Sunday, December 22, 2024
spot_img

6.हलाकू ने खलीफा को नमदे में लपेट कर मार डाला!

जब बगदाद शहर में खलीफा के सैनिकों एवं नागरिकों के शव सड़ने लगे तो हलाकू ने अपने तम्बू बगदाद शहर के बाहर गढ़वाए तथा बगदाद को जलाकर राख करने के आदेश दिए। मंगोल सैनिकों ने खलीफा के विशाल महल में आग लगा दी। इस कारण महलों में प्रयुक्त आबनूस और चंदन की क़ीमती लकड़ी की सुगंध शहर की गलियों से उठ रही सड़ांध में जाकर मिल गई।

उस काल के इतिहासकारों ने लिखा है- ‘मंगोलों ने हजारों बगदाद-वासियों के शव दजला नदी में फैंक दिए जिनके कारण नदी का पानी लाल हो गया। उस काल में बगदार में एक विशाल पुस्तकालय हुआ करता था जिसमें विश्व के अनेक भागों से लूटकर लाए गए हस्तलिखित ग्रंथ रखे हुए थे। मंगोल सिपाहियों ने इन लाखों हस्तलिखित ग्रंथों को दजला नदी में फेंक दिया। इन पुस्तकों की नीली स्याही दजला के पानी में घुल गई और नदी का रंग नीला हो गया।’
हलाकू के मंत्री नसीरूद्दीन तोसी ने अपने संस्मरणों में लिखा है- ‘खलीफा को कुछ दिनों तक भूखा रखने के बाद उसके सामने एक ढका हुआ बर्तन लाया गया। भूख से व्याकुल खलीफा ने सोचा कि इसमें खाने की वस्तु होगी किंतु जब उसने बर्तन का ढक्कन उठाया तो देखा कि बर्तन हीरे-जवाहरात से भरा हुआ है।’

हलाकू ने कहा- ‘खाओ।’

खलीफा मुसतआसिम बिल्लाह ने कहा- ‘हीरे कैसे खाऊं?’

हलाकू ने जवाब दिया- ‘यदि तुम इन हीरों से अपने सिपाहियों के लिए तलवारें और तीर बना लेते तो मैं नदी पार नहीं कर पाता।’

खलीफा ने उत्तर दिया- ‘ख़ुदा की यही मर्ज़ी थी।’

इस पर हलाकू ने कहा- ‘अच्छा तो अब मैं जो तुम्हारे साथ करने जा रहा हूँ, वह भी ख़ुदा की मर्ज़ी है।’

खलीफा समझ गया कि हलाकू खलीफा के प्राण लिए बिना नहीं छोड़ेगा।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

जब हलाकू ने बगदाद पर अधिकार किया था, तब उसने खलीफा मुस्तआसिम बिल्लाह को विश्वास दिलाया था कि वह बगदाद में खलीफा का अतिथि बनकर आया है, इसलिए वह खलीफा को नहीं मारेगा किंतु अंत में हलाकू ने खलीफा को भी मौत के घाट उतार दिया। खलीफा को कैसे मारा गया, इस सम्बन्ध में अनेक किस्से विख्यात हैं जिनमें सर्वाधिक विश्वसनीय किस्सा हलाकू के मंत्री नसीरूद्दीन तोसी का माना जा सकता है जो उस अवसर पर स्वयं उपस्थित था।

हलाकू ने खलीफा मुसतआसिम बिल्लाह को नमदों में लपेटकर उसके ऊपर घोड़े दौड़ा दिए ताकि खलीफा का रक्त धरती पर न बहे, क्योंकि मंगोलों में किसी बादशाह का रक्त धरती पर गिराना अशुभ माना जाता था।

इस प्रकार मंगोलों ने बगदाद को बुरी तरह नष्ट-भ्रष्ट करके खलीफा को मार दिया। खलीफा द्वारा हलाकू को दी गई धमकी कोरी डींग ही साबित हुई कि पूर्व और पश्चिम के मुसलमान मिलकर मंगोलों को मार डालेंगे। खलीफा की सहायता के लिए कोई नहीं आया। शिया मुसलमानों ने हलाकू के समक्ष बिना लड़े ही समर्पण किया, ईसाइयों ने हलाकू का साथ दिया और खलीफा के अपने सिपाही पूरी तरह अयोग्य सिद्ध हुए।

खलीफा को मारने और बगदाद को जलाने के बाद विजयी मंगोल बगदाद से आगे बढ़े। उन्होंने सीरिया और एशिया माइनर को भी अपने अधिकार में ले लिया। पाठकों की सुविधा के लिए बता देना समीचीन होगा कि एशिया माइनर को एशिया कोचक तथा तुर्की भी कहा जाता है। यह यूरोप तथा एशिया की सीमाओं पर एशिया महाद्वीप के अंतर्गत स्थित है।

इस काल में कुस्तुंतुनिया पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी थी। रोमन सम्राट एशिया की तरफ से रोमन साम्राज्य की ओर बढ़ रहे हूणों को रोकने के लिए अपनी राजधानी रोम से हटाकर कुस्तुंतुनिया में लाए थे। इस समय तक हूण तो तुर्कों में बदलकर अपनी पुरानी पहचान खो चुके थे किंतु अब तेरहवीं शताब्दी में हूणों के पुराने पड़ौसी मंगोल नई मुसीबत बनकर कुस्तुंतुनिया की ओर बढ़ रहे थे।

एशिया माइनर को जीतने के बाद मंगोल कुस्तुंतुनिया के दरवाजे तक आ पहुंचे थे और ‘पूर्वी रोमन साम्राज्य’ का किसी भी समय पतन हो सकता था किंतु ई.1259 में अचानक ही मंगोल सम्राट मंगू खाँ की मृत्यु हो गई और पूर्वी रोमन साम्राज्य को जीवन-दान मिल गया।

मंगू खाँ की मृत्यु के बाद विशाल मंगोल साम्राज्य चार भागों में विभक्त हो गया। पहला था चीन जिसका शासक कुबले खाँ बना। उसने कराकुरम की जगह पेकिंग को अपनी राजधानी बनाया। वर्तमान समय में पेकिंग को बीजिंग के नाम से जाना जाता है तथा यह चीन की राजधानी है। मंगोलिया, चीन, तिब्बत और तुकिसर््तान कुबले खाँ के अधीन थे। दूसरा मंगोल राज्य था पर्शिया। इसका शासक हलाकू था। अफगानिस्तान, ईरान, मैसोपोटामिया और सीरिया के प्रदेश हलाकू के अधीन थे। एशिया माइनर के तुर्क सरदार भी हलाकू को अपना अधिपति समझते थे।

तीसरा मंगोल राज्य था रूस। कैस्पियन सागर से लेकर काला सागर के उत्तर में रूस और पौलेण्ड के प्रदेश इसके अंतर्गत थे। इसे किपचक भी कहा जाता था। चौथा मंगोल राज्य था साइबेरिया। यह किपचक और चीन के मंगोल राज्यों के बीच में स्थित था। इस प्रकार एशिया और यूरोप का काफी बड़ा हिस्सा मंगोलों के अधीन था। एशिया में भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई-द्वीप तथा यूरोप में पूर्वी रोमन-साम्राज्य एवं पश्चिमी रोमन-साम्राज्य ही मंगोल साम्राज्यों से बाहर रह पाए थे।

जब तक कुबले खाँ जीवित रहा, तब तक सभी मंगोल-राजा कुबले खाँ को अपना सम्राट मानते रहे किंतु जब ई.1294 में कुबले खाँ की मृत्यु हुई तो चारों मंगोल राज्य एक दूसरे से पूरी तरह अलग हो गए।

ई.1260 तक मंगोलों ने सीरिया पर विजय प्राप्त की और वे फिलिस्तीन को अधीन करने के लिए दक्षिण में आगे बढ़े। कुछ ही समय में मंगोलों ने अलीपो, दमस्कस और फिलिस्तीन को भी जीत लिया। मंगोलों के फिलिस्तीन तक आ जाने से मिस्र को खतरा उत्पन्न हो गया। इस समय मामलुक-तुर्क मिस्र के शासक थे और काहिरा उनकी राजधानी थी। वस्तुतः इस काल में फिलिस्तीन भी मामलुक तुर्कों के अधीन था जिसे मंगोलों ने छीन लिया था।

इस कारण मामलुक-सुल्तान कुतुज़ ने अपने सेनापति बेबार्स को फिलिस्तीन भेजा। मिस्र की सेना ने फिलीस्तीन के युद्ध में मंगोलों को हरा दिया और इसी के साथ मंगोलों का विजय-अभियान रुक गया। मंगोल सेनापति पकड़ा गया और मार डाला गया। इस प्रकार मामलुक तुर्कों ने बहुत कम समय में फिलिस्तीन और सीरिया मंगोलों से वापस छीन लिए। मंगोलों की हार का प्रमुख कारण यह था कि इस समय फिलीस्तीन में मंगोलों की बहुत कम सेना अभियान पर थी तथा मंगोल सेनाओं का बड़ा हिस्सा तुर्की में मंगोलों के बीच चल रहे परस्पर संघर्ष में व्यस्त था।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source