आगरा पर अधिकार करने के बाद बाबर कई तरह की कठिनाइयों में घिर गया। फिर भी उसने रापरी, बयाना और ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। कन्नौज की तरफ से आकर एकत्रित हुए अफगान विद्रोहियों को भी भगा दिया तथा इटावा एवं धौलपुर के विरुद्ध सैनिक अभियान आरम्भ कर दिए।
बाबर ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि- ’21 दिसम्बर 1526 को एक विचित्र घटना घटी। इब्राहीम लोदी की माता बुआ बेगम को किसी तरह ज्ञात हो गया कि मैं हिन्दुस्तानी बावर्चियों के हाथ का बना भोजन खाने लगा हूँ तथा मैंने चार हिन्दुस्तानी बावर्ची नियुक्त किए हैं।
उनमें से एक बावर्ची को चार परगनों का लालच देकर इब्राहीम लोदी की माता ने अपनी तरफ मिला लिया। बाबर की माता ने एक दासी के हाथों एक तोला जहर उस बावर्ची के पास भिजवाया। जब मेरे बावर्ची खाना बना रहे थे तब उस हिन्दुस्तानी बावर्ची ने सबकी निगाह बचाकर एक चीनी की प्लेट पर पतली-पतली चपातियां लगाईं और उन पर कागज की पुड़िया में से आधे से कम जहर छिड़क दिया तथा रोटियों पर रोगनदार पका हुआ मांस रख दिया।
उस बावर्ची ने शेष बचा हुआ आधा जहर आग में डाल दिया। उस दिन शुक्रवार था। मैं दोपहर बाद की नमाज पढ़ने के बाद भोजन करने बैठा। मैंने खरगोश का बहुत सा मांस बड़े शौक से खाया तथा कुछ ग्रास विष मिली हुई हिन्दुस्तानी रोटी के भी खाए। मुझे उसके स्वाद में कोई अंतर ज्ञात नहीं हुआ। मैंने कुछ तली हुई गाजरें खाने के बाद सूखा मांस खाया। इसे खाते ही मेरा जी मचलने लगा।’
बाबर ने लिखा है- ‘पहले भी एक बार सूखा मांस खाने पर मेरा जी मचलने लगा था, इसलिए मैंने सोचा कि यह उसी का प्रभाव होगा। थोड़ी ही देर में मुझे उल्टी आने लगी। मुझे लगा कि मैं दस्तरखान पर ही कै कर दूंगा। मैं बड़ी कठिनाई से उठकर आबखाने अर्थात् पानी रखने के स्थान तक जा सका।
वहाँ पहुंचकर मैंने बहुत जोर से उलटी की। मैंने भोजन के बाद कभी वमन नहीं किया था। यहाँ तक कि मदिरापान के बाद भी कभी वमन नहीं किया था। मुझे संदेह हो गया। मैंने बावर्चियों पर दृष्टि रखने के आदेश दिए तथा एक कुत्ते को बुलाकर उसे कै खिलवाई और उस पर दृष्टि रखने के आदेश दिए।
उस दिन तो कुत्ते को कुछ नहीं हुआ किंतु अगले दिन एक पहर के बाद कुत्ते की दशा बिगड़ने लगी। उसका पेट फूल गया। लोग उसे कितने ही पत्थर मारते और हिलाते-डुलाते किंतु वह न उठता। मध्याह्न तक वह उसी दशा में पड़ा रहा। तदुपरांत वह उठ खड़ा हुआ, मरा नहीं। मैंने दो सैनिकों को भी अपनी रकाबी में से भोजन खिलाया था। उन्हें भी दूसरे दिन बड़ी जबर्दस्त कै हुई। एक की दशा तो बड़ी ही खराब हो गई।’
बाबर ने लिखा है- ‘आफत आई थी किंतु कुशलतापूर्वक टल गई। अल्लाह ने मुझे नया जीवन दिकया। मैं परलोक से आ रहा हूँ। मैं अल्लाह की दया से जी रहा हूँ। मैंने आज जीवन का मूल्य समझा। मैंने सुल्तान मुहम्मद बख्शी को आदेश दिया कि वह बावरचियों पर निगरानी रखे। सैनिक उसे दारुण पीड़ा पहुंचाने के लिए ले गए। बावर्ची ने सारी घटना का वर्णन कर दिया।’
पाठकों को स्मरण होगा कि बाबर ने इब्राहीम लोदी की माता बुआ बेगम का सम्मान अपनी माता की तरह किया था और उसे अपने धन-सम्पत्ति एवं दास-दासियों सहित रहने के लिए यमुनाजी के निचले क्षेत्र में एक महल प्रदान किया था। बाबर के सेवकों द्वारा बुआ बेगम का सम्मान राजमाता की तरह किया जाता था तथा उसके एक पुत्र को भी बहुत इज्जत दी जाती थी।
संभवतः इस पुत्र की आयु बहुत कम थी। जब बाबर को ज्ञात हुआ कि शत्रु की माता बुआ बेगम को इतना सम्मान दिए जाने पर भी उसने बाबर के प्राण लेने का षड़यंत्र रचा तो बाबर के क्रोध का पार नहीं रहा। इसलिए उसने यह बात सबके सामने लाने का निश्चय किया।
बाबर ने लिखा है- ‘सोमवार को मैंने दरबार का आयोजन किया तथा मैंने आदेश दिया कि उसमें समस्त प्रतिष्ठित एवं सम्मानित लोग, अमीर एवं वजीर उपस्थित हों। उन दोनों पुरुषों तथा स्त्रियों को बुलवाकर उनसे प्रश्न किए जाएं। उन लोगों ने वहाँ सब हाल बताया। मैंने बकावल अर्थात् खाना परोसने वाले के टुकड़े-टुकड़े करवा दिए। भोजन में जहर मिलाने वाले बावर्ची अर्थात् खाना बनाने वाले की जीवित ही खाल खिंचवा ली गई। एक स्त्री को हाथी के पांव के नीचे डलवाया गया। दूसरी स्त्री को तोप के मुँह पर रखकर उड़वा दिया। बाबर ने लिखा है कि मैंने अभागिनी बुआ बेगम अर्थात् इब्राहीम लोदी की माता पर निगरानी रखने का आदेश दिया। वह अपने कुकर्म का फल भोग रही है, उसे इसका परिणाम मिल जाएगा।’
बाबर ने इस विष के प्रभाव से आने के कई उपाय किए। वह लिखता है- ‘शनिवार को मैंने एक प्याला दूध पिया। रविवार को मैंने अरक पिया जिसमें गिले मख्तूम मिली हुई थी। गिले मख्तूम एक विशेष प्रकार की मिट्टी होती है जो मुहर लगाने के काम आती थी। सोमवार को मैंने दूध पिया जिसमें गिले मख्तूम तथा तिर्याक मिला हुआ था। तिर्याक एक प्रकार की औषधि होती थी जिसके सेवन से जहर का असर कम अथवा समाप्त हो जाता था।’
बाबर इस विष के प्रभाव से बच तो गया किंतु इस घटना का बाबर के मन पर गहरा प्रभाव हुआ। अपनी परिवार को काबुल भेजे एक पत्र में बाबर ने इस घटना का विस्तार से उल्लेख करते हुए लिखा-
‘अल्लाह को धन्यवाद है कि मुझे कोई हानि नहीं हुई। मुझे आज तक यह पता नहीं था कि प्राण इतने प्यारे हो सकते हैं। इसीलिए यह कहा जाता है कि जो कोई मृत्यु के निकट पहुंच जाता है, उसे जीवन का मूल्य ज्ञात हो जाता है। जैसे ही इस भयंकर दुर्घटना का स्मरण हो जाता है, तो मेरी दशा खराब हो जाती है। यह अल्लाह की महान् कृपा है कि उसने मुझे पुनः जीवन प्रदान किया। मैं उसके प्रति किन शब्दों में कृतज्ञता प्रकट कर सकता हूँ। यद्यपि यह दुर्घटना इतनी भयंकर है कि शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता फिर भी मैंने पूरी घटना का विस्तार से उल्लेख कर दिया है।’
बाबर ने इब्राहीम की माता बुआ बेगम यूनूस अली तथा ख्वाजगी असद नामक मुगल अधिकारियों को सौंप दी। उन लोगों ने बुआ बेगम की समस्त नगदी एवं अन्य सम्पत्ति पर अधिकार कर लिया तथा उसकी दास-दासियों को छीन लिया। बुआ बेगम को अब्दुर्रहीम शगावल नामक सैनिक अधिकारी की निगरानी में रख दिया गया।
बाबर के आदेश से बुआ बेगम तथा उसके पुत्र को अत्यधिक सम्मान दिया जाता था किंतु इस घटना के बाद बुआ बेगम को आगरा में रखना उचित नहीं था। इसलिए 3 जनवरी 1527 को बुआ बेगम को कामरान के पास भेज दिया गया। बाबर ने बुआ बेगम के बारे में केवल इतना ही लिखा है किंतु बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम ने हुमायूंनामा में लिखा है कि बुआ बेगम ने काबुल में आत्महत्या कर ली।
उस समय कामरान की नियुक्ति कांधार में थी, संभव है कि कामरान ने बुआ बेगम को कांधार की बजाय काबुल में रखने के आदेश दिए थे। गुलबदन ने यह भी लिखा है कि बाबर ने जहर मिली हुई रोटी का टुकड़ा उस बावर्ची को भी खिलाया था जिसने जहर मिलाया था। इसके प्रभाव से बावर्ची अंधा-बहरा हो गया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता