Wednesday, December 25, 2024
spot_img

15. इन्द्र ने दिति के गर्भ के उनन्चास टुकड़े कर दिए!

पिछली कथा में हमने चर्चा की थी कि अदिति के पुत्र इन्द्र को मारने के लिए अदिति की बहिन दिति ने एक तेजस्वी पुत्र की कामना की तथा अपने पति को प्रसन्न करके उससे एक तेजस्वी गर्भ प्राप्त कर लिया। महर्षि कश्यप ने दिति को तेजस्वी पुत्र प्राप्त करने के लिए पुंसवन व्रत करने का उपदेश दिया। तदनुसार दिति विगत कई सौ सालों से पुंसवन व्रत का पालन कर रही थी।

जब दिति का तेजस्वी गर्भ बढ़ने लगा तो दिति के अत्यन्त दीप्तिमान अंगों को देखकर अदिति को बड़ा दुःख हुआ। उसने अपने मन में सोचा कि यदि दिति के गर्भ से इन्द्र के समान महाबली पुत्र उत्पन्न होगा तो निश्चय ही मेरा पुत्र निस्तेज हो जाएगा।

चिन्ता-ग्रस्त अदिति ने अपने पुत्र इन्द्र से कहा इस समय दिति के गर्भ में तुम्हारा शत्रु पल रहा है। अतः ऐसा कोई प्रयत्न करो कि गर्भस्थ शिशु नष्ट हो जाए। दिति का वह गर्भ मेरे हृदय में शूल के समान चुभ रहा है। अतः किसी उपाय से तुम उसे नष्ट कर दो।

जब शत्रु बढ़ जाता है तब वह राजयक्ष्मा रोग की भांति, नष्ट नहीं हो पाता है। इसलिए बुद्धिमान मनुष्य का कर्तव्य है कि वह ऐसे शत्रु को अंकुरित होते ही नष्ट कर डाले। चतुर राजनीतिज्ञ वही है जिसे शत्रु के घर की एक-एक बात का पता हो।

अपनी माता की बात मानकर इन्द्र अपनी सौतेली माता दिति के पास गया। कपट से भरे हुए इन्द्र ने ऊपर से मधुर किन्तु भीतर से विषभरी वाणी में विनम्रतापूर्वक दिति से कहा- ‘हे माता! व्रत के कारण आप अत्यन्त दुर्बल हो गयी हैं अतः मैं आपकी सेवा करने के लिए आया हूँ।’

जिस प्रकार बहेलिया हिरन को मारने के लिए हिरन की सी भोली सूरत बनाकर उसके पास जाता है, वैसे ही देवराज इन्द्र भी कपट-वेष धारण करके व्रतपरायणा दिति के व्रत-पालन की त्रुटि पकड़ने के लिए उसकी सेवा करने लगा।

एक दिन कपटी इन्द्र ने दिति से कहा- ‘माता मैं आपके चरण दबाऊँगा, क्योंकि बड़ों की सेवा करने से मनुष्य अक्षय गति प्राप्त कर लेता है।’

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

ऐसा कहकर इन्द्र दिति के दोनों चरण पकड़कर दबाने लगा। इन्द्र द्वारा चरण दबाए जाने से दिति को बहुत सुख मिला और उसे नींद आने लगी। उस दिन वह पैर धोना भूल गयी और खुले बालों से ही सो गई। दिति को नींद के वशीभूत देखकर इन्द्र योगबल से अत्यन्त सूक्ष्म रूप धारण करके दिति के उदर में प्रवेश कर गया। इन्द्र ने अपने वज्र से दिति के गर्भस्थ बालक के सात टुकड़े कर डाले। तब वे सातों टुकड़े सूर्य के समान तेजस्वी सात कुमारों में परिणत हो गए।

वज्र के आघात से गर्भस्थ शिशु रोने लगे। तब दानव-शत्रु इन्द्र ने उनसे ‘मा रुद’ अर्थात् ‘मत रोओ’ कहा। फिर इन्द्र ने उन सातों टुकड़ों के सात-सात टुकड़े और कर दिये। इस प्रकार वे उनन्चास कुमार बन गए और पुनः जोर-जोर से रोने लगे। उन सब ने हाथ जोड़कर इन्द्र से कहा- ‘देवराज! तुम हमें क्यों मार रहे हो? हम तो तुम्हारे भाई हैं।’

इन्द्र ने मन-ही-मन सोचा कि निश्चय ही यह सौतेली माँ दिति के व्रत का परिणाम है कि वज्र से मारे जाने पर भी इनका विनाश नहीं हुआ। ये एक से अनेक हो गए, फिर भी उदर की रक्षा हो रही है। इसमें संदेह नहीं कि ये अवध्य हैं, इसलिए इन्द्र ने विचार किया कि ये देवता हो जाएं। इस प्रकार इन्द्र ने सौतेली माता के पुत्रों से शत्रु-भाव त्यागकर उन्हें ‘सोमपायी देवता’ बना लिया।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

जब दिति के गर्भ के बालक देवराज इन्द्र द्वारा किए गए वज्र-प्रहार से आहत होकर रो रहे थे, उस समय इन्द्र ने इन गर्भस्थ बालकों को ‘मा रुद’ कहकर चुप कराया था, इसलिए ये बालक आगे चलकर ‘मरुद्गण’ नाम से प्रसिद्ध हुए।

इन्द्र द्वारा अपने गर्भ को विकृत किया गया जानकर दिति जाग गई। उसने अत्यंत क्रोध में भरकर अपनी बहिन अदिति तथा उसके पुत्र इन्द्र को शाप दिया। दिति ने इन्द्र से कहा- ‘तुमने छलपूर्वक मेरा गर्भ छिन्न-भिन्न किया है। इसलिए तेरा राज्य भी शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा। जिस प्रकार अदिति ने गुप्त पाप के द्वारा मेरे गर्भ को नष्ट करवाया है, उसी प्रकार उसके पुत्र भी क्रमशः उत्पन्न होते ही नष्ट हो जायेंगे और वह पुत्र-शोक से चिन्तित होकर कारावास में रहेगी।’

कश्यप ऋषि ने दिति को शांत करते हुए कहा- ‘देवी! तुम क्रोध मत करो। तुम्हारे ये उनचास पुत्र मरुद् नामक देवता होंगे, जो इन्द्र के मित्र बनेंगे। तुम्हारा शाप अट्ठाईसवें द्वापर-युग में सफल होगा। वरुणदेव ने भी अदिति को शाप दिया है। इन दोनों शापों के संयोग से मनुष्य योनि में जन्म लेकर देवकी के रूप में उत्पन्न होगी और कारवास में बंद होकर अपने पुत्रों के लिया रोया करेगी! इस प्रकार यह अपने द्वारा किए गए कठोर कर्म का फल भोगेगी।’

इस पौराणिक कथा से अनुमान लगाया जा सकता है कि दिति के गर्भ से उनन्चास पुत्रों के जन्म लेने की यह कथा वस्तुतः प्रकृति की किसी बड़ी घटना का उल्लेख है जिसमें सृष्टि में वायु का प्राकट्य हुआ। चूंकि इन्द्र बादलों का देवता है तथा वायु बादलों को उड़ाकर नष्ट कर देता है इसलिए वायु को इन्द्रहंता माना जाना था किंतु इन्द्र ने वायु को देवता बना लिया। अर्थात् इन्द्र की चतुराई से वायु बादलों के सहायक बन गए जो बादलों को एक स्थान से उड़ाकर दूसरे स्थान तक ले जाने में सहायता करते हैं।

कुछ ग्रंथों में यह कथा थोड़े से अंतरों के साथ मिलती है। इन ग्रंथों के अनुसार इन्द्र ने दिति को अपनी सेवा से प्रसन्न कर लिया किंतु दिति इन्द्र के मनोभावों को ताड़ गई। इसलिए पुत्र-प्राप्ति से दस वर्ष पूर्व दिति ने इन्द्र से कहा- ‘मैं तेरी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हूँ। मेरे गर्भ में तेरा हंता पल रहा है किंतु जब वह उत्पन्न होगा तो मैं उससे कहूंगी कि वह तेरा वध नहीं करे।’

एक दिन दिति पायताने की ओर सिर करके सो गयी। इन्द्र ने उसे ऐसी अपवित्र स्थिति में सोते हुए देखा तो इन्द्र ने दिति के गर्भ में प्रवेश करके गर्भ में पल रहे शिशु के सात टुकड़े कर डाले। बालक के चिल्लाने पर दिति जाग गयी। उसने इन्द्र से पूछा कि तूने मेरे गर्भ के टुकड़े क्यों किए? इस पर इन्द्र ने विनीत भाव से कहा- ‘माता! आप अशुचिता पूर्वक पायताने पर सिर रखकर सो रही थीं। इसलिए आपके गर्भ के टुकड़े किए गए हैं।’

इन्द्र की यह बात सुनकर दिति ने लज्जित होकर इस कर्म का परिमार्जन करने की प्रार्थना की। तब इन्द्र ने उसके दोष का परिमार्जन कर दिया।

दिति ने इन्द्र से प्रार्थना की- ‘मेरे गर्भ से सात दिव्य रूपधारी बेटे जन्म लें जो मारुत कहलाएं क्योंकि गर्भ को काटते हुए इन्द्र ने ‘मा रूद्’ (रो मत) कहा था। इनमें से चार पुत्र इन्द्र के अधीन रहकर चारों दिशाओं में विचरण करें। दो बालक क्रमशः ब्रह्मलोक तथा इन्द्रलोक में विचरण करें और सातवां पुत्र महायशस्वी ‘दिव्य वायु’ के नाम से विख्यात हो।’ इन्द्र ने दिति की यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। इस प्रकार इन ग्रंथों में सात मरुद्गण का उल्लेख मिलता है जबकि बहुत से हिन्दू धर्म-ग्रंथों में उनन्चास मरुद्ों का उल्लेख मिलता है। रामचरित मानस में भी गोस्वामीजी ने लंका दहन के प्रसंग में लिखा है- ‘हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास!’ अर्थात् ईश्वर की प्रेरणा से लंका को जलाने के लिए उनन्चास प्रकार के मरुत चलने लगे।

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source