Monday, March 10, 2025
spot_img

बाली द्वीप में चौथा दिन (26)

आज हमारा बाली द्वीप में चौथा दिन था। आज का दिन हमने मेंगवी गांव के विश्रामगृह में ही बिताने का निश्चित किया था। इसलिए हमने दिन में मेंगवी गांव तथा उसके आसपास का क्षेत्र देखने का निर्णय लिया।

17 अप्रेल को भी नींद प्रातः पांच बजे के आसपास खुल गई। इस समय भारत में तो ढाई बज रहे होंगे। आज का दिन भी हमने चावल के खेतों में बने हुए लॉन में चाय पीने से आरम्भ किया। चूंकि आज पुतु को नहीं आना था, इसलिए हम ज्यादा रिलैक्स की स्थिति में थे।

सुबह-सवेरे ही मैं लैपटॉप लेकर बैठ गया और पिछले तीन दिनों की यात्रा के अनुभवों को लिखने का प्रयस करने लगा। दस बजे के लगभग मधु ने कहा कि आज थोड़ी देर के लिए पैदल ही घूम आते हैं। इसलिए मैं, विजय और मधु पैदल ही पुरा तमन अयुन टेम्पल की तरफ चल पड़े।

मुख्य द्वार पर स्वस्तिक एवं गणेश

हम आज उस मार्ग पर चले जो खेतों के बीच से न होकर, गांव के बीच से होकर जाता था। हमने देखा कि अधिकांश घरों के मुख्य द्वार के ठीक ऊपर या तो गणेशजी की प्रतिमा स्थापित है या फिर वहाँ स्वस्तिक आकृति अंकित है जिसे भारत में गणेशजी का प्रतीक माना जाता है। मार्ग में कुछ मंदिर देखे जिनके बाहर उसी प्रकार द्वारपाल बने हुए थे जिस प्रकार भारत में बनाए जाने की परम्परा है।

अंतर केवल इतना था कि भारत में द्वारपालों को प्रमुखता नहीं दी जाती है इसलिए सहज ही उन पर ध्यान नहीं जाता जबकि बाली में मंदिर के मुख्य द्वार के दोनों ओर द्वारपालों की मनुष्याकार प्रतिमाएं प्रमुखता से स्थापित की गई हैं जिन पर चटख रंग किये गए हैं।

चुड़ैलों, राक्षसों और देवी-देवताओं का विचित्र संसार

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

तमन अयुन पुराडेसा मंदिर के मार्ग में हमारी दृष्टि अचानक एक विकराल स्त्री प्रतिमा पर गई। लगभग आठ फुट ऊंची यह विकराल प्रतिमा एक भवन की दीवार के बाहरी आले में लगी हुई थी। हमारा ध्यान उस भवन की ओर गया। यह एक प्रदर्शनी थी जिसमें बाली शैली के देवी-देवताओं और राक्षसों की सात से आठ फुट ऊँची प्रतिमाएं लगी हुई थीं। पैदल चलने के कारण हम थक चुके थे और भीतर जाने की हिम्मत नहीं थी। अभी तो हमें वापस भी लौटना था। इसलिए हमने विजय से कहा कि वह इस प्रदर्शनी का वीडियो बना लाए। हम उस वीडियो को ही देख लेंगे। इस प्रदर्शनी देखने के लिए पच्चीस हजार रुपए का टिकट था। जब विजय वीडियो बनाने प्रदर्शनी घर में चला गया तो मैं और मधु प्रदर्शनी घर के बाहर ही बैठ गए। विजय द्वारा बनाकर लाई गई वीडियो में हम चुड़ैलों, राक्षसों और देवी-देवताओं के अनोखे संसार को देखकर दंग रह गए। इसमें रामायण और महाभारत के प्रसंगों को दर्शाने वाली प्रतिमाएं थीं तो शिव-पार्वती, श्रीराम-जानकी आदि की बहुत सुंदर प्रतिमाएं भी थीं। सभी प्रतिमाएं विशुद्ध बाली शैली में थी। इनका अंग-सौष्ठव भिन्न प्रकार का था।

प्रतिमाओं पर तेज चटख रंग किये हुए थे। प्रदर्शनी देखने के बाद हम अपने सर्विस अपार्टमेंट लौट आए। शेष दिवस बाली यात्रा के संस्मरण लिखते हुए निकला। बाली द्वीप में चौथा दिन पूरा हुआ।

बाली द्वीप से जावा द्वीप पर

18 अप्रेल को हमें बाली द्वीप से विदा लेनी थी। हमारा विमान दोपहर 2.00 बजे का था किंतु हमने पुतु को प्रातः 9.00 बजे ही बुला लिया था। मैंगवी अर्थात् जिस स्थान पर हम ठहरे हुए थे, से देनपासार हवाई अड्डे की दूरी लगभग डेढ़ घण्टे की थी। देनपासार से हमें योग्यकार्ता जाना था जो कि जावा द्वीप पर स्थित है तथा इण्डोनेशिया के प्रमुख शहरों में से एक है। इसे जोगजकार्ता तथा जोगजा के नाम से भी जाना जाता है।

बाली से योग्यकार्ता की हवाई दूरी 502 किलोमीटर है। इसलिए यह केवल 1 घण्टे 10 मिनट की घरेलू उड़ान थी। चूंकि बाली का समय योग्यकार्ता से एक घण्टे आगे है। इस कारण जब हम 2.00 बजे बाली से रवाना होकर तथा 1 घण्टे 10 मिनट की यात्रा करने के पश्चात् योग्यकार्ता एयरपोर्ट पर उतरे तो हमारी घड़ियों में 2.10 बज रहे थे।

-डॉ. मोहन लाल गुप्ता

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source