गजनी के सुल्तानों एवं अमीरों को भारत पर आक्रमण करते हुए लगभग डेढ़ सौ साल हो गए थे। इस बीच रावी नदी के पूर्वी किनारों तक का पंजाब पूरी तरह गजनी के अधीन हो चुका था और गजनी के सेनापति पंजाब की नदियों को पार करके, यमुना नदी के मैदानों से लेकर मध्य-गंगा के मैदानों तक धावे मार रहे थे। फिर भी वे भारत में सिंध एवं पंजाब के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में अपने पैर स्थाई रूप से नहीं टिका पा रहे थे।
शाकम्भरी नरेश अर्थात् अजमेर के चौहान शासक गजनी के आक्रांताओं में किसी अजेय चट्टान की तरह डट गए थे। ई.724 के लगभग खलीफा वली अब्दुल मलिक की सेना व्यापारियों के वेष में सिंध के मार्ग से अजमेर तक चढ़ आई। उस समय दुर्लभराज (प्रथम) अजमेर का शासक था। खलीफा की सेना ने अजमेर दुर्ग पर अधिकार कर लिया किंतु कुछ ही समय पश्चात् दुर्लभराज के पुत्र गूवक ने अजमेर का दुर्ग वापस छीन लिया। तभी से चौहान-शक्ति खलीफा की आँखों की किरकिरी बनी हुई थी।
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अजमेर के शासक गोविंदराज (द्वितीय) तथा वीर्यराम ने महमूद गजनवी को दो बार परास्त किया। वीर्यराम का उत्तराधिकारी चामुण्डराज हुआ। उसने शक मुसलमानों के स्वामी हेजामुद्दीन को पकड़ लिया। चामुण्डराज के बाद ई.1075 में दुर्लभराज (तृतीय) उत्तराधिकारी हुआ। उसने मुसलमान सेनापति शहाबुद्दीन को परास्त किया।
दुर्लभराज (तृतीय) के बाद विग्रहराज (तृतीय) अजमेर का शासक हुआ। उसने दिल्ली के तोमर शासक के साथ मिलकर मुस्लिम आक्रांताओं के विरुद्ध एक संघ बनाया तथा हांसी, थाणेश्वर और नगरकोट से मुस्लिम गवर्नरों को मार भगाया। इस विजय के बाद दिल्ली में एक स्तम्भ लेख लगावाया गया जिसमें कहा गया है कि विन्ध्याचल से हिमालय तक के क्षेत्र से म्लेच्छों को निकाल बाहर किया गया जिससे आयावर्त एक बार फिर से पुण्यभूमि बन गया।
अजमेर के चौहान शासक पृथ्वीराज (प्रथम) का भी गजनी के तुर्कों से युद्ध हुआ। इस युद्ध में पृथ्वीराज (प्रथम) ने गजनी के सेनापति तुगातिगीन को परास्त करके भगा दिया।
पृथ्वीराज (प्रथम) के बाद ई.1113 के लगभग अजयदेव अजमेर का राजा हुआ। ई.1115 में बहरामशाह गजनी का शासक हुआ। उसने 6 दिसम्बर 1118 को मुहम्मद बाहलीम को अपने हिन्दुस्तानी प्रान्तों का प्रान्तपति नियुक्त किया। ई.1119 में बाहलीम ने सुल्तान बहराम से विद्रोह करके स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया।
बाहलीम ने दक्षिण की ओर बढ़कर नागौर पर आक्रमण किया। उस समय नागौर, अजमेर के चौहान शासक अजयराज के अधीन था। राजा अजयराज चौहान को अपने कई क्षेत्र गजनी के शासक बहराम तथा उसके गवर्नर बाहलीम के हाथों खोने पड़े। बाहलीम ने नागौर दुर्ग में कुछ निर्माण करवाए तथा अपना खजाना और सेना नागौर में केन्द्रित कर लिए।
इस प्रकार भारत में सिंध तथा पंजाब से बाहर गजनी के मुसलमानों का यह पहला राज्य स्थापित हो गया। हालांकि कुछ ही समय बाद बाहलीम ने गजनी से विद्रोह कर दिया इसलिए गजनी के सुल्तान बहराम शाह ने बाहलीम पर चढ़ाई करके उसे मार डाला।
बाहलीम से छुटकारा पाकर बहरामशाह ने इब्राहीम अलवी के पुत्र सालार हुसैन को अपने हिन्दुस्तानी प्रांतों का गवर्नर बनाया। इन प्रांतों में नागौर भी सम्मिलित था। राजा अजयदेव ने ई.1123 में अजमेर पर चढ़कर आए मुस्लिम आक्रांताओं को परास्त कर दिया तथा उनका बड़ी संख्या में संहार किया।
ई.1133 के आसपास अजयदेव का पुत्र अर्णोराज, अजयदेव का उत्तराधिकारी हुआ। अर्णोराज को आनाजी भी कहते हैं। उसने गजनी के गवर्नर सालार हुसैन को परास्त करके नागौर दुर्ग फिर से अपने अधीन कर लिया। वह ई.1155 तक शासन करता रहा।
अजमेर संग्रहालय की खण्ड प्रशस्ति से विदित होता है कि आनाजी ने उन तुर्कों को पराजित किया जो मरुस्थल को पार करके अजमेर तक आ पहुँचे थे। इस आक्रमण की तिथि ई.1135 होनी चाहिए। गजनी की सेना हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ पुष्कर को नष्ट करके अजमेर नगर के बाहर तक आ पहुँची। अर्णोराज ने उन पर विजय प्राप्त करके उनका संहार किया। जिस स्थल पर यवनों का रक्त गिरा था उस स्थल को शुद्ध करने के लिए वहाँ उसने एक हवन किया तथा उस स्थान पर आनासागर झील बनवाई।
अजमेर के प्रतापी शासक विग्रहराज (चतुर्थ) को बीसलदेव भी कहा जाता है। वह ई.1152-63 तक अजमेर का राजा रहा। उसका शासन न केवल अजमेर के इतिहास के लिए अपितु सम्पूर्ण भारत के इतिहास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उसने गजनी के मुसलमानों से अनेक युद्ध लड़े। वीसलदेव के समय गजनी के मुसलमानों की सेना वव्वेरा गांव तक पहुंच गई जो अब राजस्थान के शेखावाटी अंचल में स्थित है।
राजा वीसलदेव उस सेना को परास्त करके गजनी के मुसलमानों को आर्यावर्त्त से बाहर निकालने के लिए उत्तर की तरफ बढ़ा।
दिल्ली से अशोक का एक स्तंभ-लेख मिला है जिस पर वीसलदेव के समय में एक और लेख उत्कीर्ण किया गया। यह लेख 9 अप्रेल 1163 का है तथा इसे शिवालिक स्तंभ-लेख कहते हैं। इस शिलालेख के अनुसार वीसलदेव ने देश से मुसलमानों का सफाया कर दिया तथा अपने उत्तराधिकारियों को निर्देश दिया कि वे मुसलमानों को अटक नदी के उस पार तक सीमित रखें।
वीसलदेव के राज्य की सीमाएं शिवालिक पहाड़ी, सहारनपुर तथा उत्तर प्रदेश तक प्रसारित थीं। चौहान-शिलालेखों के अनुसार जयपुर और उदयपुर जिले के कुछ भाग वीसलदेव चौहान के राज्य के अंतर्गत थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि अपनी शक्ति और बल से विग्रहराज ने म्लेच्छों का दमन करके आर्यावर्त्त को वास्तव में आर्यभूमि बना दिया था। जिस मुस्लिम शासक हम्मीर को परास्त करने का उल्लेख ‘ललितविग्रह’ नाटक में किया गया है, वह गजनी का अमीर खुशरूशाह था।
शिवालिक लेख के अनुसार वीसलदेव के राज्य की सीमाएं हिमालय से लेकर विंध्याचल पर्वत तक विस्तृत थीं। इस पूरे क्षेत्र से उसने मुस्लिम गवर्नरों को परास्त करके अटक के उस पार तक मार भगाया था। प्रबन्धकोष उसे तुरुष्कों का विजेता बताता है। इस काल में दिल्ली केवल ठिकाणा बन कर रह गई जिसकी राजधानी अजमेर थी। इतिहास की पुस्तकों में उसे भारत का प्रथम चौहान सम्राट कहा गया है। उसकी विशाल सेना में एक हजार हाथी, एक लाख घुड़सवार तथा उससे भी अधिक संख्या में पैदल सिपाही थे।
इस प्रकार अजमेर के चौहान गजनी के सुल्तानों के लिए एक अलंघ्य चट्टान बन गए थे। इस चट्टान को चूर-चूर किए बिना गजनी के सुल्तानों का भारत में साम्राज्य की स्थापना का सपना कभी पूरा नहीं हो सकता था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता