुलूस निकाला। इस जुलूस में, रोम के पूर्ववर्ती पोप एड्रियन के दो शिष्यों ने पोप लियो (तृतीय) पर प्राणघातक हमला किया क्योंकि वे पोप द्वारा सम्राट शार्लमैन के प्रति अपनाई जा रही नीति को पसंद नहीं करते थे।
एड्रियन के ये दोनों शिष्य रोम के शक्तिशाली सामंत थे तथा सम्राट शार्लमैन के विश्वस्त थे। इस हमले में पोप लियो (तृतीय) बुरी तरह घायल हो गया किंतु किसी तरह जान बचाकर फ्रांस भाग गया ताकि फ्रैंक-शासक शार्लमैन से सहायता ली जा सके। शार्लमैन यही चाहता था।
पोप की रोम में वापसी
नवम्बर 800 में शार्लमैन ने विशाल सेना के साथ रोम में प्रवेश किया। रोम में उसे रोकने वाला कोई नहीं था। उसका पुत्र रोम का शासक था। शार्लमैन के साथ बड़ी संख्या में फ्रैंच बिशप भी थे। पोप लियो (तृतीय) भी इन बिशपों के साथ रोम आ गया। शार्लमैन ने रोम में एक दरबार का आयोजन करके पोप लियो (तृतीय) तथा उसके हमलावरों के बीच हुए विवाद को मुकदमे के रूप में सुना।
ऐसा करके वह इस बात का प्रदर्शन करना चाहता था कि सम्राट को पोप के खिलाफ भी उसी तरह मुकदमे सुनने और सजा देने का अधिकार है, जिस तरह वह अन्य लोगों को देता है। रोम के लोगों को विश्वास था कि इस मुकदमे के बाद पोप को हटा दिया जाएगा तथा दोनों सामंतों को दोष-मुक्त कर दिया जाएगा किंतु रोमवासियों तथा यूरोप के अन्य देशों के कैथोलिक ईसाइयों को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि मुकदमे की सुनवाई पूरी करने के बाद राजा शार्लमैन ने निर्णय दिया कि लियो (तृतीय) रोम के वैधानिक पोप हैं तथा रोम के सामंतों को उन पर हमला करने का कोई अधिकार नहीं है।
शार्लमैन ने हमलावर सामंतों को रोम से निष्कासित कर दिया। इतिहासकारों का मानना है कि यह न्यायिक प्रक्रिया पोप तथा राजा के बीच एक पूर्व निर्धारित सौदेबाजी थी जिसमें पोप को चर्च प्राप्त हो गया और शार्लमैन को रोम पर शासन करने का अबाध अधिकार। अब रोम शार्लमैन की शक्ति को नमन् करने के लिए पूरी तरह तैयार था।
पवित्र रोमन सम्राट की ताजपोशी
25 दिसम्बर 800 के दिन सेंट पीटर्स बेसिलिका में फ्रैंक राजा शार्लमैन का ‘पापल कोरोनेशन’ किया गया अर्थात् उसे ‘पवित्र रोमन ताज’ पहनाया गया तथा उसे ‘ऑगस्टस ऑफ रोमन्स’ की उपाधि दी गई। इसके साथ ही रोम में ‘होली रोमन एम्पायर’ (Sacrum Imperium Romanum) की स्थापना हो गई। यह पवित्र रोमन साम्राज्य का प्रथम संस्करण था जो ई.888 तक चलता रहा।
सुप्रसिद्ध विचारक वॉल्टेयर ने पवित्र रोमन साम्राज्य को परिभाषित करते हुए लिखा है- ‘यह एक ऐसी चीज थी जो न पवित्र थी, न रोमन थी और न साम्राज्य थी।’
रोम का बगदाद की तरफ दोस्ती का हाथ
फ्रैंक राजा शार्लमैन ने कुस्तुंतुनिया से रोम का सम्बन्ध पूरी तरह तोड़ दिया। इस पर कुस्तुंतुनिया के सम्राट ने शार्लमैन को युद्ध की धमकी दी। शार्लमैन ने बगदाद के खलीफा हारून रशीद की सहायता से कुस्तुंतुनिया के पूर्वी रोमन साम्राज्य को नष्ट करने की एक योजना तैयार की। इस योजना में रोम और बगदाद मिलकर रोम के शत्रु कुस्तुंतुनिया से और बगदाद के शत्रु स्पेन के सरासीनों से युद्ध करने का प्रस्ताव था।
यह एक ऐसा प्रस्ताव था जो उस युग से लेकर आज तक के किसी भी युग में स्वीकार्य नहीं हो सकता था जिसमें कुछ ईसाइयों और मुसलमानों को मिलकर दूसरे ईसाइयों एवं मुसलमानों से लड़ने का प्रस्ताव किया गया था। रोम और बगदाद को जोड़ने के लिए जिस प्रबल योजक तत्व की आवश्यकता थी, वह इस प्रस्ताव में उपलब्ध नहीं था।
दो देशों के मुसलमान शासक मिलकर दो देशों के ईसाई शासकों के विरुद्ध तो लड़ सकते थे किंतु एक ईसाई और एक मुसलमान देश मिलकर दूसरे ईसाई और दूसरे मुसलमान देश से नहीं लड़ सकते थे। इसलिए यह योजना विफल हो गई।
शार्लमैन के वंशज
शार्लमैन का पुत्र पीपीन (द्वितीय) ई.810 तक रोम पर शासन करता रहा। उसके बाद बर्नार्ड को रोम का शासक बनाया गया जिसने ई.818 तक रोम पर शासन किया। ई.814 में सम्राट शार्लमैन की मृत्यु हो गई तथा उसके वंशजों में साम्राज्य के बंटवारे के लिए झगड़े खड़े हो गए। उसके वंशज ‘कार्लोविजियन’ कहलाते थे। यह लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका आशय ‘चार्ल्स के वंशजों’ से है। उसके तीन वंशजों में से एक मोटा, एक गंजा और एक दीनदार कहलाता था।
ई.818-39 तक लोथियर तथा ई.839-75 तक लुईस (द्वितीय) शासन करता रहा। इन्हें ‘पापल एम्परर’ कहा जाता था। यह उपाधि ई.888 तक शार्लमैन के वंशजों के पास रही। इसके बाद शार्लमैन के वंशजों का रोम एवं इटली से पूरी तरह सफाया हो गया। उनके समापन के साथ ही ‘पवित्र रोमन साम्राज्य’ के प्रथम संस्करण का अंत हो गया।
रोम में अराजकता
ई.888में शार्लमैन के वंशजों में राज्य के अधिकार को लेकर संघर्ष छिड़ गया। इस कारण पोप द्वारा किसी भी राजा को ‘पापल एम्पपर’ की उपाधि नहीं दी गई। इटली की सड़कों पर गृहयुद्ध छिड़ गया। नागरिक एवं समंतों के समूह अपनी-अपनी पसंद के व्यक्ति को रोम का राजा बनाना चाहते थे। इस कारण रोम में शासन व्यवस्था पूरी तरह नष्ट हो गई तथा लगभग सम्पूर्ण इटली में अराजकता व्याप्त हो गई।
कैथोलिक चर्च पर रोम के धनी-सामंतों का बोलबाला था। उनमें से अधिकतर धार्मिक वृत्ति के लोग नहीं थे, वे राजनीतिक लोग थे तथा पद एवं सत्ता के लिए किसी के प्राण लेना उनके लिए साधारण बात थी। इसलिए एक पोप की ताजपोशी होते ही दूसरा व्यक्ति उसे हटाकर स्वयं को पोप बनाने में लग जाता था। इस कारण बहुत सी हत्याएं होती थीं तथा अन्य जघन्य अपराध भी कारित हो जाते थे।
ई.897 में रोम की भीड़ ने कब्र में से स्वर्गीय पोप फोरमोसस के शव को बाहर निकाला तथा फोरमोसस द्वारा की गई बेइमानियों के लिए उसके शव के विरुद्ध पोप स्टीफन (षष्ठम्) के न्यायालय में मुकदमा चलाया। ई.924 में रोम के सिंहासन का अंतिम दावेदार बेरेन्जर (प्रथम) भी मर गया गया। अराजकता की यह स्थिति ई.962 तक चलती रही। रोम में एक के बाद एक कई सामंतों ने राज्य पर अधिकार करना चाहा किंतु वे सभी एक-एक करके मारे गए।
दुनिया की स्वामिनी बन गई रास्ते की भिखारिन
इस काल में मगयार कबीले की सेनाओं ने उत्तरी इटली पर आक्रमण कर उसके उपजाऊ प्रदेशों को वीरान बना दिया। मगयारों के आक्रमणों के बाद इटली पर निरंतर उत्तर से जनजातीय कबीलों और दक्षिण से अरबों के आक्रमण होते रहे। इन आक्रमणों के कारण रोम की हालत इतनी खराब हो गई कि रोम सिमटकर एक गांव जैसा रह गया और रोम की शान समझे जाने वाले कोलोजियम में वन्य-पशुओं का बसेरा हो गया।
रोम को विगत एक सौ वर्षों से किसी शक्तिशाली राजा की आवश्यकता थी किंतु रोम वासियों का अहंकार किसी भी रोमन रक्तवंशी को इस कार्य में सफल नहीं होने देना चाहता था तथा विदेशी शासक इस जर्जर और निर्धन रोम में हाथ नहीं डालना चाहता था। संसार की स्वामिनी कही जाने वाली रोम नगरी, रास्ते की भिखारिन जैसी दिखाई देने लगी थी।