बीकानेर रियासत राज्य भारत के थार रेगिस्तान में स्थित एक पुरानी रियासत थी जो ई.1465 के आसपास अस्तित्व में आई थी। इसके शासक जोधपुर राज्य के राठौड़ वंश में से ही निकले थे। भारत की आजादी के समय सादुलसिंह बीकानेर का राजा था। संविधान सभा में प्रतिनिधि भेजने से लेकर भारत संघ में विलय की घोषणा के मामले में बीकानेर देश के समस्त देशी राज्यों में अग्रणी रहा किंतु महाराजा स्वतंत्र भारत में अपने अधिकारों को लेकर अत्यंत सतर्क था।
15 जुलाई 1947 को महाराजा सादूलसिंह ने भारत के प्रधानमंत्री नेहरू को एक पत्र लिखा जिसमें 110 पैरागा्रफ थे। महाराजा ने लिखा कि प्रजा परिषद वाले, राज्य में इस प्रकार का प्रचार कर रहे हैं कि निकट भविष्य में समस्त भारत में गांधी-राज हो जायेगा और भारतीय राज्य भी उन में मिला लिए जायेंगे। तिरंगा ही एकमात्र झण्डा होगा। ज
बकि वास्तविकता तो यह है कि न तो गांधीजी के ऐसे विचार हैं और न ही भारतीय राज्य भारत में अपने अस्तित्व को सम्मिलित करने जा रहे हैं। इस पत्र से यह आभास होता है कि बीकानेर नरेश भले ही जोर-शोर से भारत संघ में मिलने की घोषणा कर रहे था किंतु वह यह आश्वासन भी चाहता था कि स्वतंत्र भारत में उसकी रियासत पूरी तरह स्वतंत्र बनी रहेगी।
फिरोजपुर वाटर हैड वर्क्स का मामला
ब्रिटिश सरकार की घोषणा के अनुसार भारत और पाकिस्तान में सम्मिलित किए जाने वाले क्षेत्रों का निर्णय हिन्दू अथवा मुस्लिम बहुल जनसंख्या के आधार पर होना था। इस आधार पर पाकिस्तान ने पंजाब के फिरोजपुर स्थित ‘वाटर हैड वर्क्स’ पर भी अपना दावा जताया।
इस नहर से बीकानेर रियासत की एक हजार वर्ग मील से अधिक भूमि सिंचित होती थी। महाराजा सादूलसिंह ने बीकानेर राज्य के प्रधानमंत्री के. एम. पन्निकर, जस्टिस टेकचंद बक्षी और मुख्य अभियंता कंवरसेन को बीकानेर राज्य का पक्ष रखने के लिए नियुक्त किया।
पन्निकर ने रियासती विभाग के मंत्री तथा विभाजन हेतु गठित उच्चस्तरीय परिषद के सदस्य सरदार पटेल पर इस बात के लिए दबाव डाला कि वे सुनिश्चत कर लें कि फिरोजपुर हैड वर्क्स पूर्णतः भारत सरकार द्वारा नियंत्रित रहेगा। महाराजा ने माउंटबेटन तथा पटेल को संदेश भिजवाया कि यदि फिरोजपुर हैड वर्क्स और गंगनहर का एक भाग पाकिस्तान में जाता है तो हमारे लिए पाकिस्तान में सम्मिलित होने के अलावा और कोई चारा नहीं रहेगा।
अंग्रेजों ने उनकी समस्या को समझा तथा उन्हें आश्वासन दिया कि फिरोजपुर हैडवर्क्स भारत में ही रहेगा। 17 अगस्त 1947 को जब रेडक्लिफ रिपोर्ट प्रकाशित हुई तब उसमें फिरोजपुर हैड वर्क्स को भारत में बने रहने का निर्णय हुआ।
6 अगस्त 1947 को महाराजा सादूलसिंह ने प्रविष्ठ संलेख पर हस्ताक्षर कर दिए। यथास्थिति समझौता पत्र पर राज्य के प्रधानमंत्री के. एम. पन्न्किर द्वारा हस्ताक्षर किए गये। रियासती विभाग ने महाराजा को पत्र लिखकर सूचित किया कि वायसराय और सरदार पटेल ने महाराजा द्वारा निर्वहन की गयी भूमिका के प्रति आभार व्यक्त किया है। संक्षिप्त अवधि में ही इस समझौते पर हस्ताक्षर करके महाराजा ने भारत तथा राज्यों के समान हित के लिए त्याग किया है।
वायसराय तथा सरदार पटेल ने आशा व्यक्त की है कि इस विलय पत्र के माध्यम से प्रस्तुत उदाहरण से, आने वाले समय में भारत तथा राज्यों के मध्य सहयोग का एक नया युग आरंभ होगा जो संपूर्ण देश को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से मजबूत बनायेगा। इस प्रविष्ठ संलेख के द्वारा महाराजा ने रक्षा, संचार और विदेश मामलों पर अपनी सारी सत्ता केंद्र सरकार को सौंप दी और शेष विषयों में महाराजा ने अपने आप को स्वतंत्र मान लिया। अधिकांश रियासतों ने भवितव्य के आगे सिर झुका कर प्रविष्ठ संलेख पर दस्तखत कर दिए। इनमें सबसे पहला बीकानेर का महाराजा था, जो वायसराय का पुराना दोस्त था। बड़े नाटकीय अंदाज में उसने हस्ताक्षर किए।
15 अगस्त 1947 को महाराजा ने एक भाषण में कहा-
‘ब्रिटिश सत्ता की समाप्ति के साथ भारतीय रियासतों को यह छूट थी कि वे अलग रहें और नये राष्ट्र के साथ सम्बन्धित होने से मना कर दें। कानूनी दृष्टि से आज हम समस्त स्वतंत्र हो सकते हैं क्योंकि हमने ब्रिटिश साम्राज्य को आधिपत्य का जो अधिकार सौंपा था, वह भारतीय स्वतंत्रता कानून के अंतर्गत हमें वापिस मिल गया।
हम अलग रह सकते थे और भारतीय राष्ट्र में विलय नहीं करते। एक क्षण के विचार से ही यह स्पष्ट हो जायेगा कि इसका परिणाम कितना विनाशकारी होता। शुरू से ही मेरे दिमाग में यह बात आ गयी थी कि इससे भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जायेगा।
इसके परिणाम का पूर्व ज्ञान रखते हुए मैंने बिना हिचकिचाहट के भारत के उन तत्वों के साथ सहयोग करने का निश्चय किया जो एक मजबूत केन्द्रीय सरकार की स्थापना के लिए कार्य कर रहे थे।’
सरदार पटेल ने देशी राज्यों के भारत में विलय के पश्चात महाराजा सादूलसिंह का धन्यवाद करते हुए उन्हें लिखा कि-
‘राजाओं को गलत राह पर ले जाने के लिए जान-बूझकर जो संदेह और भ्रम उत्पन्न किए गये उन्हें मिटाने में महाराजा ने जो कष्ट किया, उससे मैं भलीभांति परिचित हूँ। महाराजा का नेतृत्व निश्चय ही समयानुकूल और प्रभावशाली रहा है।’
स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ माह बाद जनवरी 1948 में लॉर्ड माउंटबेटन बीकानेर राज्य के दौरे पर आये। उन्होंने अपने भाषण में सादूलसिंह की प्रशंसा करते हुए कहा-
‘महाराजा प्रथम शासक थे जिन्होंने भारत का नया संविधान बनाने में मदद देने के लिए संविधान निर्मात्री सभा में प्रतिनिधि भेजकर यह अनुभव कर लिया कि भविष्य में राजा लोगों को क्या करना है। महाराजा पहले शासक थे जिन्होंने रियासतों के अपने पास के संघ में सम्मिलित होने के मेरे प्रस्तावों का समर्थन किया।’
