Thursday, November 21, 2024
spot_img

अध्याय – 55 – भारत के प्रमुख वैज्ञानिक – वराहमिहिर

वराहमिहिर अथवा वरःमिहिर ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। वराहमिहिर ने अपने ग्रंथ पंचसिद्धान्तिका में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वराहमिहिर बचपन से मेधावी थे।

अपने पिता आदित्य दास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर उन्होंने इन्हीं विषयों में व्यापक शोध किया। समय-मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना उनके द्वारा किए गए कार्यों में सम्मिलित माने जाते हैं। वराहमिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनसामान्य के लिए उपयोगी बनाना था।

जीवनी

वराहमिहिर का जन्म ई.499 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। यह परिवार उज्जैन के निकट कपित्थक (कायथा) नामक गांव का निवासी था। उनके पिता आदित्य दास सूर्य-भगवान के भक्त थे। उन्होंने ही वराहमिहिर को ज्योतिष विद्या सिखाई। कुसुमपुर (पटना) जाने पर वराहमिहिर अपने काल के महान खगोलज्ञ और गणितज्ञ आर्यभट्ट से मिले।

उनसे मिली प्रेरणा से वराहमिहिर ने ज्योतिष विद्या और खगोल ज्ञान को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया और वे उज्जैन आ गए जो उस समय शिक्षा का बड़ा केंद्र था। गुप्त शासन के अन्तर्गत वहाँ कला, विज्ञान और संस्कृति के अनेक गुरुकुल फलफूल रहे थे। इस कारण देश भर से विद्यार्थी एवं विद्वान उज्जैन आते थे।

वराहमिहिर के ज्योतिषज्ञान से प्रभावित होकर गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त (द्वितीय) ने उन्हें अपने दरबार के नवरत्नों में सम्मिलित किया। वराहमिहिर ने ईरान एवं यूनान आदि देशों की यात्रा की।

वराहमिहिर के ग्रन्थ

वराहमिहिर ने ई.550 के आसपास कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं जिनमें पंचसिद्धांतिका, लघुजातक, बृहज्जातक, बृहत्संहिता, टिकनिकयात्रा, बृहद्यात्रा या महायात्रा, योगयात्रा या स्वल्पयात्रा, वृहत् विवाहपटल, लघु विवाहपटल, कुतूहलमंजरी, दैवज्ञवल्लभ, लग्नवाराहि आदि प्रमुख हैं। इन पुस्तकों में त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए गए हैं, जो वराहमिहिर के उच्च-स्तरीय त्रिकोणमिति ज्ञान के परिचायक हैं।

पंचसिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित पाँच सिद्धांतों का वर्णन है। ये सिद्धांत हैं- (1.) पोलिश सिद्धांत, (2.) रोमक सिद्धांत, (3.) वसिष्ठ सिद्धांत, (4.) सूर्य सिद्धांत तथा (5.) पितामह सिद्धांत। वराहमिहिर ने इन पूर्व-प्रचलित सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें लिखकर अपनी ओर से ‘बीज’ नामक संस्कार का भी निर्देश किया है, जिससे इन सिद्धांतों द्वारा परिगणित ग्रह दृश्य हो सकें। उन्होंने फलित ज्योतिष के लघुजातक, बृहज्जातक तथा बृहत्संहिता नामक तीन ग्रंथ लिखे।

ज्योतिष सम्बन्धी अपनी पुस्तकों के बारे में वराहमिहिर ने लिखा है- ‘ज्योतिष विद्या एक अथाह सागर है और हर कोई इसे आसानी से पार नहीं कर सकता। मेरी पुस्तक एक सुरक्षित नाव है, जो इसे पढ़ेगा वह उसे पार ले जायेगी।’ इस पुस्तक को अब भी ज्योतिष विद्या के ग्रन्थों में ग्रन्थरत्न माना जाता है। बृहत्संहिता में वास्तुविद्या, भवन-निर्माण-कला, वायुमंडल की प्रकृति, वृक्षायुर्वेद आदि विषय सम्मिलित हैं।

