Thursday, November 21, 2024
spot_img

यूरोपीय कम्पनियों का ताण्डव

जब मुगल शासक कमजोर हो गए तथा मराठे पूरे उत्तर भारत को रौंदने लगे तो भारत को लूटने के लिए यूरोपीय लुटेरे आ धमके। ये विदेशी लुटेरे व्यापारिक कम्पनियों के रूप में भारत में घुसे। शीघ्र ही भारत में यूरोपीय कम्पनियों का ताण्डव आरम्भ हो गया।

जिस समय मराठों ने लाल किले पर अधिकार कर रखा था और बादशाह आलमगीर डीग में रह रहा था, उस समय बादशाह आलमगीर (द्वितीय) ने मराठों को लाल किले से बाहर निकालने के लिए फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी से मदद मांगी। बादशाह ने कम्पनी के सेनापति डी बुसी को लिखा कि वह 1000 मजबूत फ्रैंच सिपाही दिल्ली की रक्षा के लिए भिजवा दे। इस सहायता के बदले में बादशाह न केवल दिल्ली आने वाली फ्रैंच सेना का पूरा खर्चा वहन करेगा अपिुत कनार्टक युद्ध में भी फ्रांसीसियों की सहायता करेगा।

फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी उस समय स्वयं ही संकट में थी तथा बादशाह की सहायता करने की स्थिति में नहीं थी। इसका कारण यह था कि कुछ समय पहले ही अर्थात् ई.1756 में यूरोप में सप्त वर्षीय युद्ध आरम्भ हो चुका था। हालांकि इसे यूरोप का सप्तवर्षीय युद्ध कहा जाता है किंतु वास्तव में यह एक छोटा-मोटा विश्वयुद्ध था जिसमें विश्व के कई देशों ने भाग लिया था किंतु इतिहास में इसे विश्व युद्ध की मान्यता नहीं दी गई।

इस युद्ध में यूरोप की पांचों बड़ी शक्तियों अर्थात् इंग्लैण्ड, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, रूस तथा जर्मनी सहित अमरीका, भारत, फिलीपन्स आदि देशों ने भाग लिया। इस युद्ध का नेतृत्व एक तरफ इंग्लैण्ड तथा दूसरी तरफ फ्रांस के हाथों में था जो विश्व-व्यापार पर अपना एकच्छत्र दबदबा स्थापित करने के लिए एक-दूसरे को निबटा देने के खतरनाक इरादों के साथ लड़ रहे थे।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

 इस कारण यह युद्ध इन दोनों देशों के उपनिवेशों की धरती पर लड़ा गया जिनमें आयरलैण्ड, पुर्तगाल, ब्रिटिश शासित अमरीका, प्रशा, होली रोमन एम्पायर अर्थात् रोम एवं जर्मनी, ऑस्ट्रिया, रशिया, स्पेन, पेरू, स्वीडन तथा भारत आदि देश शामिल थे। भारत में भी यूरोपीय कम्पनियों का ताण्डव मच गया।

इस युद्ध का वास्तविक स्वरूप यह था कि इंगलैण्ड की तरफ से युद्ध का मोर्चा ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेनाओं ने संभाला जबकि फ्रांस की तरफ से युद्ध का नेतृत्व फ्रैंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा लड़ा गया। इस युद्ध के वैश्विक स्वरूप को दर्शाते हुए अंग्रेज इतिहासकार वॉल्टेयर ने लिखा है- ‘हमारे देश में तोप का पहला गोला छूटने के साथ ही अमरीका और एशिया की तोपों में भी आग लग जाती थी।’

लाल किले की दर्दभरी दास्तान - bharatkaitihas.com
TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

यह युद्ध ई.1756 से आरम्भ होकर ईस्वी 1763 तक चलता रहा। भारत के संदर्भ में इस युद्ध को तृतीय कर्नाटक युद्ध कहा जाता है। फ्रैंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इस युद्ध में बादशाह आलमगीर (द्वितीय) से सैन्य सहायता मांगी। कहाँ तो बादशाह आलमगीर चाहता था कि फ्रैंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी मराठों के विरुद्ध बादशाह आलमगीर की सहायता करे किंतु हुआ यह कि जब मराठे दिल्ली से चले गए तब बादशाह आलमगीर को अपनी सेनाएं फ्रैंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सहायता के लिए कर्नाटक भेजनी पड़ीं।

यह अलग बात थी कि बादशाह के पास न कोई सेना थी न कोई सेनापति! बादशाह की तरफ से यह सारा काम अहमदशाह अब्दाली द्वारा नियुक्त नजीब खाँ रूहेला और उसके आदमी किया करते थे। मुगलों द्वारा इस विषम समय में भी फ्रांसीसियों की सहायता के लिए सेना भेजने का सबसे बड़ा कारण यह था कि इस समय अंग्रेज बंगाल सूबे को दबाने में सफल हो गए थे और बादशाह आलमगीर को आशा थी कि यदि फ्रैंच कम्पनी अंग्रेजों को परास्त कर देगी तो बंगाल का सूबा अंग्रेजों की दाढ़ में से निकलकर पुनः मुगल बादशाह के अधीन किया जा सकेगा।

