अठ्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति को कुचल दिए जाने के बाद अंग्रेज अधिकारियों ने पहले तो दिल्ली को नष्ट करने की योजना बनाई किंतु जब जॉन लॉरेंस ने दिल्ली को बचा लिया तब अंग्रेज अधिकारी लाल किले को गिराने पर उतारू हो गए। लाल किले पर खतरा देखकर चीफ कमिश्नर जॉन लॉरेंस ने कुछ अंग्रेज अधिकारियों को दिल्ली से बाहर स्थानांतरित करवा दिया तथा लाल किले को अदृश्य होने से बचा लिया!
दिल्ली अब फिर से अंग्रेजों की थी और अंग्रेज उसे जी-जान से ढहा रहे थे। अंग्रेज जाति यह सहन नहीं कर सकती थी कि भारत के बर्बर लोग दिल्ली की सड़कों पर महान् अंग्रेज जाति का रक्त गिराएं। इसलिए दिल्ली को नष्ट करने का काम आरम्भ हो गया। इसी के साथ लाल किले पर खतरा बढ़ गया।
जिन अंग्रेजों ने आगे चलकर दिल्ली में लुटियन्स जोन, इण्डिया गेट, पार्लियामेंट भवन, वायसराय भवन, सेक्रेटरिएट बिल्डिंग तथा तीनमूर्ति भवन बनवाए, उन्होंने दिल्ली के सैंकड़ों पुराने भवनों सहित लाल किले के भीतर बने अस्सी प्रतिशत भवन तोड़कर नष्ट कर दिए। लाल किले पर खतरा दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा था।
नवम्बर 1858 में जैसे ही कम्पनी सरकार समाप्त हुई और ब्रिटिश क्राउन भारत का नया स्वामी बना, वैसे ही लाल किले को ध्वस्त करने का काम आरम्भ हो गया। सबसे पहले मलिका के हमाम अर्थात् गुसलखाने तोड़े गए।
स्कॉटिश आर्चीटैक्चरल हिस्टोरियन (स्थापत्य इतिहास लेखक) जेम्स फर्ग्यूसन ने लिखा है कि लाल किले के भीतर स्पेन के विशाल शाही महल ‘एस्कोरियल’ से दोगुना क्षेत्र नष्ट कर दिया गया। बाजार के दक्षिण और पूर्व में भवनों के केंद्रीय भाग में जितना भी क्षेत्र था, उस सबको गिरा दिया गया। जो दोनों तरफ लगभग एक हजार फुट था। यहाँ शाही हरम का निवास हुआ करता था। यह स्थान यूरोप के किसी भी शाही महल से दोगुना था।
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जेम्स फर्ग्यूसन ने लिखा है कि मेरे पास लाल किले के जो पुराने देशी नक्शे हैं उनमें चार बाग सेहन दिखाए गए हैं और लगभग तेरह-चौदह अन्य सेहन हैं। इनमें से कुछ विशेष लोगों के लिए और कुछ जनसाधारण के लिए बनाए गए थे किंतु वे कैसे थे, हम कभी नहीं जान पाएंगे क्योंकि अब उनका कोई चिह्न नहीं रह गया है।
लाल किले पर खतरा कितना बड़ा था, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जॉर्ज वैगनट्राइबर ने दिल्ली गजट में लिखा है कि सबसे पहले सबसे शानदार महल ढहाए गए, जैसे ‘छोटा रंग महल’! किले के शानदार बागों विशेषकर ‘हयात बख्श बाग’ और ‘महताब बाग’ पूरी तरह नष्ट कर दिए गए ओर वर्ष के अंत में किले का केवल बीस प्रतिशत हिस्सा ही शेष बचा। यमुना की तरफ सफेद संगमरमर की बारादरियां बनी हुई थीं, उन्हें भी नष्ट कर दिया गया। समस्त सुनहरी गुम्बद और संगमरमर की फिटिंग्स वसूली एजेंटों ने उतरवा लीं।
विलियम डैलरिम्पल ने लिखा है- ‘शाहजहाँ ने दिल्ली के लाल किले में तख्ते ताउस के पीछे पर्चिनकारी का एक ऑर्फियस पैनल लगवाया था जिसे सर जोंस ने उखाड़कर टेबल टॉप बनवा लिया। यह टॉप अब भी लंदन के इण्डिया म्यूजियम में मौजूद है।’
लाल किले के भवनों के नष्ट हो जाने के साथ ही लाल किले के सलातीनों की रहस्यम दुनिया भी गायब हो गईं जिनमें सिसकियों, तन्हाइयों, बदनसीबियों और गुर्बतों के हजारों किस्से पलते थे! जब बहुत से अंग्रेज अधिकारियों ने उस विशाल दीवार को पार करके सलातीनों की कोठरियों को देखा तो वे दंग रह गए! क्या मुगलों के हजारों वंशज ऐसी गंदी और बदबूदार कोठरियों में रहा करते थे! इसे रहना नहीं सड़ना कहना अधिक उचित होगा!