वैज्ञानिक विचार तथा योगदान

वराहमिहिर वेदों के ज्ञाता थे किंतु वह अलौकिक में आंखे बंद करके विश्वास नहीं करते थे। उनकी चिंतन-पद्धति वैज्ञानिक जैसी थी जो अंध-विश्वास करने की बजाय शोधपरक ज्ञान में विश्वास करता है। अपने पूर्ववर्ती वैज्ञानिक आर्यभट्ट की तरह उन्होंने भी कहा कि पृथ्वी गोल है। वे विश्व के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने कहा कि कोई ऐसी शक्ति है जो चीजों को जमीन के साथ चिपकाये रखती है।

आज इसी शक्ति को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। वराहमिहिर का मानना था कि पृथ्वी गतिमान नहीं है। वराहमिहिर का कहना था कि यदि पृथ्वी घूम रही होती तो आकाश में उड़ते हुए पक्षी पृथ्वी की गति की विपरीत दिशा में (पश्चिम की ओर) अपने घोंसले में उसी समय वापस पहुँच जाते।

वराहमिहिर ने पर्यावरण विज्ञान (इकोलोजी), जल विज्ञान (हाइड्रोलोजी), भूविज्ञान (जिआलोजी) के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की। उनका कहना था कि पौधे और दीमक जमीन के नीचे के पानी को इंगित करते हैं। संस्कृत व्याकरण में दक्षता और छंद पर अधिकार के कारण उन्होंने स्वयं को एक अनोखी शैली में व्यक्त किया।

अपने विशद ज्ञान और सरस प्रस्तुति के कारण उन्होंने खगोल जैसे शुष्क विषयों को भी रोचक बना दिया जिससे उन्हें बहुत ख्याति मिली। उनकी पुस्तक पंचसिद्धान्तिका (पांच सिद्धांत), बृहत्संहिता, बृहज्जात्क (ज्योतिष) ने उन्हें फलित ज्योतिष में वही स्थान दिलाया है जो राजनीति दर्शन में कौटिल्य का तथा व्याकरण में पाणिनि का है।

त्रिकोणमिति

निम्ननिखित त्रिकोणमितीय सूत्र वराहमिहिर ने प्रतिपादित किये हैं-

sin2 x + cos2 x = 1

sinx = cos(π /2) – x

(1 – cos 2x)/2 = sin2 x

वराहमिहिर ने आर्यभट्ट (प्रथम) द्वारा प्रतिपादित ‘ज्या सारणी’ को और अधिक शुद्ध बनाया।

अंकगणित

वराहमिहिर ने शून्य एवं ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया।

संख्या सिद्धान्त

वराहमिहिर ने ‘संख्या-सिद्धान्त’ नामक एक गणित ग्रन्थ भी लिखा जिसके बारे में बहुत कम ज्ञात है। इस ग्रन्थ का एक छोटा अंश ही प्राप्त हुआ है। इसमें उन्नत अंकगणित, त्रिकोणमिति के साथ-साथ कुछ अपेक्षाकृत सरल संकल्पनाओं का भी समावेश है।

क्रमचय-संचय

वराहमिहिर ने वर्तमान समय में पास्कल त्रिकोण (Pascal’s triangle) के नाम से प्रसिद्ध संख्याओं की खोज की। इनका उपयोग वे द्विपद गुणाकों (Binomial Coefficients) की गणना के लिये करते थे।

प्रकाशिकी

वराहमिहिर का प्रकाशिकी में भी योगदान है। उन्होंने कहा है कि परावर्तन कणों के प्रति-प्रकीर्णन (Back & Scattering) से होता है। उन्होंने अपवर्तन की भी व्याख्या की है।

मृत्यु

ई.587 में वराहमिहिर की मृत्यु हुई।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source