ऐसा नहीं था कि भारत में केवल ये दो फिरंगी कम्पनियां ही व्यापार कर रही थीं, पुर्तगाल से आए हुए पोर्चूगीज तथा हॉलैण्ड से आए हुए डच भी भारत में व्यापार कर रहे थे।

स्वीडन से आई हुई स्वीडिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी भी व्यापार कर रही थी किंतु फ्रैंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी और ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी रूपी दो महादैत्यों के समक्ष शेष फिरंगी कम्पनियों की कोई शक्ति नहीं थी और ये धीरे-धीरे भारत के छोटे-छोटे क्षेत्रों तक सीमित होकर रह गई थीं। इतने सारे देशों की कम्पनियों की उपस्थिति के कारण भारत में यूरोपीय कम्पनियों का ताण्डव मचना स्वाभाविक था।

ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा फ्रैंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बीच यह भयानक एवं विश्वव्यापी खूनी युद्ध क्यों हुआ, इस पर किंचित् विचार किया जाना आवश्यक है। यह जानकर हैरानी हो सकती है कि विगत सात सौ सालों से मध्य एशिया के मुसलममान बादशाह सोने-चांदी और हीरे-मोतियों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण करते रहे थे जबकि यूरोपीय कम्पनियां गरम मसालों, कपास, नील, रेशम और चंदन के लिए भारतीय उपमहाद्वीप को रौंद रहीं थीं।

न केवल भारत अपितु हिन्द महासागर में दूर-दूर तक छितराए हुए भारतीय उपमहाद्वीप के द्वीपों में ये कम्पनियां एक दूसरे का खून बहा रही थीं। ये कम्पनियों भारत की मुख्य भूमि के साथ-साथ अण्डमान निकोबार, लक्षद्वीप, बर्मा अर्थात् म्यानमार, सिंहल द्वीप अर्थात् लंका, स्याम अर्थात् थाइलैण्ड, यवद्वीप अर्थात् जावा, स्वर्णद्वीप अर्थात् सुमात्रा, मलय द्वीप अर्थात् मलाया, काम्बोज अर्थात् कम्बोडिया, वाराहद्वीप अर्थात् मेडागास्कर, आंध्रालय अर्थात् ऑस्ट्रेलिया, बाली, बोर्नियो आदि द्वीपों में अपने उपनिवेश स्थापित कर चुकी थीं अथवा करने की प्रक्रिया में थीं।

ये समस्त द्वीप इस्लाम के उदय से पहले भारत का हिस्सा माने जाते थे तथा इन द्वीपों में भारतीय संस्कृति फलती-फूलती थी किंतु अब इनमें से कुछ द्वीपों को मध्य एशिया से आए मुस्लिम आक्रांताओं ने रौंद डाला था तो कुछ द्वीपों पर यूरोपीय कम्पनियों ने अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए थे। उस काल के यूरोप में इन द्वीपों को मसाला द्वीप कहा जाने लगा था।

फ्रांसीसी और अंग्रेजी कम्पनियों के बीच सात वर्ष तक चला युद्ध भारत की मुख्य भूमि के साथ-साथ इन मसाला द्वीपों पर भी व्यापारिक एवं राजनीतिक आधिपत्य को लेकर हुआ था। भारत भूमि से बाहर कुछ द्वीपों पर डच एवं पुर्तगाली कम्पनियां भी जी-जान से लड़ रही थीं।

सात साल तक चले इस युद्ध में यूरोप, एशिया और अमरीका के विभिन्न देशों में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेनाओं ने फ्रैंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेनाओं को परास्त कर दिया। इस प्रकार सप्तवर्षीय युद्ध में फ्रांस हार गया और इंगलैण्ड जीत गया। भारत में भी ईस्वी 1763 में वाण्डीवाश के युद्ध में अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को करारी पराजय का स्वाद चखाया।

इस युद्ध के बाद यह लगभग निश्चित हो गया कि फ्रांसीसियों को भारत से अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर जाना होगा तथा भविष्य में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ही भारत में व्यापार करेगी।

भारतीय इतिहास के मध्यकाल का अवसान सन्निकट था। उस काल में एक तरफ तो बंगाल से अंग्रेज शक्ति पूर्व दिशा से उत्तरी भारत को दबाती हुई चली आ रही थी तथा दूसरी ओर अफगानिस्तान की ओर से विगत कई शताब्दियों से आ रही मुस्लिम आक्रमणों की आंधी अभी थमी नहीं थी!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source