बाबर ने घाघरा के युद्ध में महमूद खाँ लोदी के नेतृत्व में एकत्रित 10 हजार अफगानियों को 5 मई 1529 को कड़ी शिकस्त दी और स्वयं आगरा लौट आया। आगरा आकर बाबर का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ने लगा। इसलिए अब वह किसी युद्ध-अभियान पर जाने की सोच भी नहीं सकता था।
इस समय बाबर का बड़ा पुत्र मिर्जा हुमायूँ बदख्शां में था। बाबर का दूसरे नम्बर का पुत्र मिर्जा कामरान काबुल में था और तीसरे नम्बर का पुत्र मिर्जा अस्करी बाबर के पास हिन्दुस्तान में था। बाबर का चौथा पुत्र मिर्जा हिंदाल इस समय हुमायूँ के पास बदख्शां में था। हालांकि बाबर की ढेरों बेगमों से ढेरों औलादें पैदा हुई थीं किंतु संभवतः बाबर के जीवनकाल के अंतिम भाग में यही चार पुत्र जीवित बचे थे क्योंकि आगे के इतिहास में बाबर के इन्हीं चार बेटों के नाम मिलते हैं।
हुमायूँ बाबर का बड़ा बेटा था और योग्य एवं आज्ञाकारी भी। इसलिए बाबर कामरान, हिंदाल तथा मिर्जा अस्करी की बजाय हुमायूँ को अपने साथ रखता था। यद्यपि हुमायूँ ने कई बड़ी गलतियां की थीं और बाबर ने उसे कई बार प्रताड़ित भी किया था किंतु बाबर जानता था कि उसके शहजादों में हुमायूँ सर्वाधिक योग्य एवं विश्वसनीय है।
पाठकों को स्मरण होगा कि जब बाबर काबुल से अंतिम बार भारत पर आक्रमण करने के लिए आ रहा था तो उसने हुमायूँ को आदेश भिजवाया था कि वह तुरंत अपने सैनिकों को लेकर बदख्शां से बागेवफा आ जाए। उस समय बाबर अफगानिस्तान में बागेवफा नामक स्थान पर ठहरा हुआ था। बाबर को काफी समय तक हुमायूँ की प्रतीक्षा करनी पड़ी थी क्योंकि हुमायूँ बदख्शां से चलकर काबुल पहुंचा था और अपनी माता के कहने पर कई दिनों तक काबुल में रहा था। इस कारण जब हुमायूँ बाबर के पास पहुंचा था तो बाबर ने उसे कड़ी फटकार लगाई थी और इतना विलम्ब करने का कारण पूछा था।
इसी तरह का एक और प्रकरण बाबर ने लिखा है कि जब हूमायूं को बदख्शां के सैनिकों के साथ काबुल जाने की आज्ञा दी गई तो हुमायूँ आगरा से चलकर दिल्ली पहुंचा। उसने दिल्ली के किले में रखे खजाने को जबरदस्ती खुलवाया तथा बहुत से खजाने को अपने अधिकार में ले लिया। बाबर को हुमायूँ से ऐसी आशा नहीं थी। इसलिए बाबर ने हुमायूँ को कड़ी फटकार लगाते हुए चिट्ठियां लिखीं और भविष्य में ऐसा फिर नहीं करने की चेतावनी भी दी।
जब हुमायूँ आज्ञाकारी बालक की तरह बदख्शां चला गया तब बाबर ने उसे कई बार पुरस्कार तथा पत्र भिजवाकर उसका उत्साहवर्द्धन किया। बाबर हुमायूँ को लिखे गए अपने पत्रों का आरम्भ इस प्रकार करता था- ‘हुमायूं! जिसे देखेने की मेरी बड़ी अभिलाषा है।’
संभवतः बाबर को इस बात का अंदेशा था कि हुमायूँ तथा कामरान के सम्बन्ध मधुर नहीं हैं। इसलिए बाबर ने अपने पत्रों के माध्यम से कामरान को कई बार आदेश दिए कि वह सदैव हुमायूँ के आदेशों का पालन करे। इसके साथ ही बाबर हुमायूँ को लिखा करता था कि वह अपने भाइयों से स्नेह करे तथा उनकी त्रुटियों को क्षमा करे।
हुमायूँ को लिखे अपने पत्रों में बाबर लगातार संदेश भिजवाता रहता था कि जब भी अवसर मिले वह समरकंद, बल्ख, हिसार फिरोजा अथवा किसी अन्य राज्य पर आक्रमण करके अपने राज्य की वृद्धि करे। बाबर की बड़ी इच्छा थी कि हुमायूँ समरकंद को अपनी राजधानी बना ले तथा कामरान बल्ख पर राज्य करे। अपनी इस इच्छा को बाबर कई पत्रों में व्यक्त कर चुका था।
दूसरी ओर हुमायूँ की रुचि अफगानिस्तान और मध्य-एशिया की बजाय भारत में अधिक थी। वह भारत की प्राकृतिक सम्पदा और आगरा तथा दिल्ली के किलों में रखे खजानों को देख चुका था इसलिए हुमायूँ का मन अब मध्य-एशिया में नहीं लगता था। ई.1529 में हुमायूँ को समाचार मिला कि बादशाह बाबर बीमार रहने लगा है। इस पर हुमायूँ ने बाबर के आदेशों की परवाह किए बिना भारत जाने का निर्णय लिया।
बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि जब हुमायूँ बदख्शां में था, तब हुमायूँ को समाचार मिले कि बादशाह बाबर आगरा में बीमार हो गया है। इस पर हुमायूँ बदख्शां का शासन अपने दस वर्षीय छोटे भाई हिंदाल को देकर स्वयं आगरा चला आया।
तारीखे अलफी में लिखा है कि ई.1530 के आरम्भिक महीनों में बाबर ने हुमायूँ को बदख्शां से भारत बुला लिया तथा मिर्जा हिंदाल को बदख्शां के शासन हेतु भेजा जबकि गुलबदन ने स्पष्ट लिखा है कि हुमायूँ के आने पर बाबर बेहद नाराज हुआ। गुलबदन बेगम ने यह भी लिखा है कि अंत में बादशाह ने हुमायूँ को क्षमा करके संभल की जागीर पर भेज दिया।
कुछ दिनों बाद बाबर को सूचना मिली कि हुमायूँ गंभरी रूप से बीमार हो गया है और उसके जीवन की आशा बहुत कम रह गई है। उस समय हुमायूँ दिल्ली में था। मौलाना मुहम्मद फर्गली ने हुमायूँ की माता माहम बेगम को सूचना भिजवाई- ‘हुमायूँ मिर्जा मंदे हैं, हाल विचित्र है। बेगम साहब यह समाचार सुनते ही बहुत जल्दी आवें क्योंकि मिर्जा बहुत घबराए हुए हैं।’
गुलबदन बेगम ने लिखा है कि माहम बेगम तुरंत दिल्ली पहुंची और हुमायूँ को अपने साथ आगरा ले आई। जब बाबर ने हुमायूँ को देखा तो बाबर का चमकता हुआ चेहरा शोक से उतर गया और उसकी घबराहट बढ़ती ही चली गई।
माहम बेगम ने शोक से कातर होकर कहा- ‘मेरा तो केवल यही एक पुत्र है, इसलिए मैं दुःखी होती हूँ किंतु आप बादशाह हैं, आपको क्या दुःख है? आपके कई अन्य पुत्र भी हैं। हमारे पुत्र को आप भूल जाइए!’
इस पर बादशाह ने कहा- ‘माहम! हालांकि और पुत्र हैं किंतु तुम्हारे हुमायूँ के समान हमें किसी पर भी प्रेम नहीं है। यह संसार में अद्वितीय है। इसकी कार्यशैली में इसकी बराबरी और कोई नहीं कर सकता। मैं अपने प्रिय पुत्र हुमायूँ के लिए ही इस राज्य और संसार की इच्छा रखता हूँ, दूसरों के लिए नहीं!’
गुलबदन बेगम ने लिखा है- ‘बादशाह ने उसी दिन से मुर्तजाअली करमुल्ला की परिक्रमा आरम्भ की। यह परिक्रमा बुधवार से करते हैं किंतु बादशाह ने दुःख और घबराहट में मंगलवार से ही आरम्भ कर दी। हवा बहुत गरम थी तथा बादशाह का मन बहुत घबराया हुआ था। बादशाह ने परिक्रमा के दौरान प्रार्थना की कि हे अल्लाह! यदि प्राण के बदले प्राण दिया जाता हो तब मैं, बाबर अपनी अवस्था और प्राण हुमायूँ को देता हूँ। उसी दिन बादशाह फिर्दौस-मकानी मांदे हो गए और हुमायूँ ने स्नान करके बाहर आकर दरबार किया। लगभग दो-तीन महीने बादशाह पलंग पर ही रहे।’
इस बीच हुमायूँ कालिंजर चला गया। जब बादशाह का रोग बढ़ा, तब हुमायूँ को बुलाने के लिए आदमी भेजे गए। हुमायूँ कालिंजर से वापस आगरा आ गया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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