कोई इस बात पर आसानी से विश्वास नहीं कर सकता था कि जिस सरदार पटेल ने लंदन जाकर बैरिस्ट्री की परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए थे, वे अत्यंत साधारण पृष्ठभूमि से थे। एक गुजराती किसान की गुदड़ी के लाल थे वल्लभभाई!
भारत के इतिहास में सरदार पटेल का नाम प्रायः जवाहरलाल नेहरू और मोहनदास कर्मचंद गांधी के साथ लिया जाता है जो इस बात का द्योतक है कि किसान की गुदड़ी के लाल वल्लभभाई पटेल का न केवल इतिहास में अपितु भारत की तत्कालीन राजनीति में कितना ऊंचा स्थान था!
जब वल्लभभाई अहमदाबाद में जम गये तो विट्ठलभाई ने बम्बई में वकालात का काम बंद करके समाज सेवा का काम आरम्भ कर दिया। इससे दोनों परिवारों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी वल्लभभाई पर आ गई। इस जिम्मेदारी को वल्लभभाई ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। जनवरी 1915 में मोहनदास करमचंद गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। वह भी वल्लभभाई की तरह गुजराती थे।
वह भी वल्लभभाई की तरह वकील थे। उन्होंने भी वल्लभभाई की तरह लंदन से बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। अंतर इतना था कि गांधी एक रियासत के दीवान के बेटे थे और पटेल एक किसान की गुदड़ी में पले थे। अंतर यह भी था कि गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में वकालात करते थे किंतु वल्लभभाई भारत में।
अंतर यह भी था कि जहाँ दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेज जाति ने गांधी का इतना अपमान किया था कि वे तिलमिलाकर भारत लौट आये थे, वहीं भारत के गोरे मजिस्ट्रेट, वल्लभभाई का सामना करने से घबराते थे इन सब कारणों से गांधी भारत में लौटकर वकालात की जगह राजनीति में सक्रिय हो गये।
उन दिनों पटेल के मन में गांधी के प्रति कोई विशेष स्थान नहीं था। एक बार जब पटेल के मित्र मावलंकर, गांधी का भाषण सुनने के लिये जा रहे थे तो पटेल ने उनसे कहा कि क्या करोगे गांधीजी का भाषण सुनकर ? वे तो अंग्रेजों को ब्रह्मचर्य का उपदेश देते हैं। भला भैंस को भागवत सुनाने का कोई लाभ हो सकता है ?
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता