– ‘आसमान से कहर बरपा है जिल्ले इलाही।’ तातार गुलाम ने भय से कांपते हुए कहा।
– ‘क्या है कमजात? क्यों आसमान से कहर बरपाता है? तुझे शहजादे की सेवा में भेजा था, वहाँ से भाग आया क्या?’ गुलाम की बात सुनकर अकबर को चिंता तो हुई किंतु उसने अपने स्वर को मुलायम ही बनाये रखा।
– ‘मुझे भाग ही आना पड़ा हुजूर।’
– ‘अच्छा बता, क्यों भाग आया?’
– ‘शहजादे ने आपके नेक दिल गुलाम हर फन मौला अबुल फजल का कत्ल करवा दिया है।’
– ‘क्या बकता है पाजी?’ गुलाम की बात सुनकर अकबर सन्न रह गया और उत्तेजना में अपने स्थान से उठ कर खड़ा हो गया।
– गुलाम की गुस्ताखी मुआफ हो आका। आपका हुक्म था कि जैसे ही कोई खास बात मालूम हो, मैं तुरंत आपकी सेवा में हाजिर हो जाऊँ। आपके हुक्म की तामील में ही मैं यह समाचार पाकर वहाँ से भाग आया हूँ।’
– ‘कब और कहाँ हुआ यह?’
– ‘कोई बीस दिन हो गये हुजूर, नरवर में।’
– ‘किसने हलाक किया?’
– ‘ओरछा के राजा वीरसिंह बुंदेला ने हुजूर।’
गुलाम का जवाब सुनकर अकबर दहल गया। यह जानकर अकबर की निराशा का पार न था कि सलीम वीरसिंह बुंदेला से जा मिला है!
सलीम इस हद तक आगे बढ़ जायेगा, अकबर ने इसकी तो कल्पना भी नहीं की थी। अबुल फजल अकबर का अनन्य मित्र था। वह शहंशाह का खास आदमी माना जाता था। उसकी ख्याति पूरी सल्तनत में सबसे बुद्धिमान आदमी के रूप में थी। अकबर ने उससे अपनी समस्याओं का समाधान जानने के लिये उसे दक्षिण के मोर्चे से बुलवाया था किंतु सलीम ने उसकी हत्या करवाकर समस्याओं को खतरनाक मुकाम तक पहुँचा दिया था। अबुल फजल की मौत और बेटे की बेवफाई से अकबर शोक के गहन सागर में डूब गया। काफी देर तक वह चुपचाप महल की छत की ओर ताकता रहा। बहुत देर बाद वह अपने विचारों की आंधी में से बाहर निकला।
– ‘यह शमां गुल कर दे।’ अकबर ने तातार गुलाम को आदेश दिया। उसके स्वर में शोक और कष्ट का लावा बह रहा था।
शहंशाह का हुक्म पाकर गुलाम ने शमां बुझा दी।
– ‘और यह भी।’ अकबर ने दूसरी शमां की ओर संकेत किया।
गुलाम ने दूसरी शमां भी बुझा दी।
– ‘महल की सारी शमाएं बुझा दे और सारे दरवाजे बंद करके बाहर खड़ा रह। जब तक मैं न बुलाऊँ, किसी को भीतर न आने देना।’
तातार गुलाम स्वामी के आदेशों की अक्षरशः पालना करने के लिये महल के दरवाजे बंद करके बाहर जाकर खड़ा हो गया। उसे मालूम न था कि पूरे तीन दिन तक उसे बुत की तरह वहीं खड़े रहना होगा।
जब रियाया को मालूम हुआ कि बादशाह शमाएं बुझाकर तथा मुँह पर कपड़ा लपेट कर अपने महल में बंद हो गया है तो आगरा में हड़कम्प मच गया। कोई न जान सका कि आखिर ऐसा क्या हो गया है जो बादशाह इतना गमगीन है। लोग अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार अनुमान लगाने लगे।
तीन दिन बाद जब अकबर अपने महलों से बाहर निकला तो उसने दो फरमान एक साथ जारी किये। पहला ये कि वीरसिंह को जहाँ भी पाया जाये मार डाला जाये तथा दूसरा ये कि शहजादे सलीम को आगरा में तलब किया जाये।