2 सितम्बर 1954 को राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने बीकानेर में महाराजा सादूलसिंह की मूर्ति का अनावरण करते हुए उनके योगदान की प्रशंसा की-
‘जब एक ओर भारत के बंटवारे की विपत्ति आ रही थी और दूसरी ओर भारतवर्ष के टुकड़े किए जाने के लिए द्वार खोला जा रहा था, उन्होंने जवांमर्दी, देशप्रेम तथा दूरदर्शिता से अपने आप को खड़ा करके उस दरवाजे का मुँह बंद कर दिया।’
बीकानेर रियासत में पाकिस्तान से शरणार्थियों का आगमन
नव-निर्मित पाकिस्तान के साथ बीकानेर रियासत की लगभग 320 किलोमीटर लम्बी सीमा थी। बीकानेर द्वारा भारत संघ में सम्मिलित होने का निर्णय लेने पर इस सीमा को पार करके लाखों लोग पाकिस्तान से भारत आये तथा भारत से पाकिस्तान गये। लगभग 7-8 लाख लोग भारत से निकाल कर सुरक्षित रूप से पाकिस्तान पहुंचाये गये। बीकानेर राज्य की सीमा पर बहावलपुर राज्य था जिसमें 1.90 लाख हिन्दू तथा 50 हजार सिक्ख रहते थे।
बहावलपुर राज्य के हासिलपुर में 350 सिक्ख एवं हिन्दू मार डाले गये। इससे बहावलपुर राज्य के अन्य कस्बों एवं गाँवों में भगदड़ मच गयी। 15 अगस्त 1947 के बाद बीकानेर रियासत में लगभग 75 हजार शरणार्थी आये जिनके लिए शरणार्थी शिविरों की स्थापना की गयी। बहुत से लोगों को बीकानेर से 40 किलोमीटर दूर कोलायत भेजा गया। इतनी बड़ी संख्या में शरणार्थियों के आने से राज्य की व्यवस्थायें गड़बड़ा गयीं। राज्य की ओर से शरणार्थियों के ठहरने व भोजन-पानी की व्यवस्था की गयी।
कोलायत तथा सुजानगढ़ आदि कस्बों में शरणार्थियों को ठहराया गया। गंगानगर क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में शरणार्थी आये। इन शरणार्थियों पर पाकिस्तान में बहुत अत्याचार हुए थे इसलिए वे मुसलमानों से बदला लेने पर उतारू थे। उन्हें शांत रखने तथा मुसलमानों पर आक्रमण न करने देने के लिए राज्य की ओर से सेना लगायी गयी। सेना ने बहुत से मुसलमानों को बहावलपुर राज्य में सुरक्षित पहुंचाया।
जब चूरू के महाजनों ने अपने मुसलमान नौकरों को नौकरी से निकाल दिया तो वे मुसलमान, महाराजा सादूलसिंह के पास बीकानेर आ गये। महाराजा ने विशेष रेलगाड़ी से नौकरों को वापस चूरू भिजवाया तथा महाजनों को कहकर उन्हें वापस नौकरी में रखवाया। जो लोग बीकानेर रियासत छोड़कर पाकिस्तान चले गये थे उन्हें महाराजा ने फिर से बीकानेर राज्य में आकर बसने का न्यौता दिया तथा जो हिंदू शरणार्थी पाकिस्तान से बीकानेर राज्य में आ गये थे उन्हें ब्रिटिश-भारत में भेजने के लिए महाराजा ने भारत सरकार से अनुरोध किया।
पाकिस्तान से आये 50,746 शरणार्थियों को बीकानेर राज्य द्वारा 2,58,516 बीघा जमीन आवंटित की गयी। बहुत से सिक्ख पाकिस्तान के रहीमयार खान नामक जिले में घेर कर रोक लिए गये। बीकानेर रियासत के अधिकारियों ने बहावलपुर के राज्याधिकारियों से बात करके इन शरणार्थियों को निकलवाया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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