Thursday, November 21, 2024
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न कांग्रेस के ही बन सके और न कम्युनिस्ट रह सके जानकी प्रसाद बगरहट्टा और मानवेन्द्रनाथ राय!

जानकी प्रसाद बगरहट्टा का परिवार मूलतः पंजाब के रेवाड़ी शहर से उठकर बीकानेर रियासत में आया था और वह डेढ़ सौ साल से बीकानेर नगर में निवास कर रहा था। इसी परिवार में 5 सितम्बर 1900 को जानकी प्रसाद बगरहट्टा का जन्म हुआ। उन्होंने ई.1916 में रेवाड़ी में कांग्रेस कमेटी की सदस्यता ली तथा हरिजनों को संगठित करने का निश्चय किया तथा। बगरहट्टा ने ‘रेवाड़ी सफाईदार और हरिजन संघ’ की स्थापना की तथा उनकी मांगों का ज्ञापन तैयार करवाकर अधिकारियों को दिलवाया। उच्च अधिकारियों ने हरिजनों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया और उन्हें अपमानित करके लौटा दिया। बगरहट्टा ने हरिजनों से आरम्भ करवाया और प्रशासन से हरिजनों की न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने, मैला ढोने की प्रथा तत्काल बन्द करने, रेवाड़ी में ड्रेनज सिस्टम का निर्माण करवाने, सामाजिक भेदभाव समाप्त करने, सफाई कर्मचारियों को पक्के मकान बनाकर देने और उनके संघ को ट्रेड यूनियन के रूप में मान्यता देने आदि मांगें रखीं। इस पर भी अधिकारी टस से मस नहीं हुए।

बगरहट्टा ने रेवाड़ी के सफाईदारों और हरिजनों से सरकार को हड़ताल का अल्टीमेटम दिलवाया तथा निर्धारित तिथि को आधी रात से हड़ताल आरम्भ करवा दी। इस पर सरकार ने हरिजन नेताओं की गिरफ्तारियां कीं। अनेक हरिजन भूख हड़ताल पर बैठ गये। इस आन्दोलन की खबरें आसपास के क्षेत्रों में पहुंचने लगीं और महेन्द्रगढ़ एवं गुड़गांव आदि स्थानों से लोग रेवाड़ी पहुंचने लगे। पंजाब की प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने रेवाड़ी के इस आन्दोलन को खुला समर्थन दिया। हड़ताल के दौरान बगरहट्टा भूमिगत हो गये। हड़ताल के कारण रेवाड़ी शहर गन्दगी से पट गया। दूसरी और भूख हड़ताल के कारण जेल में अनेक आन्दोलनकारियों की तबियत बिगड़ने लगी। एक आन्दोलनकारी कालूरामू की भूख हड़ताल के पाचवें दिन जेल में मृत्यु हो गई। हड़ताली की मौत की खबर दूर-दूर तक आग की तरह फैल गई। रेवाड़ी से बाहर भी आन्दोलन फैलने की खबरें आने लगी। उसकी शवयात्रा में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। बगरहट्टा अब खुलकर सामने आ गये और उन्होंने रामू की मौत की शोक सभा में आगे के आन्दोलन की रूपरेखा बनाई। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के दबाव और स्थानीय जनता के आक्रोश को देखते हुए सरकार ने हड़ताली कर्मचारियों से वार्ता करने के लिए एक समझौता समिति का गठन किया परंतु प्रशासन ने एक पखवाड़े तक इस वार्ता को गंभीरता से नहीं लिया। इस पर बगरहट्टा ने जेल से ही आह्वान किया कि जनता, सरकार को टैक्स न दे। इस पर बगरहट्टा की उपस्थिति में सरकार एवं आंदोलनकारियों के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार सफाई कर्मचारी और हरिजन संघ को ट्रेड यूनियन की मान्यता दे दी गई। सभी हड़तालियों को बिना शर्त रिहा कर दिया गया और वित्तीय मामलों को सुलझाने के लिये एक समिति गठित करने का निश्चय किया गया।

इस समझौते पर बगरहट्टा को पंजाब प्रांतीय कांग्रेस कमेटी एवं लाला लाजपतराय, सर छोटूराम एवं फिरोज खां नूत्र आदि के बधाई संदेश मिले। थोड़े ही दिनों में रेवाड़ी में नगर पालिका के चुनाव हुए। बगरहट्टा निर्विरोध पालिकाध्यक्ष निर्वाचित हुए। वे इस पद पर दो वर्ष तक रहे और रेवाड़ी नगर का विकास करवाया। उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया। ई.1923-24 में वे कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर के गरम दल के नेताओं के सम्पर्क में आये। एम. एन. राय (मानवेन्द्रनाथ राय), अर्जुनलाल सेठी और श्रीपाद अमृत डांगे आदि से उनके घनिष्ठ सम्बन्ध बन गये। इसी दौरान वे साम्यवादी विचारधारा की तरफ झुकने लगे। उन्होंने 8 सितम्बर 1924 को एम. एन. राय को कांग्रेस में साम्यवादी विचारधारा का अधिकाधिक प्रचार करने के लिए एक खुला पत्र लिखा। बगरहट्टा का यह पत्र साम्यवादी नेताओं में चर्चा का विषय बन गया और बगरहट्टा भारत के साम्यवादियों की नजरों में चढ़ गये।

दिसम्बर 1924 में जब अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बेलगांव अधिवेशन चल रहा था, तब बगरहट्टा ने अपने कांग्रेसी सहयोगियों जोगलेकर एवं अर्जुनलाल सेठी के साथ मिलकर एम. एन. राय के नाम से अंग्रेजी में लिखी ‘अपील टू दी नेशनलिस्ट’ प्रकाशित करवाकर अधिवेशन में वितरित कर दी। एम. एन. राय की इस अपील ने कांग्रेस अधिवेशन में भारी हलचल मचा दी।

26 दिसम्बर 1925 को ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया’ की स्थापना की गई। मानवेन्द्रनाथ राय एवं अन्य लोगों के साथ बगरहट्टा को इस पार्टी के संस्थापक मण्डल का सदस्य बनाया गया। 28 दिसम्बर 1925 को इस पार्टी की केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति के चुनाव हुए जिसमें बगरहट्टा एवं एस. बी. घाटे के पार्टी के जनरल सक्रेटरी के रूप में निर्वाचित किया गया। ई.1926 में पार्टी के कलकत्ता अधिवेशन में भी इन दोनों को ही पार्टी का पुनः जनरल सेक्रेटरी चुना गया। इसी अधिवेशन में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों में रूस स्थित इण्टरनेशनल कम्युनिस्ट सेंटर जिसे ‘कामिण्टर्न’ कहा जाता था, के साथ भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के सम्बन्ध रखने को लेकर मतभेद हो गया।

ई.1926 में बगरहट्टा ने 26 वर्ष की उम्र पार की थी। इतनी छोटी उम्र में ही वे भारत की कम्युनिस्ट पार्टी में इतने महत्वपूर्ण पदों पर मनोनीत हो गए थे। यह बात अनेक वरिष्ठ नेताओं के गले नहीं उतर रही थी। वे बगरहट्टा को उन पदों से हटाने के प्रयास करने लगे। इस काम में बंगाल के अत्यन्त वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता मुजफ्फर अहमद का नाम मुख्य था। अहमद ने बगरहट्टा पर कम्युनिस्ट पार्टी में अनुशासन तोड़ने के अनेक प्रश्न तो उठाये ही, उन पर काकोरी काण्ड के प्रसिद्ध अभियुक्त क्रान्तिकारी अशफाकुल्ला खाँ, जो पुलिस से बचने के लिये अर्जुनलाल सेठी के यहाँ छिपा हुआ था को पुलिस से पकड़वाने में मदद करने का आरोप भी लगाया।

अपनी ही पार्टी के नेताओं द्वारा गंभीर, झूठे और आधारहीन आरोपों से आहत होकर युवा नेता बगरहट्टा ने 14 जुलाई 1927 को पार्टी में काम करने में असमर्थता प्रकट करते हुए पार्टी के जनरल सेक्रेटरी के पद एवं पार्टी की सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। यह घटना भारत के साम्यवादी इतिहास में महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

कम्युनिस्ट पार्टी से त्याग पत्र देकर बगरहट्टा ई.1928-29 में अपनी मूल पार्टी कांग्रेस में चले गये और ई.1934 तक अर्जुनलाल सेठी के साथ कांग्रेस में सक्रिय रहे। उन्होंने रेवाड़ी को ही अपनी कर्मभूमि बनाए रखा। ई.1930 से 1936 के बीच वे कुछ समय के लिये ‘राजस्थान स्टेट पीपुल्स कान्फ्रेंस’ के महासचिव भी रहे। अर्जुनलाल सेठी इस संस्था के अध्यक्ष थे।

जिस समय बगरहट्टा ने कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ी, उसके कुछ दिनों बाद ही ई.1930 में सुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता एम. एन. राय को रूस में कम्युनिस्ट पार्टी के इन्टरनेशनल सेंटर से, उनके परम्परागत कम्युनिस्ट विचारों के कारण, उन पर संशोधनवादी होने का आरोप लगाकर कम्युनिस्ट पार्टी से निकाल दिया गया। इस पर वे ई.1930 में रूस से भारत लौट आये। राय के भारत में आते ही अंग्रेज सरकार ने उन्हें एक पुराने केस में 6 वर्ष के लिये जेल में डाल दिया। ई.1936 में जेल से छूटने के बाद वे भी अपने समर्थकों के साथ फिर से कांग्रेस में चले आये।

बगरहट्टा के कांग्रेस में चले जाने के बावजूद भारत की अंग्रेज सरकार ने ई.1929 में बगरहट्टा पर ‘मेरठ कम्युनिस्ट षडयंत्र केस’ चलाया। पुलिस ने बगरहट्टा के रेवाड़ी स्थित घर पर छापा मारकर वहाँ से कुछ पुस्तकें और फाईलें जब्त कीं। ई.1936 में बगरहट्टा एम. एन. राय के प्रमुख सहयोगी हो गये और इन दोनों ने मिलकर कांग्रेस पार्टी में जान फूंकने के लिये सघन अभियान चलाया। इससे ये दोनों नेता कांग्रेस में फिर से प्रभावशाली बन गए। कांग्रेस के नरम दल के नेताओं ने उन्हें अपने लिये खतरे की घण्टी मानते हुए उनके खिलाफ एक विरोधी अभियान छेड़ दिया और उन्हें छद्म कम्युनिस्ट कहकर कांग्रेस में बवण्डर खड़ा कर दिया। इसी बीच दूसरे महायुद्ध के प्रति कांग्रेस की नीतियों को लेकर एम. एन. राय ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया।

ई.1940 में एम. एन. राय ने ‘रेडिकल डेमाक्रेटिक पार्टी’ की स्थापना की और अपने पुराने अखबार ‘वेनगार्ड’ का नाम बदलकर ‘रेडिकल हयूमेनिस्ट’ कर दिया जिसे हिन्दी में ‘नवमानववाद’ कहा जाता था। ई.1943-44 में एम. एन. राय ने भारत के भावी आर्थिक विकास के लिये ‘जनयोजना’ और स्वतंत्र भारत के भावी संविधान का प्रारूप तैयार कर अंग्रेज सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया। बगरहट्टा ने एम. एन. राय का इस कार्य में पूर्ण सहयोग किया। कुछ समय पश्चात् बगरहट्टा ने भी अपने सहयोगी एम. एन. राय का अनुसरण करते हुए दलहीन राजनीति करते हुए कांग्रेस पार्टी से भी किनारा कर लिया और स्वतंत्र पत्रकारिता को अपना मुख्य व्यवसाय बना लिया।

शीघ्र ही वे भारत के पत्रकार जगत में जाना-पहचाना नाम बन गए। उन्होंने ‘बोम्बे क्रॉनीकल’ जैसे सुप्रसिद्ध पत्र का सम्पादन किया। बाद में उन्होंने भारत में ‘राइटर’ एजेंसी के प्रतिनिधि के रूप में उल्लेखनीय कार्य किया।

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