गजनी द्वारा पंजाब में नियुक्त गवर्नरों द्वारा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बारबार किए गए अभियानों के कारण वे उत्तरी भारत के चप्पे-चप्पे से परिचित हो गए। अब वह दिन दूर नहीं था जब वे पंजाब की तरह भारत के किसी अन्य भाग में अपनी सल्तनत की स्थापना कर सकें। फिर भी हिन्दू राजाओं का मनोबल पूरी तरह भंग नहीं हुआ था। वे गजनी के इन अमीरों और गवर्नरों से लड़ते रहे और किसी ने किसी रूप में अपना अस्तित्व बनाए रहे।
‘पृथ्वीराज विजय’ नामक ग्रंथ में लिखा है कि शाकम्भरी नरेश चौहान दुर्लभराज (तृतीय) मतंगों से हुए युद्ध में मारा गया। वस्तुतः ये मतंग गजनी के सुल्तान इब्राहीम के सैनिक थे। उस काल के एक ताम्रपत्र में लिखा गया है कि आसराज ने तुरुष्कों से घिरे अपने भाई पृृथ्वीपाल को बचाया था। एक अन्य ताम्रपत्र के अनुसार आसराज के साले हरिपाल ने तुरुष्कों के प्यासे घोड़ों को पानी नहीं पीने दिया। डॉ. दशरथ शर्मा का अनुमान है कि ये दोनों ताम्रपत्र इब्राहीम की सेना से हुई लड़ाई से सम्बन्धित हैं।
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परमार राजा लक्ष्मणदेव ई.1086 से 1094 तक मालवा का शासक रहा। उसने भी इब्रहाहीम की सेनाओं को परास्त किया। उसके शिलालेखों में भी इब्राहीम की सेना को तुरुष्कों की सेना कहा गया।
इन अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उस काल के भारतीय लेखों में गजनी के मुसलमानों को मतंग, तुरुष्क, कीरा तथा म्लेच्छ कहा जाता था जबकि मुस्लिम अमीरों को हम्मीर लिखा गया है।
ई.1099 में गजनी के शासक इब्राहीम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मसूद (तृतीय) गजनी का सुल्तान हुआ। उसने उज्दुद्दौलावाद्दीन को पंजाब का सूबेदार बनाया तथा तुगातिगीन को भारत के विभिन्न राज्यों पर आक्रमण करने के निर्देश दिए।
तुगातिगीन ने गंगा-पार के क्षेत्रों तक धावे किए। मिनहाज उस् सिराज ने लिखा है कि तुगातिगीन उस स्थान तक पहुंचने में सफल हो गया जहाँ तक महमूद के अतिरिक्त और कोई नहीं पहुंच सका था। तुगातिगीन ने कन्नौज के गाहड़वाल शासक मदनचंद्र को पकड़ लिया तथा उसे अपने साथ लाहौर ले गया।
मदनचंद्र के पुत्र गोविंदचंद्र गाहड़वाल ने लाहौर के मुसलमानों को पराजित करके अपने पिता को मुक्त करवाया। इस युद्ध में मदनपाल राठौड़ ने गोविंदचंद्र की बहुत सहायता की जो कि गोविंदचंद्र के अधीन बदायूं का सामंत था।
श्रीधर कवि की रचना पार्श्वनाथ चरित में लिखा है कि ई.1132 में दिल्ली के तोमर शासक अनंगपाल ने हम्मीर को पराजित किया। वस्तुतः लाहौर के किसी अमीर को ही इस कविता में ‘हम्मीर’ लिखा गया है। इस काल में गजनी के सूबेदार पंजाब के तबरहिंद तथा रूपाल तक शासन करते थे जो दिल्ली से बहुत अधिक दूर नहीं थे।
इस प्रकार गजनी के सुल्तान तथा लाहौर में नियुक्त उनके अमीर भारतीय राजाओं पर निरंतर हमले करके उनकी सैनिक शक्ति का ह्रास करते रहे तथा भारत में अपने पैर मजबूत करते रहे। अब वे किसी भी दिन दिल्ली पर अधिकार करके भारत के सुल्तान होने का दावा कर सकते थे किंतु इस कार्य में सबसे बड़ी बाधा शाकम्भरी के चौहान थे जो अजमेर तथा दिल्ली पर शासन करते थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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