4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वाधीनता विधेयक प्रस्तुत किया गया। 15 जुलाई को वह बिना किसी संशोधन के हाउस ऑफ कॉमन्स द्वारा और 16 जुलाई को हाउस ऑफ लॉर्ड्स द्वारा पारित कर दिया गया। 18 जुलाई 1947 को उस पर ब्रिटिश सम्राट के हस्ताक्षर हो गए। इस प्रकार भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 अस्तित्व में आया।
भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की कुल 20 धाराएं थीं, जिनका सारांश इस प्रकार है-
(1) ब्रिटिश सरकार द्वारा सत्ता हस्तांतरित करने से 15 अगस्त 1947 से भारत और पाकिस्तान दो स्वाधीन सम्प्रभु अधिराज्य (डोमिनियन) अस्तित्व में आएंगे।
(2) पाकिस्तान में सिंध, बलूचिस्तान, उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त, असम का सिलहट जिला, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी बंगाल होंगे। शेष प्रांत भारतीय अधिराज्य में रहेंगे। सत्ता हस्तांतरण की तिथि को देशी राज्यों से परमोच्चता विलोपित हो जायेगी तथा देशी राज्यों एवं ब्रिटिश ताज के मध्य समस्त संधियां एवं व्यवस्थाएं समाप्त हो जायेंगी। देशी रियासतें अपना निर्णय स्वयं लेंगी कि वे भारत में सम्मिलित हों या पाकिस्तान में, या फिर दोनों से अलग रहें अथवा किसी या किन्ही अलग समूह या समूहों का निर्माण करें।
(3) पाकिस्तान और भारत दोनों को अपना संविधान लागू करने की स्वतंत्रता होगी। ब्रिटिश राष्ट्र-मण्डल की सदस्यता दोनों देशों के लिए स्वैच्छिक होगी। 15 अगस्त के बाद दोनों अधिराज्यों में ब्रिटिश संसद का अधिकार क्षेत्र समाप्त हो जाएगा।
(4) दोनों अधिराज्य अपना पृथक् अथवा संयुक्त गवर्नर जनरल रख सकेंगे।
(5) 15 अगस्त से ब्रिटिश सरकार का भारत सचिव पद सेवामुक्त हो जाएगा। सेना का आवंटन दोनों अधिराज्यों में होगा, हिज मेजस्टी की सेना विसर्जित हो जाएगी।
भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में भारत एवं पाकिस्तान को ‘सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन अधिराज्य’ (कम्पलीट सोवरीन डोमिनियन स्टेट) का दर्जा दिया गया किंतु डोमिनियन का वास्तविक अर्थ- ‘ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के अधीन स्वायत्तशासी देश’ (सेल्फ गवर्निंग मेम्बर नेशन ऑफ द कॉमनवैल्थ) होता है। सम्पूर्ण-प्रभुत्व सम्पन्न राष्ट्र को ‘अधिराज्य‘ (डोमिनियन) नहीं कहा जाता। ब्रिटिश क्राउन चाहता था कि आजाद भारत को डोमिनियन स्टेटस दिया जाए किंतु भारतीय नेता चाहते थे कि भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न राज्य के रूप में स्वतंत्रता दी जाए। इसलिए इस अधिनियम में दोनों शब्दों के एक साथ प्रयोग किया गया था।
लॉर्ड माउंटबेटन को इस उद्देश्य के साथ भारत भेजा गया था कि वे 20 जून 1948 तक भारत को स्वतंत्र करके अंग्रेज अधिकारियों एवं उनके परिवारों को भारत से निकालकर इंग्लैण्ड ले आएंगे किंतु माउण्टबेटन ने जिस तेज गति से काम किया था उसके कारण यह तिथि खिसककर और नजदीक आ गई थी और अब भारत की आजादी एवं विभाजन में एक माह से भी कम समय रह गया था।
इस कारण देश में अफरा-तफरी, मार-काट और पलायन का सिलसिला तेज हो गया। हालांकि लोगों को यह ठीक से पता नहीं था कि भारत की सीमाएं कहाँ समाप्त होंगी और पाकिस्तान कहाँ से आरम्भ होगा!
एन. वी. गाडगिल ने अपनी पुस्तक ‘गवर्नमेंट फ्रॉम इनसाइड’ में लिखा है-
‘देश में मुख्य राजनीतिक शक्ति ‘इण्डियन नेशनल कांग्रेस’ थी और इसके नेता गण थके हुए लोग थे। उनको पिछले चालीस वर्ष के निरन्तर संघर्ष से होने वाले लाभ पर विश्वास नहीं था। उनको भविष्य के विषय में भी भरोसा नहीं था। वे इस बात से डरते थे कि यदि कुछ अधिक खींचा-तानी की गई तो सब-कुछ टूट-फूट कर विनष्ट हो जाएगा। परिणाम यह था कि पुराने बहादुर संघर्ष करने वाले भी समझौता करने पर तैयार थे और प्राप्त को खतरे में डालने की इच्छा नहीं रखते थे।‘
इस कारण भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में जो भी प्रावधान किए गए, उन्हें भारतीय नेताओं ने चुपचाप स्वीकार कर लिया। बात-बात पर हल्ला मचाने वाले नेता इस समय दम साधे पड़े थे। वे जानते थे कि इस समय सत्ता का हस्तांतरण ही नहीं होने वाला है, अपितु सत्ता की मलाई भी बंटने वाली है। जिसके जितना हाथ आ सके, शांति के साथ ले लो।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता