कैबीनेट योजना के प्रस्तावों के तहत कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों ने संविधान सभा में भाग लेने पर अपनी सहमति दी थी किंतु बाद में कुछ बिंदुओं की व्याख्या पर दोनों दलों में विवाद हो गया। जुलाई 1946 में संविधान निर्मात्री समिति के सदस्यों का चुनाव संपन्न हुआ जिसमें कांग्रेस के 212 सदस्यों के मुकाबले मुस्लिम लीग के मात्र 73 सदस्य ही हो पाये। मुस्लिम लीग ने अपने आप को इससे अलग कर लिया। वह संविधान सभा के जाल में फंसना नहीं चाहती थी।
जिन्ना ने कहा– ‘हिंदुस्तान में गतिरोध हिन्दुस्तानियों और अंग्रेजों के बीच उतना ज्यादा नहीं। वह हिन्दू-कांग्रेस और मुसलिम-लीग के बीच है। …… जब तक पाकिस्तान मंजूर नहीं किया जाता, कुछ भी हल नहीं किया जा सकता और न हल किया जा सकेगा। …… एक नहीं दो संविधान सभाएं होंगी, एक हिन्दुस्तान का संविधान बनाने और निश्चित करने के लिए और दूसरी पाकिस्तान का संविधान बनाने और निश्चित करने के लिए। …… हम भारतीय समस्या को दस मिनट में हल कर सकते हैं, यदि मि. गांधी कह दें कि वे सहमत हैं कि पाकिस्तान होना चाहिए तथा अपनी वर्तमान सीमाओं के साथ छः प्रांतों- सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब, पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश, बंगाल और असम के बने चौथाई भारत को लेकर पाकिस्तान राज्य बनेगा।’
जिन्ना के इस वक्तव्य पर गांधीजी ने टिप्पणी की- ‘हो सकता है कि केवल कांग्रेस प्रांत और देशी नरेश ही संविधान सभा में सम्मिलित हों। मेरे विचार से यह शोभनीय और पूर्णतः तथ्यसंगत होगा।’ 9 दिसम्बर 1946 को विधान निर्मात्री समिति ने कार्य करना आरम्भ किया। डी. आर. मानकेकर ने लिखा है- ‘तनाव, निराशा एवं अनिश्चतता के वातावरण में विधान निर्मात्री समिति ने कार्य करना आरंभ किया।’
लंदन में जिन्ना पाकिस्तान को लेकर भावुक हो गया
13 दिसम्बर 1946 को जिन्ना ने लंदन के किंग्जवे हॉल में ब्रिटिश सरकार से मुस्लिम राष्ट्र के लिये भाव विह्वल अपील की- ‘पाकिस्तान में एक सौ मिलियन लोग केवल मुसलमान होंगे। भारत के उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में जो हमारी अपनी भूमि है और जहाँ हम सत्तर प्रतिशत बहुमत में हैं, में अपना एक राष्ट्र चाहते हैं। वहाँ हम अपनी जीवन शैली के अनुसार रह सकते हैं। हमें कहा गया कि तथाकथित एकीकृत भारत अंग्र्रेजों द्वारा बनाया गया है। वह तलवार के जोर पर था। उसे उसी तरह नियंत्रित रखा जा सकता है जैसे नियंत्रित रखा गया है। किसी के कहने पर भ्रमित न हों कि भारत एक है तथा वह एक क्यों नहीं रह सकता? हमसे पूछिये कि हम क्या चाहते हैं? मैं कहता हूँ कि पाकिस्तान। इसके अलावा हम कुछ नहीं चाहते।’
जवाहर लाल नेहरू ने फिर दोहराई अपनी गलती
जवाहर लाल नेहरू अत्यंत महत्वाकांक्षी राजनेता थे। वे पहले भी अनावश्यक वक्तव्य देकर अपनी महत्वाकांक्षाओं की बलिवेदी पर कैबीनेट मिशन को मृत्यु के मुख में धकेल चुके थे। इस बार उन्होंने देशी-राज्यों के शासकों के विरुद्ध वक्तव्य दे मारा। 21 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा ने नरेन्द्र मण्डल द्वारा गठित राज्य संविधान वार्ता समिति से वार्ता करने के लिए संविधान वार्ता समिति नियुक्त की। इ
सके प्रस्ताव पर जवाहरलाल नेहरू ने कहा- ‘मैं स्पष्ट कहता हूँ कि मुझे खेद है कि हमें राजाओं की समिति से वार्ता करनी पड़ेगी। मैं सोचता हूँ कि राज्यों की तरफ से हमें राज्यों के लोगों से बात करनी चाहिए थी। मैं अब भी यह सोचता हूँ कि यदि वार्ता समिति सही कार्य करना चाहती है तो उसे समिति में ऐसे प्रतिनिधि सम्मिलित करने चाहिए किंतु मैं अनुभव करता हूँ कि इस स्तर पर आकर हम इसके लिए जोर नहीं डाल सकते।’
देशी राजा चाहते तो नेहरू के इस वक्तव्य के लिए वे कांग्रेस को कड़ी सजा दे सकते थे और संविधान सभा के गठन की प्रक्रिया को निष्फल कर सकते थे किंतु देशी राज्यों के शासकों ने देश-हित की बलिवेदी पर नेहरू की गलती को नजर-अंदाज कर दिया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता