पिछली कड़ी में आपने देखा कि किस प्रकार दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के पुत्र जूना खाँ ने अपने पिता की हत्या कर दी और स्वयं मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठ गया। उसने मुस्लिम अमीरों एवं उलेमाओं को प्रसन्न करने के लिए उन्हें बड़े-बड़े पद एवं पदवियां दीं तथा साधारण मुस्लिम प्रजा को खुश करने के लिए दिल्ली की सड़कों पर सोने चांदी के सिक्कों की बिखेर की।
अपने पद को मजबूत बनाने के लिए उसने मिस्र के खलीफा से अपने लिए सुल्तान पद की स्वीकृति प्राप्त की तथा निष्कंटक होकर भारत पर राज्य करने लगा। इसके बाद उसने सल्तनत को मजबूती देने का काम आरम्भ किया। अब देखिए आगे-
आज भारतीय इतिहास मुहम्मद बिन तुगलक के बारे में जितना जानता है, वह जियाउद्दीन बरनी नामक एक लेखक के माध्यम से जानता है। वह मुहम्मद बिन तुगलक का समकालीन सुन्नी उलेमा था।
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बरनी चाहता था कि सुल्तान भारत पर इस्लामिक पद्धति से शासन करे जिसका मूल कार्य भारत में इस्लाम का प्रसार करना हो किंतु मुहम्मद बिन तुगलक ने इस्लाम के प्रसार के लिए कोई कदम उठाया।
वह भारत पर अपनी इच्छा के अनुसार शासन करना चाहता था तथा शासन में उलेमाओं के हस्तक्षेप को पसंद नहीं करता था। यही कारण था कि मुहम्मद बिन तुगलक उलेमाओं से कोई राय नहीं लेता था तथा अपनी मर्जी से काम करता था।
जब से दिल्ली में मुस्लिम सल्तन की शुरुआत हुई थी, तब से उलेमा, मौलफी, मुफ्ती और काजी लोग ही सुल्तान को हर कार्य में मशविरा देते आए थे किंतु अब उनकी पूछ कम हो गई थी।
इस कारण उस युग के उलेमा, मौलवी, मुफ्ती और काजी, सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से नाराज हो गए। जियाउद्दीन बरनी ने जहाँ भी अवसर मिला, मुहम्मद बिन तुगलक की कड़ी आलोचना की ।
एक तरफ तो मुसलमान लेखक उसकी आलोचना कर रहे थे तो दूसरी ओर कुछ हिन्दू इतिहासकारों ने भी मामले को अतिरंजित कर दिया। उदाहरण के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने गंगा-यमुना के दो-आबे में भूराजस्व करों में वृद्धि की।
सुल्तान समर्थक मुस्लिम लेखकों के अनुसार यह वृद्धि एक बटा बीस से लेकर एक बटा दस अर्थात् 5 से 10 प्रतिशत थी किंतु हिन्दू लेखकों ने इसे दस से बीस गुना बता दिया।
जबकि अंग्रेज लेखकों ने करों को पहले की तुलना में दो गुना किया जाना बताया है। यही कारण है कि भारतीय इतिहास में मुहम्मद बिन तुगलक का सही मूल्यांकन नहीं हो पाया।
मुहम्मद बिन तुगलक के पास साम्राज्य विस्तार की बड़ी-बड़ी योजनाएं थीं इसके लिए उसे धन की आवश्यकता थी। उस काल में जनता से कर-उगाही के तीन मुख्य साधन थे।
पहला प्रमुख साधन था कृषि उपजपर कर। दूसरा प्रमुख साधन था कुटीर उद्योगों के माध्यम से उत्पादित होने वाले उत्पादों के नगर या मण्डी में बिकने के लिए आने पर ली जाने वाली चुंगी।
अतः मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि की उपज बढ़ाने के लिए कुछ कदम उठाए ताकि किसानों के खेतों में उत्पन्न होने वाले अनाज में से कर के रूप में लिया जाने वाले हिस्से में बढ़ोतरी हो सके और उस अनाज का उपयोग सेनाओं के रख-रखाव के लिए हो सके।
ई.1193 में दिल्ली में मुस्लिम शासन की स्थापना होने के बाद से किसानों की हालत खराब हो गई थी। बहुत से किसान मुस्लिम सैनिकों के अत्याचारों से डरकर खेती-बाड़ी करना छोड़ देते थे और जंगलों में भाग जाते थे जिससे धरती बंजर हो जाती थी और उत्पादन गिर जाता था।
उस काल का किसान सूखे और अकाल से निबटने में बिल्कुल भी सक्षम नहीं था। इसका सीधा असर सरकार को मिलने वाले कर पर पड़ता था।
यह सही है कि उस काल में किसानी का काम प्रायः हिन्दू कर रहे थे क्योंकि मुस्लिम नौजवान शासन और सेना में भर लिए जाते थे और उनकी आय किसानों की अपेक्षा अधिक थी।
कुछ मुसलमान खेती भी करने लगे थे किंतु उनसे हिन्दुओं की अपेक्षा कम कर लिया जाता था।
मुहम्मद ने अनुभव किया कि किसानों को खेती करने का सही तरीका सिखाया जाना आवश्यक था। इसके लिए उसने अलग से कृषि विभाग की स्थापना की। उस विभाग का नाम दीवाने कोही था।
इस कार्य के लिये साठ वर्ग मील का एक भू-भाग चुनकर उसमें विभिन्न प्रकार की फसलें बोई गईं। ताकि किसानों को बताया जा सके कि अच्छी खेती किस प्रकार की जा सकती है तथा अधिक उत्पादन किस प्रकार लिया जा सकता है!
सुल्तान की ओर से कृषि विभाग अर्थात् दीवाने कोही पर तीन वर्ष में 70 लाख टका (रुपया) व्यय किया गया किंतु सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, किसानों की उदासीनता तथा समय की कमी के कारण यह योजना असफल रही और बंद कर दी गई।
मुहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में कुछ नहरों का निर्माण करवाया ताकि यमुना का जल किसानों के खेतों तक पहुंचाया जा सके।
नहरों के निर्माण में काफी धन व्यय हो गया और उसके अनुपात में सुल्तान की आय में वृद्धि नहीं हुई। इनमें से कुछ नहरें उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में भी मौजूद थीं।
अंग्रेजों ने दिल्ली के आसपास की नहरों की पैमाइश करवाई थी तथा कुछ नहरों की मरम्मत भी करवाई थी। ई.1801 में अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट जेम्स टॉड को दिल्ली के पास एक पुरानी नहर की पैमाइश करने का काम दिया गया था तथा उसने ये नहरें देखी थीं।
किसानों की आय बढ़ाने सम्बन्धी योजनाओं की असफलता के लिए उलेमाओं और मौलवियों ने सुल्तान को पागल कहना आरभ कर दिया।
जबकि मुहम्मद बिन तुगलक भारत में पहला मुस्लिम शासक था जिसने देश में सबसे पहले कृषि विभाग की स्थापना करके किसानों की आय बढ़ाने का सपना देखा था। अगली कड़ी में देखिए- सुल्तान द्वारा की गई कर-वृद्धि के कारण गंगा-यमुना क्षेत्र के किसान खेती छोड़कर जंगलों में भाग गए!