कैबीनेट मिशन ने भारत की आजादी के लिए जो योजना बनाई थी, उसमें एक ऐसी अंतरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव किया गया था जिसमें समस्त सदस्य हिन्दू हों। वायसराय के निमंत्रण पर नेहरू की अंतरिम सरकार का गठन हुआ।
लॉर्ड वैवेल ने कैबीनेट मिशन के प्रस्तावों के अनुसार 2 सितम्बर 1946 को दिल्ली में अंतरिम सरकार का गठन करवाया। इसमें केवल कांग्रेसी नेता शामिल हुए। इस सरकार में जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया। साथ ही सरदार पटेल, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, एम. आसफ अली, सी. राजगोपालाचारी, शरतचंद्र बोस, डॉ. जॉन मथाई, सरदार बलदेवसिंह, सर शफाअत अहमद खाँ, जगजीवनराम, सैयद अली जहीर ओर कोवेसजी होरमुसजी भाभा को मंत्री बनाया गया।
पाँच पद स्थानापन्न रखे गए जो कि मुस्लिम लीग के लिए थे। कांग्रेस ने तीन गैर-मुस्लिम लीगी मुसलमानों को मंत्री बनाया था, यह मुस्लिम लीग के लिए किसी भी परिस्थिति में सह्य नहीं हुआ।
जिन्ना ने घोषणा की- ‘वायसराय ने मुस्लिम लीग और मुसलमानों पर जबर्दस्त चोट की है किंतु मुझे विश्वास है कि भारत के मुसलमान दृढ़ता और साहस से इस आघात को झेल लेंगे। इस अंतरिम सरकार में अपने लिए न्यायपूर्ण और सम्मानजनक भागीदारी हासिल करने में असफल रहने से उन्हें सबक मिलेगा।
….. मैं अभी कहता हूँ कि जो कदम उन्होंने उठाया है, उसमें न तो कोई बुद्धिमानी दिखाई है और न ही राजनीतिज्ञता का परिचय दिया है। इसके खतरनाक और गंभीर परिणाम निकल सकते हैं। ऊपर से उन्होंने तीन मुसलमानों को नामजद करके हमारे आहत मन को और अधिक आहत किया है। जबकि उन्हें पता है कि उन्हें मुसलमान-भारत का सम्मान और विश्वास हासिल नहीं है।’
कांग्रेस द्वारा अंतरिम सरकार की शपथ लेने की पूर्व संध्या पर 1 सितम्बर 1946 को बम्बई साम्प्रदायिक दंगों से थर्रा उठा।
सेंडहर्स्ट रोड पर मुसलमानों के घरों पर काले झण्डे लहराने लगे। कर्फ्यू लगा दिया गया, सेना बुला ली गई परन्तु एक रात्रि तक चले हिंसा के अनुष्ठान में 35 लोगों की जान ले ली गईं और 175 व्यक्ति घायल हो गए। एक सप्ताह तक बम्बई में छिटपुट दंगे चलते रहे। 10 सितम्बर तक 200 नागरिकों की जान जा चुकी थी। कराची में भी हिंसा हुई किंतु लीग के मुख्यमंत्री शेख गुलाम हुसैन द्वारा प्रसारित शांति और सहिष्णुता की अपील से शहर के मुसलमानों को अपने जज्बात थामने में मदद मिली।
सिंध के अंग्रेज मुख्य सचिव का कहना था- ‘कलकत्ता की खौफनाक घटनाओं के कारण एक पक्ष तो मनहूस नाराजगी लिए बैठा है और दूसरा बेवकूफाना घबराहट का शिकार है।’
मुख्य सचिव की रिपोर्ट के अनुसार दोनों समुदाय खुफिया तौर पर हथियारबंद होने में लगे हैं। 2 सितम्बर 1946 को जवाहरलाल ने अंतरिम सरकार का गठन किया तथा 7 सितम्बर को देश की जनता के नाम प्रसारित संदेश में नेहरू ने कहा- ‘इस प्राचीन धरती पर एक नई सरकार बनी है। हम इसे अंतरिम या अस्थाई सरकार कहते हैं। ….. हमारी यह प्राचीन और प्यारी भूमि एक बार फिर तकलीफों और दुःखों से निकल कर अपनी अस्मिता प्राप्त कर रही है। एक बार फिर युवावस्था प्राप्त करके उसकी आंखों में साहस की चमक आई है। एक बार फिर उसने स्वयं में विश्वास और अपनी मंजिल के दर्शन किए हैं।’
सरकार के शपथ लेने के कुछ दिना बाद अंतरिम सरकार के गैर-मुस्लिमलीगी मंत्री सर शफात अहमद खाँ को शिमला में मुस्लिम लीग के कट्टरपंथियों ने चाकू से सात बार गोद डाला। वैवेल द्वारा बार-बार प्रयास किए जाने पर तथा नेहरू द्वारा अपने मंत्रिमण्डल से गैर-मुस्लिम लीगी मुसलमान मंत्रियों एवं सुभाष चंद्र बोस के भाई शरत्चंद्र बोस को मंत्रिमण्डल से हटा दिए जाने पर मुस्लिम लीग ने भी अंतरिम सरकार में शामिल होने की स्वीकृति दे दी ताकि कांग्रेस सरकार को परेशान किया जा सके।
मुस्लिम लीग की तरफ से लियाकत अली, आई. आई. चुंदरीगर, अब्दुल रब निश्तर और जोगेन्द्रनाथ मण्डल मंत्री बनाए गए। जिन्ना ने जोगेन्द्रनाथ को संभवतः इसलिए मुस्लिम लीग की ओर से मंत्री बनवाया ताकि कांग्रेस यह दावा न करे कि वह देश के सम्पूर्ण हिन्दुओं का नेतृत्व करती है।
2 नवम्बर को मुस्लिम लीग के सदस्य अंतरिम सरकार में सम्मिलित होने के लिए सौगंध लेने के लिए वायसराय भवन में गए। नेहरू भी वहाँ पर गए थे। इनकी मोटर गाड़ी भवन के बाहर खड़ी थी और कहा जाता है कि मुसलमान भीड़ ने मोटर गाड़ी को आग लगा दी।
इसी दिन लियाकत अली इत्यादि मुसलमान नेता केन्द्रीय विधान सभा में भाग लेने के लिए आए जवाहर लाल की गाड़ी को मुसलमान भीड़ ने घेर लेने का यत्न किया और यदि उस समय कुछ हिन्दू युवक नेहरू को बचाने लिए उस मुस्लिम भीड़ पर आक्रमण न कर देते, तो नेहरू पर क्या बीतती, कहना कठिन है।
उसी शाम दिल्ली के सदर बाजाद में मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं ने गाड़ियां रोक-रोक कर हिन्दुओं को मुसलमानों से पृथक् करके मारना आरम्भ कर दिया। हिन्दू भी उनके विरोध में उतर आए। इससे कई घण्टे तक मार-काट की स्थिति रही।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता