अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को अंतरिम सरकार का निमंत्रण
लॉर्ड वैवेल अब कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच चल रही लड़ाई से निबटने का प्रयास करते हुए थक चुका था। वह न केवल कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं से छुटकारा पाना चाहता था अपितु भारत से भी छुटकारा पाना चाहता था। इस कारण वैवेल ने जवाहर लाल नेहरू को अंतरिम सरकार का निमंत्रण भिजवाया।
कांग्रेस ने कैबीनेट मिशन प्लान को तो स्वीकार कर लिया था किंतु उसमें अंतरिम सरकार के गठन का जो प्रस्ताव किया गया था, उसे अस्वीकार कर दिया था। अतः मुस्लिम लीग ने दावा किया कि कांग्रेस को छोड़कर भारत की अंतरिम सरकार बनाई जाए किंतु वायसराय ने देश की सबसे बड़ी पार्टी को छोड़कर अंतरिम सरकार बनाने से इन्कार कर दिया।
जब 27 जुलाई 1946 को मुस्लिम कौंसिल ने बम्बई-बैठक में कैबीनेट मिशन योजना को अस्वीकार कर दिया तब कांग्रेस ने दूसरी चाल चली। उसने 8 अगस्त 1946 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई तथा उसमें प्रस्ताव पारित किया कि कांग्रेस कैबीनेट मिशन की दीर्घकालिक योजना एवं अंतरिम सरकार योजना दोनों को पूरी तरह मानती है।
वायसराय लॉर्ड वैवेल चाहता था कि कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों दलों के सहमत होने पर अंतरिम सरकार का गठन हो किंतु मुस्लिम लीग, अंतरिम सरकार में शामिल हाने के लिए सहमत नहीं हुई। अगस्त 1946 में प्रधानमंत्री एटली ने वायसराय लॉर्ड वैवेल को व्यक्तिगत तार भेजकर निर्देशित किया कि मुस्लिम लीग के बिना ही अंतरिम सरकार का गठन किया जाए।
लॉर्ड वैवेल ने जवाहरलाल नेहरू को सरकार बनाने का निमंत्रण भिजवा दिया जिसमें कहा गया कि- ‘मेरे सामने अंतरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव रखें। …… यह आपको तय करना है कि आप इसके बारे में मि. जिन्ना से चर्चा करना चाहेंगे या नहीं। ….. मुझे यकीन है कि आप मुझसे सहमत होंगे कि गठजोड़ सरकार ही इस नाजुक समय में भारत की नियति को सबसे अच्छी तरह निर्देशित कर सकती है। हमारे पास समय बहुत कम है।’
नेहरू ने 10 अगस्त 1946 को वर्धा से वायसराय को एक पत्र लिखकर उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया तथा 13 अगस्त 1946 को जिन्ना को पत्र लिखकर उससे सरकार में शामिल होने का अनुरोध किया तथा उससे मिलने का समय मांगा।
जिन्ना ने जवाहरलाल के पत्र का जवाब इस प्रकार भिजवाया-
‘न तो मुझे यह पता है कि आपके और वायसराय के बीच क्या खिचड़ी पकी है और न ही मुझे आपके बीच हुए किसी समझौते की जानकारी है।
……. अगर इसका मतलब यह है कि वायसराय ने आपको एक कार्यकारी परिषद गठित करने की जिम्मेदारी सौंपी है
….. और वे आपकी राय स्वीकार करने और उसके आधार पर कदम उठाने के लिए तैयार हो गए हैं तो यह स्थिति स्वीकार करना मेरे लिए संभव नहीं है।
…… लेकिन अगर मुझसे मिलकर आप हिन्दू-मुसलमान सवाल पर गतिरोध हल करना चाहें तो मैं आपसे आज शाम छः बजे मिलने के लिए तैयार हूँ।’
अंत में 15 अगस्त 1946 को जिन्ना के निवास पर नेहरू और जिन्ना की वार्ता हुई। इस वार्ता में जिन्ना ने मुस्लिम लीग के सदस्यों को नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल करने से मना कर दिया। इस भेंट के बाद नेहरू ने वैवेल को सूचित किया कि नहेरू ने जिन्ना को आश्वासन दिया है कि संविधान सभा में किसी प्रमुख साम्प्रदायिक मसले पर तब तक कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी जब तक दोनों पक्षों का बहुमत उस पर सहमत न हो।
किसी भी विवादास्पद मुद्दे को संघीय अदालत के पास फैसले के लिए भेजा जाएगा और हालांकि कांगेस प्रांतों के घटक-समूहों का विचार नापसंद करती है और केन्द्र के तहत स्वायत्त प्रांतों के बंदोबस्त को प्राथमिकता देती है, लेकिन अगर प्रांतों की इच्छा होगी तो वह घटक-समूह बनाने का विरोध नहीं करेगी।
जवाहरलाल नेहरू को जिन्ना द्वारा की गई ‘ना’ का एक ही अर्थ था- ‘बंगाल में सीधी कार्यवाही के माध्यम से हिन्दुओं का कत्ल।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता