भारतीय सेना का विभाजन – भावी देशों के लिए वैकल्पिक सरकारें
जब भारत का विभाजन करके भारत और पाकिस्तान नामक दो देश बनाने का समय आया तो दोनों देशों के बीच न केवल भूमि का बंटवारा करने का निश्चय किया गया अपितु सरकारी तंत्र से लेकर, रेल, वायुयान आदि सभी कुछ बांटने की प्रक्रिया आरम्भ की गई। भारतीय सेना का विभाजन सबसे कष्टकारी प्रक्रिया थी।
भारत में चुनी हुई वैधानिक संसद के अस्तित्व में नहीं होने से संविधान सभा को ही संसद तथा संविधान सभा का दोहरा दर्जा दिया गया। विभाजन से पहले भारत में जो अंतरिम सरकार चल रही थी उसमें से लॉर्ड माउंटबेटन ने दो वैकल्पिक सरकारों का निर्माण किया जो 15 अगस्त को अस्तित्व में आने वाले दोनों देशों के प्रशासन को संभाल सकें। ई.1935 के भारत सरकार अधिनियम में सुविधापूर्ण सुधार करके भारत में ई.1947 से ई.1950 तक तथा पाकिस्तान में ई.1947 से 1956 तक संविधान का काम लिया गया।
भारतीय सेना का विभाजन
अंग्रेजों के समय भारत की सेना विश्व की विशाल सेनाओं में से एक थी। भारतीय सेना न केवल प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध में अपितु समय-समय पर होने वाले चीन युद्ध, बॉक्सर युद्ध आदि में भी लड़ने जाती रहती थीं। युद्ध समाप्ति के बाद भी भारत की सेना में लगभग 25 लाख सैन्य अधिकारी एवं सैनिक थे किंतु युद्ध के कारण इंग्लैण्ड सरकार की आर्थिक स्थिति खराब हो जाने से भारत की सेनाओं में भारी कटौतियां की गईं।
यही कारण था कि ई.1947 में भारत विभाजन के समय भारत की सेनाओं में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, गोरखा, एंग्लोइण्डियन एवं आदिवासी आदि समस्त जातियों के सैन्य अधिकारियों एवं सैनिकों की संख्या केवल 12 लाख के आसपास रह गई थी। इनका भी बंटवारा किया गया। हिन्दू, सिक्ख एवं ईसाई सैनिकों के लिए अपने देश के चयन का निर्णय करना बहुत आसान था। उन्हें भारत में ही रहना था क्योंकि जिन्ना के पाकिस्तान में उनके लिए जगह नहीं थी किंतु मुसलमान सैनिकों के लिए यह निर्णय बहुत हृदय विदारक था। देश-भक्ति के जज्बे से ओत-प्रोत हजारों मुस्लिम सैनिक भारत को ही अपना देश मानते आए थे, वे इस देश के लिए जीने-मरने की कसमें खाते आए थे, अब कुछ नेताओं की जिद पर वे अपने देश को छोड़कर जाने का निर्णय इतनी आसानी से कैसे कर सकते थे!
इसलिए यद्यपि अधिकांश मुस्लिम सैनिक अपना भग्न-हृदय लेकर पाकिस्तान जाने के लिए तैयार हो गए तथापि बहुत बड़ी संख्या में मुस्लिम सैनिकों ने भारत में रहने का संकल्प व्यक्त किया। भारत माता ने इन मुस्लिम सैनिकों को अपना पुत्र मानकर सहर्ष सीने से लगा लिया। यह इस्लाम के नाम पर उन्माद फैलाने वाले मुहम्मद अली जिन्ना और उसके साथियों की करारी हार थी।
पंजाब बाउण्ड्री फोर्स का गठन
देश के विभाजन से पहले ही सरकार ने पंजाब बाउण्ड्री फोर्स का गठन किया। इसके लिए जारी आदेश में कहा गया कि पंजाब में शांति बनाए रखने के लिए दोनों सरकारों ने 1 अगस्त 1947 से विशेष सैनिक कमाण्ड स्थापित करने का फैसला किया है जो सियालकोट, गुजरांवाला, शेखपुरा, लायलपुरा, मौंटमुगरी, लाहौर, अमृतसर, गुरदासपुर, होशियारपुर, जालंधर, फिरोजपुर और लुधियाना के जिलों में काम करेगा।
दोनों सरकारों की सहमति से इसका फौजी कमाण्डर मेजर जनरल रीस नियुक्त किया गया है। भारत की ओर से ब्रिगेडियर दिगम्बरसिंह तथा पाकिस्तान की ओर से कर्नल अयूब खान सलाहकार के रूप में रहेंगे। 15 अगस्त के बाद दोनों नई सरकारों की फौज पर इन क्षेत्रों में मेजर जनरल रीस का नियंत्रण रहेगा जो सुप्रीम कमाण्डर और सम्मिलित सुरक्षा कौंसिल की मारफत दोनों सरकारों के प्रति जिम्मेदार रहेगा।
यदि आवश्यकता समझी गई तो दोनों सरकारें बंगाल में भी ऐसे संगठन खड़े करने से नहीं हिचकेंगी। पंजाब बाउण्ड्री फोर्स में 50 हजार सैनिक नियुक्त किए गए। पंजाब बाउण्ड्री फोर्स के अधिकांश सैनिक चौथी हिन्दुस्तानी डिवीजन के थे। ये सैनिक द्वितीय विश्वयुद्ध के समय इरिट्रिया, पश्चिमी रेगिस्तान और इटली, इसालियन पूर्वी अफ्रीका, अलामियेन, मोंटे केसीनो आदि देशों में मोर्चे संभाल चुके थे।
कर्मचारियों के लिये विशेष रेल
उच्च सरकारी अधिकारियों, सैनिक अधिकारियों, चपरासियों, रसोइयों, बाबुओं, हरिजनों आदि से एक फॉर्म भरवाकर उन्हें भारत सरकार में रहने या पाकिस्तान सरकार में जाने का विकल्प उपलब्ध कराया गया। पाकिस्तान जाने वाले कर्मचारियों और उनके साथ जाने वाले कागजों के लिये रेलवे ने 3 अगस्त 1947 से दिल्ली से करांची तक विशेष रेलगाड़ियों का संचालन किया। इन रेलगाड़ियों को लौटती बार में पाकिस्तान से भारत आने वाले कर्मचारियों को लेकर आना था।
उस समय तक रेल गाड़ियां भयानक सांप्रदायिक उन्माद की चपेट में आ चुकी थीं। इसलिये स्टेट्समैन ने आम जनता से अपील की कि आम जनता गाड़ियों का उपयोग न करे। स्टेट्समैन को आशा थी कि कर्मचारियों की रेलगाड़ियां सुरक्षित रहेंगी किंतु स्टेट्समैन की उम्मीद से परे पाकिस्तान से कर्मचारियों को लेकर आने वाली रेलगाड़ियां भी सांप्रदायिक हमलों की चपेट में आयीं।
भारतीय सेना का विभाजन, भावी देशों के लिए वैकल्पिक सरकारें, पंजाब बाउण्ड्री फोर्स का गठन तथा सरकारी कर्मचारियों के लिए विशेष रेलगाड़ियों का संचालन आदि ऐसे उपाय थे जिनसे भारत के विभाजन की प्रक्रिया को त्वरित एवं सुगम बनाया जाना था किंतु पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों को देश का बंटवारा करवाकर भी संतोष नहीं हुआ, वे भारत के हिन्दुओं का खून बहाकर ही आखिरी संतोष प्राप्त करना चाहते थे क्योंकि इसके बाद उन्हें कभी ऐसा करने का सौभाग्य मिलने वाला नहीं था।
पाकिस्तान की तरफ रहने वाले मुसलमान पाकिस्तान की तरफ से भारत की तरफ आने वाली रेलगाड़ियों में बैठे हिंदुओं की धरती छीनकर भी खुश नहीं हुए, इसलिए उन्होंने रेलों में बैठे हिंदुओं को भी काटना आरम्भ कर दिया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता