बदायूं का गवर्नर इल्तुतमिश जो किसी समय बुखारा के बाजार में गुलाम के रूप में बेचा गया था, जब भारत का सुल्तान बन गया तो मुल्तान का शासक कुबाचा, गजनी का शासक यल्दूज तथा बंगाल का शासक अलीमर्दान इल्तुतमिश के शत्रु हो गए। दिल्ली के कुछ विद्रोही सरदार इन शत्रुओं के साथ हो गए।
पिछले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक के तुर्की अंग-रक्षकों का सरदार तथा कुछ कुतुबी एवं मुइज्जी सरदार नहीं चाहते थे कि इल्तुतमिश सुल्तान बने। इसलिए वे दिल्ली के आस-पास अपनी सेनाएँ एकत्रित करने लगे। इल्तुतमिश को उनकी विद्रोही गतिविधियों के बारे में समय रहते ही पता चल गया। इसलिए इल्तुतमिश ने उन पर अचानक आक्रमण करके उन्हें बुरी तरह परास्त किया। उनमें से बहुतों को मौत के घाट उतार दिया तथा उनकी शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया। इस प्रकार इल्तुतमिश ने राजधानी दिल्ली को आंतरिक रूप से सुरक्षित बना लिया।
आरामशाह तथा इल्तुतमिश के संघर्ष का लाभ उठाकर दो-आब के कई हिन्दू शासक भी स्वतन्त्र हो गये।
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इल्तुतमिश ने राजधानी में अपनी स्थिति सुदृढ़़ करके दो-आब के विद्रोही हिन्दुओं की ओर ध्यान दिया। उसने बदायूँ, कन्नौज तथा बहराइच पर आक्रमण करके वहाँ के शासकों का दमन किया। कछार के प्रान्त पर भी उसने अपनी सत्ता स्थापित कर ली। इसके बाद उसने बहराइच को जीत कर वहाँ पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।
इल्तुतमिश ने अवध पर भी आक्रमण किया तथा उसे अपनी सल्तनत में मिला लिया परन्तु सम्भवतः तिरहुत को अपने राज्य में नहीं मिला पाया। इल्तुतमिश ने बनारस तथा तराई क्षेत्र के तुर्क-सरदारों एवं हिन्दू-राजाओं को परास्त करके उन्हें अपना आधिपत्य स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।
इल्तुतमिश के गद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ख्वारिज्म के शाह ने गजनी पर आक्रमण करके उस पर अपना अधिकार कर लिया। इस पर गजनी का सुल्तान यल्दूज गजनी से भागकर लाहौर आ गया। लाहौर से उसने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। इल्तुतमिश पहले से ही इस विपत्ति का सामना करने के लिए तैयार था। उसने अपनी सुसज्जित सेना के साथ दिल्ली से प्रस्थान कर दिया और ई.1215 में तराइन के मैदान में यल्दूज को बुरी तरह परास्त किया। यल्दूज को बंदी बनाकर बदायूँ के दुर्ग में भेज दिया गया जहाँ कुछ समय बाद यल्दूज की हत्या कर दी गई। इस प्रकार इल्तुतमिश के एक बड़े प्रतिद्वंद्वी का नाश हो गया।
इल्तुतमिश द्वारा यल्दूज को पराजित किए जाने के कुछ समय उपरान्त मुल्तान तथा उच के शासक कुबाचा ने लाहौर पर अधिकार कर लिया। इस पर इल्तुतमिश ने एक सेना लाहौर भेजी। इस सेना ने कुबाचा को परास्त कर दिया। कुबाचा ने इल्तुतमिश का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। इसी समय ख्वारिज्म के शाह का पुत्र जलालुद्दीन मंगोलों के आक्रमण से त्रस्त होकर भारत आ गया तथा उसने उसने कुबाचा के राज्य को लूटकर उसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इससे कुबाचा की शक्ति तथा प्रतिष्ठा को बड़ा धक्का लगा। थोड़े ही दिनों बाद, मंगोल सेना ने भी मुल्तान पर आक्रमण किया तथा कुबाचा को बड़ी क्षति पहुँचाई।
ई.1221 में मंगोलों ने चंगेज खाँ के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया। चंगेज खाँ तूफान की भाँति मध्यएशिया से चला था। जब उसने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया, तब वहाँ के शाह का पुत्र जलालुद्दीन भारत भाग आया परन्तु मंगोल उसका पीछा करते हुए भारत तक आ पहुँचे। इस समय जलालुद्दीन ने सिन्धु नदी के तट पर अपना खेमा लगा रखा था। जलालुद्दीन ने इल्तुतमिश से शरण मांगी।
इल्तुतमिश जानता था कि दिल्ली में ख्वारिज्म के शहजादे जलालुद्दीन की उपस्थिति इल्तुतमिश के तुर्की अमीरों पर अच्छा प्रभाव नहीं डालेगी। इसलिये उसने जलालुद्दीन के पास कहला भेजा कि दिल्ली की जलवायु उसके अनुकूल नहीं होगी और उसके दूत को मरवा दिया। निराश होकर जलालुद्दीन सिन्ध की ओर बढ़ा और कुबाचा के राज्य में लूटमार करता हुआ फारस की ओर चल दिया परन्तु मार्ग में ही उसकी हत्या कर दी गई। जलालुद्दीन का अंत हुआ देखकर मंगोल भी लौट गये। इस प्रकार इल्तुतमिश ने अपनी दूरदर्शिता से जलालुद्दीन तथा मंगोलों से भी अपने राज्य की रक्षा कर ली।
खिलजी तुर्क भी इन दिनों सीमान्त प्रदेशों में बड़ा उपद्रव मचा रहे थे। इस प्रकार कुबाचा की स्थिति बड़ी संकटापन्न हो गई। इस स्थिति से लाभ उठा कर ई.1227 में इल्तुतमिश ने मुल्तान पर आक्रमण कर दिया तथा मुल्तान पर अपना अधिकार जमा लिया।
ख्वारिज्म के शहजादे जलालुद्दीन तथा मंगोल सम्राट चंगेज खाँ के भारत से चले जाने के बाद इल्तुतमिश ने दिल्ली से उच के लिए प्रस्थान किया। वह कुबाचा को दण्डित करना चाहता था। इस पर कुबाचा ने अपनी सेना तथा कोष के साथ भक्कर के दुर्ग में शरण ली। तीन महीने के घेरे के बाद उच पर इल्तुतमिश का अधिकार हो गया। कुबाचा इतना आंतकित हो गया कि उसने अपने प्राणों की रक्षा के लिए सिन्धु नदी के उस-पार भाग जाने का निश्चय किया। जब कुबाचा एक नाव में बैठ कर सिन्धु नदी पार कर रहा था तब नाव उलट गई और कुबाचा नदी में डूब कर मर गया। इस प्रकार इल्तुतमिश के दूसरे बड़े प्रतिद्वन्द्वी का भी नाश हो गया।
अब इल्तुतमिश को पंजाब में अपने दो शत्रुओं का दमन करना था। एक थे विद्रोही खोखर और दूसरा था खोखरों का मित्र सैफुद्दीन करलुग जो ख्वारिज्म के शाह की ओर से पश्चिमी पंजाब में नियुक्त था। इल्तुतमिश ने खोखरों पर आक्रमण करके उनकी शक्ति को छिन्न-भिन्न करना आरम्भ किया और उनके राज्य के कुछ भाग पर अधिकार जमा लिया।
लाहौर तो इल्तुतमिश के अधिकार में पहले से ही था। पंजाब के अन्य प्रमुख नगर- स्यालकोट, जालन्धर, नन्दना आदि भी इल्तुतमिश के अधिकार में आ गये। इल्तुतमिश ने खोखरों के गांव तुर्की अमीरों को जागीर में दे दिये। इससे इल्तुतमिश के राज्य की पश्चिमी सीमा सुरक्षित हो गई।
पश्चिम की ओर से निबट कर इल्तुतमिश ने अपने राज्य के पूर्व की ओर अर्थात् बंगाल की ओर रुख किया। इस समय तक अलीमर्दान मर चुका था और हिसामुद्दीन इवाज, सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी की उपाधि धारण करके बंगाल में शासन कर रहा था। ई.1225 में इल्तुतमिश ने बंगाल पर आक्रमण किया। गयासुद्दीन ने इल्तुतमिश की अधीनता स्वीकार कर ली और बिहार पर अपना अधिकार त्याग दिया। इल्तुतमिश संतुष्ट होकर लौट आया, परन्तु उसके दिल्ली पहुँचते ही गयासुद्दीन ने फिर से स्वयं को बंगाल का स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया और बिहार पर भी अधिकार कर लिया।
इस पर ई.1226 में इल्तुतमिश ने अपने पुत्र नासिरुद्दीन महमूद को बंगाल पर आक्रमण करने भेजा जो उन दिनों अवध का गवर्नर था। नासिरुद्दीन ने गयासुद्दीन खिलजी को मारकर लखनौती पर अधिकार कर लिया। इल्तुतमिश ने नासिरुद्दीन को बंगाल का गवर्नर बना दिया। ई.1229 में नासिरुद्दीन के हटते ही बंगाल में फिर से विद्रोह की चिन्गारी फूट पड़ी। इस पर इल्तुतमिश ने ई.1230 में पुनः बंगाल पर अधिकार कर लिया और अल्लाउद्दीन जैनी को वहाँ का गवर्नर नियुक्त किया। उसने बंगाल के विद्रोहियों को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता