खाकसारों का हमला – मुहम्मद अली जिन्ना की हत्या का प्रयास
जिस समय मुहम्मद अली जिन्ना कलकत्ता में आयोजित एक बैठक में मुस्लिम लीग के सदस्यों को यह बता रहा था कि भारत का विभाजन किस प्रकार होना संभावित है तथा उसे किस प्रकार कार्यान्वित किया जाना संभावित है, उसी समय जिन्ना की बैठक पर खाकसारों का हमला हुआ।
माउंटबेटन योजना पर विचार करने के लिए 9-10 जून 1947 को दिल्ली के इम्पीरियल होटल में ऑल इण्डिया मुस्लिम लीग की बैठक बुलाई गई। इसमें पूरे देश से चार सौ प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। लीग ने बहुत बड़े बहुमत से इस योजना को स्वीकार कर लिया। बैठक में 400 सदस्य उपस्थित थे जिनमें से केवल 10 सदस्यों ने विरोध किया तथा 390 सदस्यों ने भारत-विभाजन के प्रस्ताव का समर्थन किया।
इस बैठक में कायद-ए-आजम मुहम्मद अली जिन्ना को योजना के बुनियादी उसूलों को समझौते के रूप में स्वीकार करने का पूरा अधिकार दिया गया और योजना के बुनियादी उसूलों को मानते हुए वाजिब और न्यायसंगत ढंग से उसका पूरा ब्यौरा तैयार करने की जिम्मेदारी पूरी तरह उसी पर छोड़ दी।
जब जिन्ना होटल में बैठक कर रहा था, तभी कुछ लोगों ने विभाजन का विरोध किया। विभिन्न प्रांतों से आए हुए उग्रवादी मुसलमानों, कट्टरपंथी मुल्लाओं और पंजाब के विभाजन से होने वाले नुकसान से परेशान ताकतवर भूस्वामियों का इरादा कुछ और ही था। ये लोग मीटिंग हॉल के बाहर जमा हो गए और विभाजन योजना के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार करने लगे।
विरोध करने वाले लोग खाकसार नामक संगठन के सदस्य थे। इनके संगठन का नाम भी खाकसार था और इसके सदस्यों को भी खाकसार कहा जाता था।
खाकसार, मुसलमानों का एक उग्रवादी संगठन था। इसका संस्थापक इनायतुल्लाह खान उर्फ़ अल्लामा मशरिकी था। उसने 1930 के दशक में अविभाजित पंजाब के लाहौर नगर में खाकसार आंदोलन खड़ा किया। इस आतंकी संगठन का उद्देश्य भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के शासन से मुक्त करवाना था। इस संगठन में 50 लाख मुसलमान शामिल थे। खाकसार इस बात से नाराज थे कि जिन्ना पाकिस्तान के रूप में एक ऐसा मुल्क स्वीकार कर रहा है जिसमें पंजाब और बंगाल खण्डित रूप से शामिल होंगे।
खाकसारों में वे बड़े-बड़े व्यापारी भी शामिल थे जो कलकत्ता को अपने हिन्दू प्रतिद्वंद्वियों के हाथ में छोड़ने के विचार से भी भड़क उठते थे। इन लोगों ने ‘हमारे साथ धोखा हुआ है’ और ‘पाकिस्तान के साथ बड़ा बुरा हुआ’ कहना शुरू कर दिया। खाकसारों का हजूम तो होटल के शांत बगीचे को रौंद कर बेलचे लहराता ….. ‘जिन्ना को मारो’ चिल्लाता हुआ होटल के लाउंज में घुस गया। बैठक के हॉल की तरफ जाने वाली सीढ़ियों के आधे रास्ते पर ही लीग के नेशनल गार्ड्स ने उन्हें रोक लिया और उन्हें बलपूर्वक पीछे धकेला। कुछ लोग मीटिंग हॉल में भी घुसने में सफल रहे थे किंतु उन्हें तुरंत निकाल दिया गया।
जिन्ना इनसे बेपरवाह रहकर मीटिंग करता रहा। होटल की सबसे ऊँची मंजिल पर भी जिन्ना के नेशनल गार्ड्स और खाकसारों के बीच हाथापाई होती रही। फर्नीचर तोड़ दिया गया, खिड़कियों के कांच टूटे …… कुछ लोगों को घाव भी आए। पुलिस को आंसू गैस चलानी पड़ी, तब कहीं जाकर हंगामा शांत हुआ। खाकसारों का हमला विफल कर दिया गया।
अगले दिन के समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ- ‘जिन्ना की हत्या करने के लिए झपटने वाले खाकसारों का हमला विफल कर दिया गया तथा लगभग 50 खाकसारों को गिरफ्तार कर लिया गया।’
रहमत अली द्वारा जिन्ना पर गद्दारी का आरोप
जब मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन की योजना स्वीकार कर ली जिसमें पाकिस्तान को आधे बंगाल, आधे पंजाब एवं सिलहट जिले को छोड़कर शेष सम्पूर्ण असम से वंचित रखा गया तो कैम्ब्रिज स्थित रहमत अली के पाकिस्तान नेशनल मूवमेंट ने जिन्ना पर कौम से गद्दारी करने का आरोप लगाया-
‘मि. जिन्ना ने पूरी मिल्लत के साथ पूरी तरह से गद्दारी करके उसका सौदा कर लिया है और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए हैं। ब्रिटिश योजना स्वीकार करने की उसकी कार्यवाही से मिल्लत के सभी देशों और राष्ट्रों की बुनियाद छिन्न-भिन्न हो गई है।
दीनिया (इण्डिया) के महाद्वीप में रहने वाले उसके सभी दस करोड़ सदस्यों के मुस्तकबिल के साथ भितरघात किया गया है। …… यदि यह फैसला रद्द नहीं हुआ तो इससे पाकिस्तानी राष्ट्र का जीवन हमेशा के लिए विकलांग हो जाएगा, दीनिया में मिल्लत का वजूद मुरझा जाएगा और सारी दुनिया में बिरादरान-ए-इस्लाम की आजादी जोखिम में पड़ जाएगी। ….. हम यह जद्दोजहद अंत तक चलाएंगे।
….. न हम मैदान छोड़ेंगे और न हथियार डालेंगे। ….. हमारे ऊपर यह इल्जाम कभी नहीं लगाया जा सकेगा कि जब मिल्लत के लिए सबसे बड़ी जंग लड़ने और सबसे बड़ी गद्दारी के बीच चुनने की नौबत आई तो ….. हमने भी क्विजलिंगों के नक्शेकदम पर चलते हुए गद्दारी को चुना। …… मिल्लत जिंदाबाद। ‘
लियाकत अली और जवाहर लाल नेहरू में झगड़ा
वायसराय द्वारा विभाजन की घोषणा किए जाने के बाद 12 जून को अंतरिम सरकार के मंत्रिमण्डल की पहली बैठक हुई। इस बैठक में भारत की तरफ से इंग्लैण्ड में राजदूत नियुक्त किए जाने के निर्णय पर लियाकत अली ने जवाहरलाल नेहरू की खूब आलोचना की क्योंकि नेहरू ने अपनी बहन विजयलक्ष्मी पण्डित को इस पर नियुक्त किया था। जवाहरलाल ने भी लियाकत अली का विरोध किया।
मंत्रिमण्डल की बैठक में दोनों के बीच इतनी तीखी तकारार हुई कि माउंटबेटन ने चिल्लाकर कहा- ‘महानुभावो! यदि इस पहली चर्चा का नतीजा ही इस कदर भद्दे दृश्य में निकल रहा है तो शांतिपूर्ण विभाजन की आशा भला हम कैसे कर सकते हैं?’
इसके बाद जवाहरलाल नेहरू और जिन्ना के बीच बोल-चाल बंद हो गई और यह तब तक बंद रही जब तक कि दोनों नेता दो अलग- अलग देशों के प्रधानमंत्री नहीं बन गए।
एक ओर तो मुस्लिम लीग कांग्रेस से संघर्ष में उलझी हुई थी और दूसरी ओर खाकसारों का हमला कभी भी हो सकता था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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