लंदन से बैरिस्ट्री की परीक्षा में संसार भर में प्रथम स्थान पर रहने के कारण सरदार वल्लभ भाई के लिए ऑफर था कि वे बम्बई हाईकोर्ट में जज बन जाएं किंतु ऐसा करने से उन्हें निर्दोष भारतीयों को अंग्रेजी कानून के अनुसार सजा देनी पड़ती। इसलिए जज नहीं बने वल्लभभाई! उन्होंने हाईकोर्ट में जज बनने की बजाय अहमदाबाद में प्रैक्टिस करने का निर्णय लिया!
13 फरवरी 1913 को वल्लभभाई भारत लौट आये। वे आत्म-विश्वास से भरे हुए थे तथा नये सिरे से कोई काम आरम्भ करने से पहले समस्त सम्भावनाओं को टटोल लेना चाहते थे। इसलिये उन्होंने बम्बई पहुंचकर, बम्बई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सर बेसिल स्कॉट से भेंट की।
स्कॉट ने उन्हें देखा तो देखता ही रह गया। महंगे लकदक सूट, अत्यंत आकर्षक फैल्ट हैट में एक हिन्दुस्तानी बैरिस्टर बहुत महंगा सिगार पी रहा था। उसकी हर अदा अंग्रेजों को मात देने वाली थी। लंदन रिटर्न वल्लभभाई अच्छी तरह जानते थे कि एक अंग्रेज न्यायाधीश से कैसे बराबरी के स्तर पर मिला जा सकता है। स्कॉट ने उनकी धारा-प्रवाह अंग्रेजी, बैरिस्ट्री में प्रथम स्थान और तेज-तर्रार भाव-भंगिमा को देखते हुए उन्हें बम्बई उच्च न्यायालय में न्यायाधीश का पद स्वीकार करने का अनुरोध किया।
वल्लभभाई ने विनम्रतापूर्वक इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और कहा कि वे स्वयं अपनी प्रैक्टिस करेंगे। इस काल में अंग्रेजों के सरकारी कार्यालय में लिपिक बन जाना भी बहुत बड़ी बात हुआ करती थी किंतु करमसद जैसे छोटे से गांव के किसान के लड़के ने बम्बई हाईकोर्ट के जज की नौकरी ठुकरा दी, ऐसा कार्य कोई बिरला ही कर सकता था। अंग्रेजों द्वारा सताए जा रहे भारत के निर्दोष लोगों से प्रेम करने के कारण ही जज नहीं बने वल्लभभाई!
लंदन से बैरिस्टर बनकर आने वाले युवक उन दिनों बम्बई में प्रैक्टिस किया करते थे। किंतु वल्लभभाई ने अहमदाबाद को अपनी कर्मभूमि बनाने का निश्चय किया जो उनके पैतृक गांव करमसद से केवल 80 किलोमीटर दूर था। खेड़ा की सेशन कोर्ट भी अहमदाबाद में थी। इस क्षेत्र में वल्लभभाई के बहुत से पुराने परिचित रहते थे, इसलिये वल्लभभाई को काम का कोई अभाव नहीं रहने वाला था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता