भारत के मध्यकाल का इतिहास रजिया के बिना पूरा नहीं होता। जहाँ इतिहास बहुत से दीर्घकालिक सुल्तानों के बारे में बहुत कम जानता है, वहीं रजिया के अल्पकालीन शासन के उपरांत भी इतिहास में रजिया के बारे में बहुत अच्छी जानकारी मिलती है। जन मानस में भी रजिया के सम्बन्ध में बहुत सी बातें व्याप्त हैं। ई.1983 में रजिया पर हिन्दी भाषा में सिनेमा का निर्माण किया गया। ई.2015 में रजिया पर टीवी सीरियल का निर्माण हुआ।
रजिया की कब्रगाह
रजिया की हत्या कैथल में हुई किंतु उसकी कब्रगाह तीन भिन्न स्थानों- कैथल, दिल्ली तथा टोंक में स्थित होने के दावे किये जाते हैं। उसकी वास्तविक कब्रगाह के बारे में काई पुरातात्विक अथवा ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलते हैं। दिल्ली की कब्रगाह तुर्कमान गेट के पास शाहजहां बाद में बुलबुलेखाना में है। कैथल में एक मस्जिद के निकट रजिया तथा अल्तूनिया की कब्रगाहें बताई जाती हैं। ई.1938 में भारत के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो कैथल आये। उन्होंने कैथल में रजिया की कब्रगाह का दौरा किया तथा उसके जीर्णोद्धार के लिये कुछ राशि भी उपलब्ध कराई। उनके निर्देश पर भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक भी कैथल आये किंतु द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ जाने के कारण इस कब्र का जीर्णोद्धार नहीं किया जा सका।
महिलाओं में शासकीय प्रतिभा की कमी नहीं है
तेरहवीं सदी आज बहुत पीछे छूट चुकी है। उसके बाद भारत में बहुत सी स्त्री शासक हुई हैं जिन्होंने निरंकुश राजतंत्रीय व्यवस्था में तथा लोकशासित प्रजातंत्रीय व्यवस्था में सफलता पूर्वक शासन किया है तथा इस बात को सिद्ध करके दिखाया है कि स्त्रियों में शासन करने की प्रतिभा नैसर्गिक रूप से वैसी ही है जैसी कि पुरुषों में हुआ करती है। यहाँ तक कि भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा श्रीलंका आदि दक्षिण एशियाई देशों में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। रजिया की विफलता से केवल इतना सिद्ध होता है कि तेरहवीं सदी की मध्यकालीन मानसिकता वाले उस युग की बर्बर राजनीति में स्त्रियों के लिए कोई स्थान नहीं था, वे चाहे कितनी भी योग्य क्यों न हों।
चमकती रहेगी रजिया सितारे की तरह
सदियां आयेंगी और जायेंगी किंतु रजिया सुल्तान इतिहास में चमकीले सितारे की तरह सदैव चमकती रहेगी।