अक्टूबर 1858 में जब तक पंजाब के चीफ कमिश्नर जॉन लॉरेंस को दिल्ली का प्रभार सौंपा गया, तब तक लाल किले के भीतर 80 प्रतिशत हिस्से गिराए जा चुके थे। ने भांप लिया कि लाल किले पर खतरा बहुत बड़ा है। इसलिए उसने इस विंध्वस पर रोक लगाई। उसने जामा मस्जिद और लाल किले की दीवारों को यह तर्क देकर तोड़े जाने से बचा लिया कि ये दीवारें भविष्य में अंग्रेजों के भी उतनी ही काम आएंगी जितनी कि अब तक मुसलमानों के काम आती रही हैं। फिर भी तब तक किले के भीतर बने हुए बाजारों, महलों, हवेलियों एवं मकानों में से 80 प्रतिशत भवनों को ढहाया जा चुका था।
हरम के सारे सेहन मिटा डाले गए और उनके स्थान पर ब्रिटिश सिपाहियों के रहने के लिए भद्दी कोठरियों की लम्बी कतारें बना दी गईं। जिन लोगों ने यह भयानक विंध्वस किया, उन्होंने इतना भी नहीं सोचा कि विश्व के सबसे शानदार महल का कोई प्लान या रिकॉर्ड ही सुरक्षित कर लें। अब मुगलों का लाल किला सुरमई रंग की ब्रिटिश कोठरियों का ढांचा बन गया था। नक्कारखाने में जहाँ ढोल और नक्कारे कभी इसुहान और कुस्तुंतुनिया से आने वाले दूतों के आगमन की घोषणा करते थे, वहाँ एक ब्रिटिश स्टाफ सार्जेण्ट का निवास बना दिया गया।
जॉन लॉरेंस के आदेश पर लाल किले के बहुत से भवनों को अंग्रेज अधिकारियों, कर्मचारियों एवं सैनिकों के कार्यालयों एवं आवासीय उपयोग के लिए तैयार किया गया। दीवाने आम ब्रिटिश अधिकारियों का निवास बन गया। बादशाह का निजी प्रवेश द्वार कैंटीन बन गया और रंग महल अंग्रेज फौजियों के मेस में बदल दिया गया। मुमताजमहल को फौजी कैदखाने में बदल दिया गया ओर लाहौरी दरवाजे का नाम बदलकर विक्टोरिया गेट कर दिया गया और उसे किले के अंग्रेज सिपाहियों के लिए बाजार बना दिया गया।
लाल किले के भीतर बने एक सरोवर में लाल पत्थरों से बना हुआ जफर महल ऐसा दिखाई देता था मानो किसी समुद्र में विशाल लाल पक्षी उड़कर आ बैठा हो, उसे अब अंग्रेजी अधिकारियों के लिए स्विमिंग पूल के बीच रेस्ट रूम बन गया। हयातबख्श के बचे हुए हिस्से को पेशाब घरों में बदल दिया गया।
जॉन लॉरेंस की दूरदृष्टि से लाल किला पूरी तरह अदृश्य होने से तो बच गया किंतु लाल किले पर खतरा पूरी तरह दूर नहीं हुआ। किले की बाहरी दीवारें और कुछ महल ही नष्ट होने से बच पाए। लाल किले में काफी कुछ उजड़ गया और काफी कुछ बदल गया, फिर भी लाल किले की बाहरी दीवारें और बहुत से भवन अपने मूल रूप में खड़े थे। जॉन लॉरेंस ने सचमुच ही लाल किले को अदृश्य होने से बचा लिया!
इन दिनों हैरियट टाइटलर लाल किले के भीतर दीवाने आम के पास एक भवन में रहती थी। उसने किले के भीतर के भवनों का एक लैण्डस्केप बनाया ताकि आने वाली पीढ़ियां यह देख सकें कि बहादुरशाह जफर के समय में लाल किला भीतर से कैसा दिखता था! अब यह लैण्ड स्केप उपलब्ध नहीं है किंतु इ.1857 की क्रांति से कुछ दिन पहले ही थियो मेटकाफ ने लाल किले के भीतर का एक लैण्ड स्केप तैयार करवाया था। यह लैण्ड स्केप आज भी ब्रिटिश म्यूजियम की लाइब्रेरी में उपलब्ध है।
मार्च 1859 तक भी जॉर्ज वैगनट्राइबर अपने अखबार दिल्ली गजट में लिख रहा था- ‘किले में अब भी इमारतें उड़ाने का काम चल रहा है।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता