पिछले छः महीनों से हुमायूँ सिंध क्षेत्र में प्रवास कर रहा था किंतु सिंध एवं अमरकोट क्षेत्र के हिन्दू राजाओं के रुष्ट होकर चले जाने के बाद हुमायूँ के लिए हिंदुस्तान में रहना भारी हो गया। इस समय हुमायूँ किं कर्त्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में था कि उसे क्या करना चाहिए! सौभाग्य से बाबर के समय का एक सेनापति बैराम बेग खाँ गुजरात से हुमायूँ की सेवा में ‘जून’ आ गया। वह हुमायूँ को संकट में जानकर स्वयं ही आ पहुंचा था।
गुलबदन बेगम ने लिखा है कि इसी समय कराचः खाँ के प्रार्थना पत्र हुमायूँ के पास आए। कराचः खाँ हुमायूँ के द्वारा कांधार में नियुक्त किया गया था। गुलबदन बेगम के अनुसार कराचः खाँ ने हुमायूँ को लिखा कि- ‘आप लम्बे समय से सिंध में ही ठहरे हुए हैं और अब तक कांधार नहीं आए हैं जबकि मिर्जा हिंदाल कांधार आ गए हैं। मैंने कांधार मिर्जा हिंदाल को भेंट कर दिया था किंतु मुझे ज्ञात हुआ है कि मिर्जा शाह हुसैन आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहा है, अतः मेरी प्रार्थना है कि आप कांधार चले आएं, यहाँ रास्ता साफ है।’
उधर जब मिर्जा कामरान को ज्ञात हुआ कि कराचः खाँ ने कांधार पर मिर्जा हिंदाल का कब्जा कर दिया है तो मिर्जा कामरान बहुत कुपित हुआ। इस समय मिर्जा कामरान काबुल में तथा मिर्जा अस्करी गजनी में था। कामरान ने मिर्जा अस्करी को लिखा कि कराचः खाँ ने कांधार पर मिर्जा हिंदाल का कब्जा करा दिया है किंतु मिर्जा हिंदाल से कांधार वापस लेना आवश्यक है। इधर हुमायूँ ने कांधार पर मिर्जा हिंदाल के अधिकार को अपने लिए शुभ समाचार समझा। हुमायूँ को विश्वास था कि यदि हुमायूँ कांधार जाएगा तो मिर्जा हिंदाल हुमायूँ के साथ अच्छा व्यवहार करेगा। फिर भी कोई निर्णय लेने से पहले हुमायूँ ने अपनी बुआ खानजादः बेगम को अपनी संदेशवाहक बनाकर अपने भाइयों के पास भेजने का निर्णय लिया।
हुमायूँ ने खानजादः बेगम से कहा- ‘आप कांधार जाएं तथा मिर्जा कामरान, मिर्जा अस्करी और मिर्जा हिंदाल को समझाएं कि उज्बेग और तुर्कमान जैसे शत्रु तुम्हारी सीमा पर ही बसते हैं, इसलिए तुम्हारे और हमारे बीच मित्रता रहे तो ठीक है। हमने मिर्जा कामरान को जो कुछ लिखा है, यदि कामरान उसे मान ले तो हम भी वैसा ही करेंगे जैसा वे चाहते हैं।’
हुमायूँ के अनुरोध पर खानजादः बेगम सिंध से कांधार के लिए रवाना हो गई। वहाँ पहुंचकर उसने कामरान को भी कांधार बुलवा लिया। मिर्जा कामरान एक बड़ी सेना लेकर कांधार पहुंचा। कामरान ने मिर्जा हिंदाल से कहा कि तुम कांधार में हुमायूँ के नाम का खुतबा पढ़वाने के स्थान पर मेरे नाम का खुतबा पढ़वाओ। मिर्जा हिंदाल ने कामरान के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा-‘बादशाह बाबर ने अपने जीवनकाल में ही हुमायूँ को बादशाहत दे दी थी और उन्हें अपना वली-ए-अहद बनाया था। हम लोगों ने भी बादशाह बाबर के निर्णय को मान लिया था, इसलिए अब खुतबा बदलवाने से क्या अर्थ है? खुतबा नहीं बदला जाएगा!’
इस पर मिर्जा कामारान ने मिर्जा हिंदाल की माता दिलदार बेगम को पत्र लिखा- ‘हम आपको याद करके काबुल से कांधार आए हैं। आपको हिंदुस्तान से कांधार आए हुए इतने दिन हो गए किंतु आपने हमें याद तक नहीं किया। जैसे आप मिर्जा हिंदाल की माता हैं, वैसे ही हमारी भी माता हैं।’
इस पत्र के मिलने पर मिर्जा हिंदाल की माता दिलदार बेगम, मिर्जा कामरान से मिलने के लिए उसके डेरे में आई। कामरान ने कहा- ‘अब आप मेरे पास ही रहिए, मैं आपको नहीं छोड़ूंगा। आप बताइए कि खुतबा किसके नाम का पढ़ा जाना चाहिए?’
दिलदार बेगम ने कहा- ‘खानजादः बेगम तुम्हारी पूज्य हैं और हम-तुम सबसे बड़ी हैं। इसलिए खुतबा किसके नाम का पढ़ा जाए यह बात तुम उन्हीं से पूछो।’
कामरान द्वारा यही प्रश्न बाबर की एक और बेगम आकः बेगम से भी पूछा गया। आकः बेगम ने इस प्रश्न का क्या उत्तर दिया, यह तो ज्ञात नहीं है किंतु आगे की घटनाओं के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि आकः बेगम ने कामरान के पक्ष में निर्णय नहीं दिया गया।
खानजादः बेगम ने कामरान से कहा- ‘यदि तुम हमसे पूछते हो तो हमारा मत यह है कि जिस प्रकार बादशाह बाबर ने निश्चित किया है, हुमायूँ को बादशाही दी है और अब तक तुम लोगों ने भी जिसके नाम का खुतबा पढ़ा है, उसी को अब भी बड़ा समझकर आज्ञा मानते रहो।’
अपनी विमाताओं एवं बुआ का जवाब सुनकर कामरान नाराज हो गया और उसने अपनी सेनाओं को आदेश दिया कि वह कांधार नगर को घेर ले। बाबर के दुर्भाग्यशाली बेटों ने अपने ही परिवार के लोगों को दुश्मनों की तरह घेर लिया। ऐसे परिवार को वैसे भी दुश्मनों की आवश्यकता नहीं थी, बाबर के बेटे ही एक दूसरे से दुश्मनी निकालने के लिए पर्याप्त थे।
खानजादः बेगम की स्थिति विचित्र हो गई। कहाँ तो वह बादशाह हुमायूँ की दूत बनकर आई थी और कहाँ वह स्वयं ही कांधार के घेरे में बंदी जैसी अवस्था में पहुंच गई थी! चार महीने तक कामरान कांधार को घेरकर पड़ा रहा और घर की बड़ी-बूढ़ी औरतों से आग्रह करता रहा कि वे मिर्जा हिंदाल को मिर्जा कामरान के नाम का खुतबा पढ़ने का आदेश दें।
चार महीने के घेरे में कांधार के लोगों की हालत खराब होने लगी। इस पर घर की औरतों ने निर्णय लिया कि अभी बादशाह हुमायूँ कांधार में नहीं है, इसलिए कामरान के नाम का खुतबा पढ़ा जाए और जब बादशाह हुमायूँ आएं तब उनके नाम का खुतबा पढ़ा जाए। घर की बड़ी-बूढ़ी औरतों की सहमति मिलते ही कामरान ने कांधार से घेरा हटा लिया तथा कांधार का शासन मिर्जा हिंदाल की जगह अपने विश्वस्त भाई मिर्जा अस्करी को सौंप दिया।
कामरान ने मिर्जा हिंदाल को भरोसा दिलाया कि वह हिंदाल को गजनी का शासक बना देगा। इसलिए मिर्जा हिंदाल ने बिना किसी विरोध के कांधार खाली कर दिया और कामरान के साथ काबुल चला गया। काबुल पहुंचकर कामरान ने एक बार फिर से रंग बदला और हिंदाल को गजनी न देकर लमगानात और उसके निकटवर्ती दर्रों का गवर्नर नियुक्त कर दिया।
इससे मिर्जा हिंदाल नाराज होकर बदख्शां चला गया और बदख्शां की राजधानी खोस्त में रहने लगा। मिर्जा कामरान ने मिर्जा हिंदाल की माता दिलदार बेगम से कहा कि आप मिर्जा हिंदाल को मनाकर लाएं। जब दिलदार बेगम अपने पुत्र हिंदाल के पास बदख्शां पहुंची तो मिर्जा हिंदाल ने उत्तर दिया कि मैंने अब स्वयं को राजकाज एवं युद्धों से अलग कर लिया है। अब मैं शांति के साथ खोस्त में एकांतवास करना चाहता हूँ।
इस पर दिलदार बेगम ने मिर्जा हिंदाल से कहा कि यदि फकीरी और एकांतवास की इच्छा है तो काबुल भी अच्छी जगह है, वहीं पर चलकर स्त्री एवं पुत्र आदि के साथ रहो। इस पर भी मिर्जा हिंदाल काबुल चलने के लिए तैयार नहीं हआ तो दिलदार बेगम ने हिंदाल को कड़ी फटकार लगाई और उसे अपने साथ जबर्दस्ती काबुल ले आई। हिंदाल ने काबुल में पहुंचकर फकीरों जैसा वेश बना लिया और एकांतवास करने लगा।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता